व्योमकेश दरवेश (आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का पुण्या स्मरण) - Vyomkesh Darvesh (Biography of Hazari Prasad Dwivedi)

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Item Code: HAA144
Author: Vishwanath Tripathi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Language: Hindi
Edition: 2017
ISBN: 9788126722020
Pages: 464
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
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Book Description

लेखक परिचय

 

आकाशधर्मा गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने जीवन काल में ही मिथक पुरुष बन गए थे। हिन्दी में 'आकाशधर्मा और 'मिथक' इन दोनों शब्दों के प्रयोग का प्रवर्तन उन्होंने ही किया था।

उनका रचित साहित्य विविध एवं विपुल है। उनके शिष्य देश विदेश में बिखरे हैं। लगभग साठ वर्षेां तक उन्होंने सरस्वती की अनवरत साधना की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास का नया दिक्काल एवं प्राचीन भारत का आत्मीय सांस्कृतिक पर्यावरण रचा। हिन्दी की जातीय संस्कृति के मूल्यों की खोज की, उन्हें अखिल भारतीय एवं मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में परिभाषित किया। परम्परा और आधुनिकता की पहचान कराई। सहज के सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया। वे उन दुर्लभ विद्यवान सर्जकों की परम्परा में हैं जिसके प्रतिमान तुलसीदास हैं और जिसमें पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी स्मरणीय हैं।

उनका जीवन संघर्ष विस्थापित होत रहने का संघर्ष है। उनकी जीवन यात्रा के बारे में लिखना जितना जरूरी है उससे ज्यादा मुश्किल। इस पुस्तक के लेखक को दो दशकों से भी अधिक समय तक उनका सान्निय और शिष्यत्व प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। इसलिए पुस्तक को संस्मरणात्मक भी हो जाना पड़ा है। प्रयास किया है कि प्रसंगों और स्थितियों को यथासम्भव प्रामाणिक स्त्रोतों से ही ग्रहण किया जाए। आदरणीयों के प्रति आदर में कमी न आने पावे। काशी की तत्कालीन साहित्य मंडली, लेखक की मित्र अनायास पुस्तक में आ गई है।

 

अनुक्रम

भूमिका

9 से 28

नाम रूप पंडितजी के गाँव में, पुण्य स्मरण यह किताब

बचपन, बसरिकापुर और काशी

अथेयं विश्वभारती

शान्तिनिकेतन का प्रभाव

हिन्दी भवन

विश्वभारती पत्रिका

शान्तिनिकेतन का जीवन

मातृ संस्था का निमंत्रण: मन का बन्धन

काशी विश्वविद्यालय:देखी तुम्हरी कासी

133 से 236

अध्यापक मंडल

सतीर्थ मंडल

'संदेश रासक' प्रकरण

बना रहे बनारस

हिन्दी विभागाध्यक्ष: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

काशी नागरी प्रचारिणी सभा

साहित्य अकादमी

द्विवेदी जी परिवार में

आकाशधर्मा का विस्थापन

237 से 254

गाढ़े का साथी:पंजाब

255 से 282

काशी विश्वविद्यालय का एक और निमंत्रण

फिर बैतलवा उसी डार पर

283 से 318

हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, उत्तर प्रदेश

व्योमकेश दरवेश चलो अब

319 से 344

सूर्य अस्त हो गया!

हजारीप्रसाद द्विवेदी का निधन

हजारीप्रसाद द्विवेदी की आत्म स्वीकृतियाँ

रचना और रचनाकार

345 से 464

रजनी दिन नित्य चला ही किया

ज्ञान की सर्जना

परम्परा एवं आधुनिकता

'मैं हूँ स्वयं निज प्रतिवाद'

इतिहास राजनीति

भारतीय सामूहिक चित्त का निर्णय

 

 

 

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