पाँचवे दशक में हिन्दी के जिन कथाकारों ने पाठकों और समीकक्षों का ध्यान सबसे ज्यादा आकर्षित किया उनमें उषा प्रियम्वदा का नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है! पिछले दो दशकों से ये निरन्तर सृजनरत हैं और इस अवधि में उन्होंने जो कुछ लिखा है वह परिमाण के कम होते हुए भी विशिष्ट है जिसका प्रमाण है कितना बड़ा झूट की ये कहानियाँ!
प्रस्तुत संग्रह की अधिकांश कहानियाँ अमेरिकी अथवा यूरोपीय परिवेश में लिखी गई हैं! और जिन कहानियों का परिवेश भारतीय है उनमें भी प्रमुख पात्र, जो प्राय: नारी है, का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में यूरोप अथवा अमेरिका से रहता है-इस एक तथ्य के कारण ही इन कहानियों को, बहुचर्चित मुहावरे की भाषा में, भोग हुए यथार्थ की संज्ञा भी दी जा सकती है और इसी तथ्य के कारण इन कहानियों में आधुनिकता का स्वर भी अधिक प्रबल है!
डॉ. इन्द्रनाथ मदान के शब्दों में : 'उषा प्रियम्वदा की कहानी-कला से रूढ़ियों, मृत परम्पराओं, जड़ मान्यताओं पर मीठी-मीठी चोटों की ध्वनि निकलती है, घिरे हुए जीवन की उबासी एवं उदासी उबरती है, आत्मीयता और करूणा के स्वर फूटते हैं! सूक्ष्म व्यंग्य कहानीकार के बौद्धिक विकास और कलात्मक संयम का परिचय देता है, जो तटस्थ दृष्टि और गहन चिन्तन का परिणाम है!'
अपने पहले संग्रह जिन्दगी और गुलाब के फूल से लेकर अब तक विषय-वस्तु और शिल्प की दृष्टि से लेखिका ने विकास की जो मंजिलें तय की हैं उनका जीवन्त परिचय पाठकों को कितना बड़ा झूट की कहानियों से मिलेगा!
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