उन पुरखों का, जिन्होंने मेरे भीतर अयोध्या के संस्कार पैदा किए।
स्मृतियों का, जिसने इतने लंबे कालखंड को बिना किसी नोट्स के संजोए रखा।
पिता श्री मनु शर्मा का, जिन्होंने अक्षरपथ पर चलना सिखाया। गुरुवर प्रभाष जोशी का, जिन्होंने मुझे उड़ने के लिए अयोध्या का उन्मुक्त आकाश दिया।
आलोचक डॉ. नामवर सिंह का, जिन्होंने हर मुलाकात में तगादा कर यह किताब लिखवाई।
संपादक-त्रयी रामबहादुर राय, हरिशंकर व्यास और राहुलदेव का, स्क्रिप्ट पढ़ मार्गदर्शन देने के लिए।
रजत शर्माजी का, जिन्होंने इस किताब को लिखने के लिए मुझे मुक्ति दी। लेखन को गढ़नेवाले कारीगर शिवेंद्र कुमार सिंह, अभिषेक उपाध्याय, सोपान जोशी और अमित प्रकाश सिंह का। मित्र सांसद भूपेंद्र यादव का, जिन्होंने अयोध्या फैसले की तीन जिल्दें भेज मुझ पर काम शुरू करने का दबाव बनाया। प्रो. पुष्पेष पंत का वैचारिक खुराक के लिए। भाई तुषार मेहता का, जिन्होंने अयोध्या से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराए।
माधव जोशी का, जिन्होंने कवर से लेकर लेआउट तक किताब को उत्साह और आत्मीयता से सजाया।
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