उपन्यास का महत्व दरअसल आजकल भी इसलिए बना हुआ है की उपन्यास एक समानान्तर जीवन की परिकल्पना करते है | इस सन्दर्भ में असगर वजाहत के उपन्यास 'कैसी आगी लगाई' में जीवन की विशद व्याख्या है, जीवन का विस्तार है और तमाम अंतर्विरोधों के बीच से मानव-गरिमा और श्रेष्ठता के कलात्मक संकेत मिलते है | पिछले तीस साल से कहानियाँ और उपन्यासों के माध्यम से अपनी विशेष पहचान बना चुके असगर वजाहत ने 'कैसी आगी लगाई' में विविधताओं से भरा एक जीवन हमारे सामने रखा है | यह जीवन बिना किसी शर्त पाठक के सामने खुलता चला जाता है | कही-कही बहुत संवेदनशील और वर्जित माने जानेवाले क्षेत्रो में उपन्यासकार पाठक को बड़ी कलात्मकता और सतर्कता से ले जाता है और कुछ ऐसे प्रसंग सामने आते है जो संभवतः हिंदी उपन्यास में इससे पहले नहीं आए है | उपन्यास का ढाँचा परम्परागत है लेकिन दर्शक के सामने विभिन्न प्रसंग जिस तरह खुलते है, वह अत्यंत कलात्मक है, एक व्यापक जीवन में लेखक जिस प्रसंग को उठाता है उसे जीवन्त बना देता है | 'कैसी आगी लगाई' में साम्प्रदायिकता, छात्र -जीवन, स्वातंत्र्योत्तर राजनीति, सामंतवाद, वामपंथी राजनीति, मुस्लिम समाज, छोटे शहरों का जीवन और महानगर की आपाधापी के साथ-साथ सामाजिक अंतर्विरोधों से जन्मा वैचारिक संघर्ष भी हमारे सामने आता है | उपन्यास मानवीय सरोकारों और मानवीय गरिमा के कई पक्षों को उद्घाटित करता है | जीवन और जगत के विभिन्न कार्य- व्यापारों के बीच कथा-सूत्र एक ऐसा रोचक ताना-बाना बुनते है की पाठक उनमे डूबता चलता है | 'कैसी आगी लगाई' उन पाठको के लिए आवश्यक है जो उपन्यास विद्या से अतिरिक्त आशाएँ रखते है |
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