(पहला भाग)
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स
भूमिका
विशुद्धिमार्ग पालि साहित्य का एक अमूल्य ग्रन्थ रत्न हैँ । इसमें बौद्ध दर्शन की विवेच नात्मक गवेषणा के साथ योगाभ्यास की प्रारम्भिक अवस्था से लेकर सिद्धि तक की सारी विधियाँ सुन्दर ढंग से समझाई गई हैं । इस ग्रन्थ में बौद्ध धर्म का कोई भी ऐसा अंग नहीं है जो अछूता हो । एक प्रकार से इसे बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जा सकता हैं । यद्यपि विशुद्धिमार्ग प्रधानत योग ग्रन्थ हैं, तथापि बोद्धधर्म का जैसा सुन्दर निरूपण इसमें किया गया है, वैसा अन्य किसी भी ग्रन्थ में प्राप्त नहीं है । योगियों के लिए तो यह गुरु के समान निर्देश करने वाला महोपकारी ग्रन्थ है ।
इस ग्रन्थ के लेखक आचार्य बुद्धधोप हैं, जो संसार भर के बौद्ध दार्शनिकों एवं ग्रन्थकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । स्थविरवाद के मूल सिद्धान्तों को अश्रुण्ण बनाये रखने और पालि साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए उन्होंने जो कार्य किया, वह स्थधिरवादी जगत् तथा पालि साहित्य का जीवन वर्द्धक बन गया । उन्होंने त्रिपिटक साहित्य की विशद् रूप से व्याख्या कर वास्तविक भाव को लुप्त होने से बचा लिया । यदि आचार्य बुद्धधोप ने अट्ठकथा ग्रन्यों को लिख कर गूढ़ अर्थों एवं भावों की व्याख्या न की होती, तो सम्प्रति पिटक ग्रन्थों का समझना सरल न होता । आचार्य बुद्धघोप के समान अन्य कोई भाष्यकार भी नहीं हुआ हैं । पालि साहित्य के ग्रन्थ निर्माताओं में त्रिपिटक वाड्मय के पश्चात् महान पालि ग्रन्थ निर्माता आचार्य बुद्धघोप ही हुए हैं । उन्होंने अट्ठकथाओं में जिन दार्शनिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक विषयों का विवेचनात्मक वर्णन किया हैं, उनसे आचार्य बुद्धघोप का पाण्डित्य पूर्णरूप सं प्रकट होता है ।
बुद्धघोप का जीवन चरित
आचार्य बुद्धघोप के जीवन चरित्र के सम्बन्ध में हम निम्नलिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त होती है
(१) महावंश के अन्तिम भाग चूलवंश के सैतीसवें पिरच्छेद में गाथा संख्या २१५ से २४६ तक ।
(२) बुद्घोसुप्पत्ति इस अन्य में आठ परिच्छेदों में आचार्य बुद्धघोप के जीवन चरित का वर्णन है ।
(३) शासन वंश इस ग्रन्थ के सीहलदीपिक सासनवंस कथामग्ग" नामक परिच्छेद में पृष्ठ २२ से २४ तक चलूवंश तथा बुद्धधोसुप्पत्ति में आए हुए क्रम के अनुसार दोनों ग्रन्थों का उद्धरण देकर अलग अलग वर्णन किया गया है ।
(४) गन्थवंस इस ग्रन्थ में ग्रन्थ समूह के वर्णन के साथ चूलवंश के आधार पर ही लिखा गया है ।
(५) सद्धम्म संगह इसमें भी चूलवंश के आधार पर ही वर्णन किया गया है, जो बहुत ही संक्षिप्त है ।
