नम्र निवेदन
प्रस्तुत पुस्तकमें श्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराजके द्वारा रचित नौ लेखोंका संग्रह है । ये लेख भगवत्प्रेमी साधकोंके लिये बहुत कामके हैं और सुगमतापूर्वक भगवत्वप्राप्ति करानेमें बहुत सहायक हैं ।
पुस्तकमें कुछ बातोंकी पुनरावृत्ति भी हो सकती है । परन्तु समझानेकी दृष्टिसे इस प्रकारकी पुनरावृत्ति होना दोष नहीं है । उपनिषदमें भी ‘तत्त्वमसि’ -इस उपदेशकी नौ बार पुनरावृत्ति हुई है। इसलिये ब्रह्मसूत्रमें आया है-’ आवृत्तिरसकृदुपदेशात्’ (४। १ । १) । शुक्लयजुर्वेदसंहिताके उव्वटभाष्यमें आया है’ संस्कारोज्ज्लनार्थं हित च पथ्य च पुन: पुनरुपदिश्यमानं न दोषाय भवतीति’ (१। २१) अर्थात् संस्कारोंको उद्बुद्ध करनेके उद्देश्यसे हित तथा पथ्यकी बातका बार-बार उपदेश करनेमें कोई दोष नहीं है ।
पुस्तकमें सभी बातें सब जगह नहीं लिखी जा सकतीं । अत: पाठकको किसी जगह कोई कमी दिखायी दे तो पूरी पुस्तक पढ़नेसे दूसरी जगह उसका समाधान मिल सकता है । फिर भी कोई कमी या भूल दिखायी दे तो पाठक सूचित करनेकी कृपा करें ।
पाठकोंसे नम्र निवेदन है कि वे भगवत्प्राप्तिके उद्देश्यसे इस पुस्तकको मनोयोगपूर्वक पढ़ें, समझें और लाभ उठायें ।
विषय-सूची
1
जित देखूँ तित तू
5
2
भक्तिकी श्रेष्ठता
25
3
अनिर्वचनीय प्रेम
39
4
करणनिरपेक्ष साधन-शरणागति
48
गीताकी शरणागति
58
6
गीताका अनासक्तियोग
84
7
गीताका तात्पर्य
103
8
संयोग, वियोग और योग
123
9
सत्संग सुननेकी विद्या
131
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