आचार्य वररुचि द्वारा प्रणीत प्रस्तुत ग्रन्थ 'योगावली' भृगुसंहिता के योग प्रकरण पर आधारित योगों का विशाल संग्रह है ! यह ग्रन्थ जातकग्रंथ - परंपरा का अत्युत्तम उदाहरण है ! इसमें अकारादि क्रम से आठ प्रकरण में संग्रथित कुल आठ सौ चौसठ योगों का वर्णन है जिसमें अद्भुत, अंतरिक्ष कमलिनी, केशरी, चारु टिकट आदि नामों से प्रसिध्द योगाध्याय योगावली पद की सार्थकता सिध्द करते है ! इसमें वर्णित योग ज्योतिष - शास्त्र के अन्य ग्रंथो में प्रयुक्त योगों से भिन्न है! ज्योतिष शास्त्र में योग - परमपरा पर आधारिक ऐसे ग्रंथों की संख्या बहुत कम है! ऐसी स्थिति में प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री द्वारा सम्पादित एवं अनुदित यह ग्रन्थरत्न अत्यंत लोकोपयोगी एवं प्रतिष्ठित सिद्ध होगा!
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