इन ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य किसी प्राचीन ग्रन्थ मैं आचार्य बुद्धघोप के जीवन चरित के सम्बन्ध में उल्लेख नहीं मिलता है । पीछे के अट्ठकथाचार्यौ ने केवल उनके नाम का उल्लेख किया है । आचार्य बुद्धघोप ने स्वयं अपने सम्वन्ध में बहुत कुछ नहीं लिखा है । उन्होंनें इसकी आवश्यकता नहीं समझी । उनकी रचनाओं में जो थोड़ा सा उनके सम्बन्ध में प्रकाश मिलता है, वह भी उन्होंनें अपनी कृतज्ञता प्रगट करने के लिए स्थधिरों को धन्यवाद देते हुए अथवा उनका स्मरण करते हुए लिखा हैं । यही कारण है पालि साहित्य के इतने बड़े महान लेखक, दार्शनिक एवं विद्वान का जीवन चरित आजतक विवाद का विषय बना हुआ है । चूलवंश तथा बुद्धघोसुप्त्ति एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसकी रचना भाषा आदि की दृष्टि से अशुद्ध तो है ही, उसमें अनेक चमत्कारिक बातों का उल्लेख करके उमके महत्व को घटा दिया गया है। । इन दोनों ग्रन्थों में आएं हुए कुछ वर्णन समान ही हैं । हम यहाँ दोनों ग्रन्थों में आए हुए उनके जीवन चरित को अलग अलग देकर विचार करेंगे ।
(दूसरा भाग)
सम्मतियाँ
विशुद्धि मार्ग बौद्ध धर्म दर्शन का सारभूत ग्रन्थ है । ऐसे ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद होना आवश्यक था । सारभूत होते हुये भी सरल नहीं है । इसलिये इसके अनुवाद के लिये बड़े योग्य विद्वान् की आवश्यकता थी । त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित जी ही ऐसे काम को योग्यतापूर्वक कर सकते थे । अनुवाद को देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई ।
बौद्ध योगसाधनाका सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ विशुद्धिमार्ग का हिन्दी रूपान्तर करके त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षितने इस विषयके अध्ययनके लिए हिन्दी पाठकोंका हार खोल दिया है । वर्तमान भारतीय भाषाओमें इस ग्रन्थका अविकल अनुवाद एकमात्र यही है । विद्वान् अनुवादकने अनुवाद करनेमें लंका और बर्माके पालिके विभिन्न टीका ग्रन्थोंका आधार लिया है । इसके अतिरिक्त विशुद्धिमार्ग पर उपलब्ध टीका ग्रन्थोंका आधार लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ भी दी है । भिक्षुजीने यत्र तत्र टिप्पणियोंमें स्वतन्त्र रूपसे भी आलोचना की है, जो विशेष अध्ययन करनेवालोके लिए लाभप्रद होगी । ग्रन्थको उपयोगी बनानेके लिए पादटिप्पणियोंमें पारिभाषिक शब्दोंका यथासम्भव अर्थ भी दिया गया है । अनुवादके बीच बीचमें कुछ महत्वपूर्ण स्थलोंपर मूल पालिपाठ भी दे दिये गये हैं, जिनसे पाठकोंको ग्रन्थका अभिप्राय समझनेमें सहायता मिलेगी और मूलग्रन्थके वातावरणसे उनका सम्बन्ध बना रहेगा ।
यह ग्रन्थ त्रिपिटकके अध्ययनके लिए कुंजी है । पूरे अनुपिटकमें इसके जोड़का कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है । स्थविरवादकी साधना और सिद्धान्त दोनोंका यह प्रतिनिधि ग्रन्थ है । शील, समाधि और प्रज्ञा ये भगवान् बुद्धके मूलभूत शिक्षात्रय है । उसीके अनुसार अन्धकारने शील, समाधि और प्रज्ञा इन तीन खण्डों एवं २३ परिच्छेदोंमें इस ग्रन्थका विभाग किया है । योगसाधना ही इस ग्रन्थका प्रधानतम विषय है । वस्तुत इसके बिना बौद्ध योग साधनाकी दुरूहताको समझना कठिन है । इस ग्रन्थके विद्वान् अनुवादकने हिन्दी अनुवाद द्वारा साधक और अध्येता दोनोंका महान् उपकार किया है ।
