पुस्तक के बारे में
योग एक विज्ञान है, कोई शास्त्र नहीं है। योग के अतिरिक्त जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। योग जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरुरत नहीं है। नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक।
योग चेतना को इन दो हिस्सों में बांटता है स्व- चेतन और स्व- अचेतन । जो अचेतन हैं स्व की दृष्टि से, वे तो स्व- अचेतन हैं ही । हम जिन्हें कि स्व- चेतन होना चाहिए, हम भी बहुत हिस्सों में पशुओं के साथ हैं, बहुत हिस्सों में पौधों के साथ हैं, बहुत हिस्सों में पत्थरों के साथ हैं । थोड़ा सा हिस्सा हमारा आदमी हुआ है, बहुत थोड़ा सा हिस्सा । जैसे कि बर्फ के एक टुकड़े को हम पानी में डाल दें तो जरा सा हिस्सा बाहर निकला रहता है, दसवां हिस्सा । और नौ हिस्से नीचे डूबे रहते हैं । हम ऐसे ही है । हमारे नौ हिस्से तो नीचे डूबे हैं अभी अंधेरे में, एक हिस्सा थोड़ा सा सतह के ऊपर आकर आदमी हुआ है ।
तो योग आदमी को मानता है एक शास्त्र । और उसमें बहुत से अनपढ़े अध्याय पड़े हैं- अनजाने, अपरिचित- जिन पर हम कभी रोशनी लेकर नहीं गए, जिनका हमे कोई पता ही नहीं रहा है । ऐसे ही, जैसे कोई सम्राट अपने महल में सोया हो और भूल गया हो अपनी तिजोड़ियो को, अपने धन को, और सपना देख रहा हो कि मैं भिखारी हो गया और सडक पर भीख मांग रहा हूं और कोई एक पैसा नहीं दे रहा है, और वह रो रहा है और परेशान हो रहा है और चिल्ला रहा है । करीब- करीब हम ऐसे सम्राट की हालत में हैं, जिन्हें अपनी पूरी संपत्ति का कोई पता ही नहीं है । पता ही नहीं है! अगर कोई हमसे कहे भी तो भरोसा नहीं पड़ेगा । कैसे भरोसा पड़े कि हमारे पास और इतनी संपत्ति? नहीं- नहीं । अगर उस सम्राट को उसके सपनों में कोई कहे भी कि तुम और भीख मांगते हो?तुम तो सम्राट हो! तो वह सम्राट कहेगा, कैसा मजाक करते हो?जाक मत करो, एक पैसा दान करो तो समझ में आएगा । ठीक हमारी स्थिति वैसी है ।
योग कहता है, हमारे भीतर अनंत संपदाओं का विस्तार है । लेकिन वे सारी संपदाएं स्व चेतन होने से जगेंगी, उसके अतिरिक्त कोई जगने का उपाय नही है ।
सात तलों में योग मनुष्य को बांटता है; सात केंद्रों में, सप्त चक्रों में मनुष्य के व्यक्तित्व को बांटता है । इन सातो चक्रो पर अनंत ऊर्जा और शक्ति सोई हुई है । जैसे एक कली में फूल बंद होता है । कली देख कर पता भी नही चलता कि इसके भीतर ऐसा फूल होगा, ऐसा कमल खिलेगा, इतने दलों वाला कमल प्रकट होगा । कली तो बंद होती है । अगर किसी ने सिर्फ कमल की कलियां ही देखी हों और कभी फूल न देखा हो, तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता कि यह कली और फूल बन सकती है! हमारे पास जितने चक्र है, वे कलियों की तरह बंद है । अगर वे खिल जाएं पूरे तो हमें पता भी नहीं कि उनके भीतर क्या- क्या छिपा हो सकता है- कितनी सुगंध! कितना सौदर्य! कितनी शक्ति! एक- एक चक्र के पास अनंत सौदर्य, अनंत शक्ति छिपी है । वह लेकिन कलियां खिले तो प्रकट हो सकती है, न खिले तो प्रकट नहीं हो सकती ।
कभी आपने कमल की कलियो को खिलते देखा है? कब खिलती हैं? सूरज जब निकलता है सुबह और रोशनी छा जाती है, तब रात के अंधेरे मे बंद कलियां सुबह खिल जाती है सूरज के साथ । ठीक ऐसे ही जिस दिन हमारी चेतना का सूर्य एक- एक केंद्र पर प्रकट होता है तो एक- एक केंद्र की कली खिलनी शुरू हो जाती है ।
भीतर भी हमारी चेतना का सूर्य है । उसके पहुंचने सें- उसे हम ध्यान कहें या और कोई नाम दे, इससे फर्क नही पड़ता- हमारे भीतर होश का एक सूर्य है, उसका प्रकाश जिस केंद्र पर पड़ता है, उसकी कली खिल जाती है चटक कर और फूल बन जाती है । और उसके फूल बनते ही हम पाते हैं कि अनंत शक्तियां हममें छिपी पड़ी थीं, वे प्रकट होनी शुरू हो गई ।
ये जो सात चक्र हैं, यह प्रत्येक चक्र खोला जा सकता है और प्रत्येक चक्र की अपनी क्षमताएं हैं । और जब सातों खुल जाते हैं तो व्यक्ति के द्वार- दरवाजे, जिनकी मैं कल बात कर रहा था, वे अनंत के लिए खुल जाते हैं । व्यक्ति तब अनंत के साथ एक हो जाता है ।
अनुक्रम
1
जगत- एक परिवार
2
घर- मंदिर
27
3
प्रेम का केंद्र
47
4
परम जीवन का सूत्र
71
5
सरल सत्य
93
6
संन्यास की दिशा
105
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