पुस्तक के विषय में
'यक्ष-प्रश्न' 'महाभारत' का वह अंश है, जहाँ स्वयं धर्म यक्ष-रूप में प्रष्टा और धर्मराज युधिष्ठिर उत्तरदाता बनते हैं। प्रश्नोत्तर से समस्या और समाधान के मार्ग प्रशस्त होते हैं। 'प्रश्न' शाश्वत होते हैं। 'यक्ष-प्रश्न' 'महाभारत' (व्यास-लिखित) के आरणेय पर्व में अध्याय-संख्या 311 से 314 के अंतर्गत व्यवस्थित है। इसमें कुल पदसंख्या 228 हैं। ये प्रश्न कठिन हैं। 'यक्ष-प्रश्न' धीरे-धीरे मुहावरा बना गया, जिसका अर्थ है। 'कठिन प्रश्न'। प्रश्नों की कठिनता के साथ ही यह भी संदेश है कि ये प्रश्न सुचिंतित, सुविचारित और सदा समीचीन हैं। वस्तुत: ये प्रश्न शाश्वत हैं।
आचार्य निशांतकेतु मूलत: कवि और कथाकार हैं, आपने लघुकथा, संस्मरण, ललित निबंध, आलोचना, पुस्तक-समीक्षा और साहित्येतिहास जैसी साहित्य विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की है। बाल-साहित्य, भाषा-विज्ञान, वाग्विज्ञान, भू-भाषिकी पाठालोचन और व्याकरण जैसे विषयों पर भी आपके अनेक ग्रंथ प्रकाशित हैं।
आपने समाज-शास्त्र, विभिन्न कोश, दर्शन, संस्कृति और योग पर भी विपुल वाङ्मय की रचना की है। आपकी विशेष उपलब्धि इस बात को लेकर भी है कि आपने वेद-विद्या एवं तंत्र-शास्त्र जैसे साधनापरक विषयों की परंपरागत दूरी को दूर कर एक प्रयोगसिद्ध सन्निकिटन उपस्थापित किया है, अभी तक आपकी डेढ़ सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं।
संप्रति आप 'सुलभ-साहित्य-अकादमी' (नई दिल्ली) के अध्यक्ष तथा उसके तत्वावधान में प्रकाशित 'चक्रवाक् का संपादन करते हैं।
लेखक परिचय
आचार्य निशांतकेतु मूलत: कवि और कथाकार हे, आपने लघुकथा । संस्मरण, ललितनिबंध आलोचना, पुस्तक-समीक्षा और साहित्येतिहास जैसी साहित्य-विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की है ।
पटना-विश्वविद्यालय के अंतर्गत हिंदी-विभागों (1960-से97) में प्राध्यापक, रीडर, युनिवर्सिटी प्रोफेसर तथा अध्यक्ष-इन विभिन्न पदों पर सैंतीस वर्षों के सफल एवं संतुष्ट अध्यापन के पश्चात् अवकाश-प्राप्त आचार्य निशांतकेतु (मूल नाम चंद्र किशोर पांडेय) स्थायी रूप से अपने शब्दाश्रम, बी-970, पालम विहार, गुड़गांव, हरियाणा 122017 (दिल्ली-गुड़गांव सीमास्थल) में निवास करते हैं । परीक्षाओं में सदैव प्रथमस्थानीय तथा अनेक स्वार्णपदक प्राप्त आचार्य निशांतकेतु बहुपठित और बहुभाषाविद हैं। आपने साहित्य, भाषाशास्त्र, व्याकरण, पाठालोचन भूभाषिकी, कोश, दर्शन, योग, अध्यात्म, समाजशास्त्र और तंत्र पर अनेक तथा की रचना का है। आपने अनेक पत्रिकाओं, स्मारिका, ग्रंथो और विश्वकोशों का व्यावहारिक संपादन किया है। साहित्य-साधना के अतिरिक्त अक्षर-तत्त्व, तांत्रिक विनियोग-विद्या लययोग, तन्मात्रा-तत्व-शास्त्र, अंतसूर्यविज्ञान, रुद्राक्ष-धारण ओर जपयोग एवं प्राणायाम-प्राणुशासित नवायुर्विज्ञान के विशेषज्ञ आचार्य निशांतकेतु ने इन विषयों पर बहुत कुछ मौलिक तथा सार्थक लिखा है। अब तक आपके शताधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।
संप्रति: सुलभ साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष तथा चक्रवाक् पत्रिका के संपादक।
अनुक्रम
1
प्राक्कथन
11
2
सनातन यक्ष-प्रश्न आरणेय पर्व [ अध्याय 311]
17
3
वनपर्व के अंतर्गत आरणेय पर्व [ अध्याय 312]
38
4
वनपर्व के अंतर्गत आरणेय पर्व [ अध्याय 313]
72
5
वनपर्व के अंतर्गत आरणेय पर्व [ अध्याय 314]
175
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