भिक्षुजीने अनुवादकी अपनी विस्तृत भूमिका में अट्ठकथाचार्य बुद्धघोषके जीवनचरित्रके संबंधमें महत्तपूर्ण ऐतिहासिक आलोचना की है । ग्रन्थकारकी रचनाएँ तथा उनका महत्व दिखाते हुए विशुद्धिमार्ग का महत्व और उसके प्रतिपाद्य विषयोंका संक्षेप भी दे दिया है । इरा ग्रन्थ संक्षेपके पढ़नेके बाद अध्येताओंको अन्यकी दुरूहता अवश्य ही कुछ कम होगी ।
कहना नहीं है कि विशुद्धिमार्ग के जैसे पारिभाषिक शब्दोंसे लदे, साधनाकी दृष्टिसे अत्यन्त दुरूह, दर्शनकी दृष्टिसे अत्यन्त गहन ग्रन्थका अनुवाद करके विद्वान् लेखकने प्रारम्भिक पाठकोंका ही नहीं, विद्वानोंका भी बड़ा उपकार किया है । निस्सन्देह इस अनुवादसे हिन्दीका गौरव बढ़ेगा । लेखकसे यह अनुरोध करना अनुचित न होगा कि कथावत्थु, पुग्गल पुग्ञत्ति, पद्वान आदि अभिधर्मके दुरूह ग्रन्थोंका भी अनुवाद करकई हिन्दीकी गौरव वृद्दि करें ।
वस्तु कथा
विशुद्धि मार्ग के दुसरै भाग को प्रकाशित होते देखकर मुझे प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । प्राचीन परम्परा के अनुसार पहले भाग मैं समाधि निर्देश पर्यन्त ग्यारह परिच्छेद दिए गये थे और शेप बारह परिच्छेद इममें दिये गए है । मेरी इच्छा थी कि प्रज्ञाभूमि निर्देश पर एक विस्तृत व्याख्या इसके साथ ही दे दूँ, किन्तु ऐसा करने मैं ग्रन्थ की कलेवर वृद्धि का भय हो आया, अत उसे इसमें नहीं देसका।
मैंने ग्रन्थ की भाप को भरसक सरल बनाने का प्रयत्न किया है और विषय को समझाने के लिए पादटिप्पणियाँ भी दी है । अन्त में उपमा सूची आदि भी पहले भाग की भाँति ही दे दी हैं । इन सूचियों को तैयार करने में श्री शिव शर्मा से बड़ी सहायता मिली है ।
विषय सूची
1
पहला परिच्छेद शील निर्देश
2
दूसरा परिच्छेद धुताङ्ग निर्देश
60
3
तीसरा परिच्छेद कर्मस्थान ग्रहण निर्देश
81
4
चौथा परिच्छेद पृथ्वी कसिण निर्देश
110
5
पाँचवाँ परिच्छेद शेष कसिण निर्देश
153
6
छठाँ परिच्छेद अशुभ कर्मस्थान निर्देश
160
7
सातवाँ परिच्छेद छ अनुस्मृति निर्देश
176
8
आठवाँ परिच्छेद अनुस्मृति कर्मस्थान निर्देश
208
9
नवाँ परिच्छेद ब्रह्मविहार निर्देश
263
10
दसवाँ परिच्छेद आरूप्य निर्देश
290
11
ग्यारहवाँ परिच्छेद समाधि निर्देश
303
बारहवाँ परिच्छेद ऋद्धिविध निर्देश
तेरहवाँ परिच्छेद अभिज्ञा निर्देश
31
चौहहवाँ परिच्छेद स्कन्ध निर्देश
55
पन्द्रहवाँ परिच्छेद आयतन धातु निर्देश
94
सोलहवाँ परिच्छेद इन्द्रिय सत्य निर्देश
103
सत्रहवाँ परिच्छेद प्रज्ञाभूमि निर्देश अथवा प्रतीत्य सकुत्पाद निर्देश
129
अठारहवाँ परिच्छेद दृष्टि विशुद्धि निर्देश
193
उन्नीसवाँ परिच्छेद कांक्षा वितरण विशुद्धि निर्देश
202
बीसवाँ परिच्छेद मार्गामार्गज्ञान दर्शन विशुद्धि निर्देश
209
इक्कीसवाँ परिच्छेद प्रतिपदा ज्ञानदर्शन विशुद्धि निर्देश
235
बाईसवा परिच्छेद ज्ञानदर्शन विशुद्धि निर्देश
262
12
तेईसवाँ परिच्छेद प्रज्ञा भावना का आनृशंस निर्देश
285