सारी दुनिया अब तक अयोध्या को अपने-अपने हिसाब से जान चुकी है, जान रही है। जो अयोध्या कभी भारतीय मन के अवचेतन में बसी हुई थी, वह आज अंतरराष्ट्रीय अंतरचेतना का विषय हो गई है।
इस पुस्तक में श्रीराम के वनगमन के पहले, वनगमन के बाद और रामराज के साथ अयोध्या में क्या हुआ था, कौन-कौन लोग भूमिका में थे, इस पर चिंतन किया गया है।
तीन पात्रों के माध्यम से यह पुस्तक अयोध्या के दर्शन करवाएगी :
1. लक्ष्मणजी ने अयोध्या को किस प्रकार देखा-समझा
2. श्रीराम की दृष्टि में अयोध्या
3. सीताजी ने अयोध्या को कैसे जिया
इन तीनों ने जो-जो और जिस प्रकार से अयोध्या को देखा, उसे वे स्वयं सुना रहे हैं। यही इस पुस्तक का भाव है।
हम सब अयोध्या को इतिहास के पृष्ठों में ढूंढते हैं। पा भी लेते हैं। लेकिन चलिए, इस पुस्तक में श्रीराम, सीताजी और भाई लक्ष्मण के साथ कुछ अनूठे दृश्य, नए विचार, जो आज हमारे जीवन के लिए बड़े काम के हैं, उन्हें देखने-समझने का प्रयास करते हैं।
वह अयोध्या तो बाहर बसी है, पर एक अयोध्या हमारे भीतर भी है। उसी अयोध्या में हम सारे पात्र पाएंगे, यदि इस पुस्तक से ठीक से गुजर जाएं।
धर्म व अध्यात्म के प्रति नई सोच, पैनी दृष्टि और बेजोड़ वाकशैली के धनी पं. विजयशंकर मेहता देश-दुनिया में जीवन प्रबंधन गुरु के रूप में जाने जाते हैं। कथा-प्रवचनों की सतत यात्रा में गोल्डन बुक आफॅ वर्ल्ड रिकॉर्ड तक का सफर कर चुके हैं।
एक रंगकर्मी, बैंककर्मी और देश के अग्रणी हिंदी समाचार- पत्र दैनिक भास्कर में लेखक-संपादक के रूप में प्रमुख भूमिका निभाने के बाद वर्ष 2008 में अध्यात्म यात्रा आरंभ की। जीवन से जुड़े पांच प्रमुख उद्देश्यों को लेकर 'जीवन प्रबंधन समूह' की स्थापना करते हुए कथा-प्रवचनों का सिलसिला शुरू किया।
सतत परिश्रम के पर्याय, अपने अनुचरों के लिए प्रेरणास्वरूप पं. मेहता व्याख्यान-प्रवचन के क्षेत्र में कई अनूठे कीर्तिमान गढ़ चुके हैं।
वर्ष 2009 में पाकिस्तान के आठ नगरों में नौ दिन में 13 व्याख्यान देकर लोप्रियता स्थापित की।
2012 में देश के विभिन्न क्षेत्रों में 106 दिनों में 108 व्याख्यान दिए। इसी प्रकार 2018 में 365 दिनों में देश- दुनिया में 256 व्याख्यान दे चुके हैं।
2020 में कोरोना महामारी के दौरान लॉक-डाउन अवधि में (24 मार्च से 31 मई) 69 दिनों में 73 ऑनलाइन व्याख्यान देकर अध्यात्म के क्षेत्र में अनूठा कीर्तिमान स्थापित करते हुए गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुए। अपने आपमें अनूठी इस व्यायान श्रृंखला को दुनियाभर में सराहना मिली।
इस दौर में मनुष्य के संकल्प की जब भी चर्चा होगी, अयोध्या का प्रकरण सबको याद आएगा। अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा केवल एक धार्मिक गतिविधि नहीं है। मनुष्यों द्वारा जो-जो भी संकल्प इतिहास में लिए गए और वे जिस तरीके से पूरे हुए, उसमें यह प्रसंग सदैव प्रमुखता से याद किया जाएगा। इसे पूरा करने में कई लोगों ने अपनी भूमिका निभाई, लेकिन सबसे बड़ी भूमिका तो उस धरती की है, जिसे अयोध्या कहते हैं।
इस धरती की जो विशेषताएं हैं, वे तो श्रीराम ने अपने समय अपने मुख से खूब बखान कीं, पर अब तो सारा संसार जान चुका है। इस पुस्तक में तीन व्यक्तियों द्वारा अयोध्या का गुणगान किया गया है और इन तीनों ने ही अयोध्या को जिया है, देखा है, समझा है।
श्रीराम के वनगमन के पहले अयोध्या में जो प्रमुख घटनाएं घटीं, उन्हें पुस्तक में हम लक्ष्मणजी के मुंह से पढ़- सुन रहे हैं। फिर, जब श्रीराम का वनवास आरंभ हुआ और लंका में रावण वध तक अयोध्या में क्या-क्या हुआ, इसका चिंतन राम के मस्तिष्क में सदैव रहा और उसे पुस्तक में वे स्वयं बता रहे हैं।
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