तन्त्र की भाँति यन्त्र भी मन्त्र विद्या का एक प्रयोगात्मक रूप है। और अनेक प्राचीन साधनाओं की भाँति यह भी आज लुप्तप्राय है। भौतिक यन्त्रों की बहुलता (मशीनों के आधिक्य) में व्यक्ति इन आध्यात्मिक यन्त्रों को भूल गया है। यहाँ तक कि अब इस यन्त्रों पर विश्वास करने वाले जन भी थोड़े हो रह गये हैं। आज तो जो कुछ भी सत्य और मान्य है, वह सब भौतिक है।
इधर कुछ वर्षों से जनरुचि ने अतीत की ओर अंगड़ाई लेकर देखा है, और प्राचीन सभ्यता-संस्कृति को समझने-परखने का प्रयास करने लगी है। फलतः, कई विषयों पर, जो लुप्तप्राय हो गये थे, साहित्य-सृजन होने लगा है। कई पुस्तकें ऐसी आयी हैं, जिनमें भारतीय अध्यात्म को नये सिरे से सरल भाषा में उजागर किया गया है।
यन्त्र-विद्या पर यद्यपि सैकड़ों ग्रन्थ उपलब्ध हैं, और विभिन्न प्रकाशनों से उनकी टीकायें भी (मूल सहित) प्रकाशित हुई हैं, तो भी वह साहित्य सर्वसुलभऔर जनसामान्य के लिए बोधगम्य नहीं था। इधर समय के अनुसार उस प्रकार के ग्रन्थों के पुनः सर्वथा नवीन और सहज-सुबोध प्रस्तुतीकरण ने पाठकों को आकर्षित किया है। उनके आकर्षण से प्रेरित होकर तद्विषयक अनेक पुस्तकें लिखी और प्रकाशित की गयी हैं।
मेरी चार पुस्तकों के प्रकाशनोपरान्त अनेक मित्रों ने सुझाव दिया कि मैं यन्त्र विद्या पर भी एक पुस्तक लिखूँ। कुछ व्यस्ति और विसंगति के बावजूद, मित्रों की वह प्रेरणा और शुभकामना मेरे मस्तिष्क को उद्वेलित करती रहती थी। उसी का परिणाम है यह पुस्तक यन्त्र शक्ति।
यन्त्र-साधना के सम्बन्ध में कई ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। उनमें वर्णित विषय एक होने पर भी साधना विधि में कहीं-कहीं अन्तर दीख पड़ता है। अनेक स्थलों पर वर्णित साधना-विधि इतनी जटिल और दुष्कर है कि पढ़कर साधक का उत्साह भंग हो जाता है। उसे निराशा घेर लेती है। उन यन्त्रों की साधना हेतु वर्णित सामग्री, विधि-विधान, हवन-पूजन आदि सभी विषय अत्यधिक जटिल हैं। पहली समस्या आती है वस्तु की शुद्धता की। फिर आज के युग में दीर्घकालीन साधना सामान्य व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं दीखती। अतः इस पुस्तक में मैंने सरलतम प्रयोगों को उनकी सहज साधना-पद्धति के साथ प्रस्तुत किया है।
मेरा प्रमुख विषय ज्योतिष है। उसी के पूरक रूप में मैंने कुछ तन्त्र-मन्त्र का भी अध्ययन किया था। किन्तु व्यावहारिक जीवन में ज्योतिष ने इतना व्यस्त कर रखा है कि लेखन के लिए बहुत कम समय निकाल पाता हूँ। फिर भी अनेक स्वजनों और मित्रों की प्रेरणा से यन्त्र-मन्त्र पर थोड़ा-बहुत लिखने का प्रयास करता रहा हूँ। लक्ष्य है कि ऐसे आध्यात्मिक विषयों पर कुछ और भी लिखकर भारतीय संस्कृति के उपासकों को भेंट करूँ, फिर जैसी हरि इच्छा !
पुस्तक के लेखन में जिन सज्जनों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सहयोग मिला है, मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
आशा है, मेरी अन्य पुस्तकों के अनुरूप पाठकगण इसे भी उपयोगी पायेंगे।
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