लेखक-परिचय
इस पुस्तक वेफ लेखक श्री वेफ. वेफ. पाठक गत पैंतीस वर्षों से ज्योतिष-जगत में एक प्रतिष्ठित लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं । ऐस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन, टाइम्स ऑफ ऐस्ट्रोलॉजी, बाबाजी तथा एक्सप्रेस स्टार टेलर जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठकों को विद्वान् लेखक का परिचय देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इन पत्रिकाओं के लगभग चार सौ अंकों में कुल मिलाकर इनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं । इनकी शेष पुस्तकों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व एल्फा पब्लिकेशन ने लिया है ताकि पाठकों की सेवा हो सके ।
आदरणीय पाठकजी बिहार राज्य के सिवान जिले के हुसैनगंज प्रखण्ड के ग्राम पंचायत सहुली के प्रसादीपुर टोला के निवासी हैं। यह आर्यभट्ट तथा वाराहमिहिर की परम्परा के शाकद्विपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए । इनका गोत्र शांडिल्य तथा पुर गौरांग पठखौलियार है । पाठकजी बिहार प्रशासनिक सेवा में तैंतीस वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात सन् 1993 ई. में सरकार के विशेष-सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए।
''इंडियन कौंसिल ऑफ ऐस्ट्रोलॉजिकल साईन्सेज'' द्वारा सन् 1998 ई. में आदरणीय पाठकजी को ''ज्योतिष भानु'' की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । सन् 1999 ई. में पाठकजी को ''आर संथानम अवार्ड'' भी प्रदान किया गया ।
ऐस्ट्रो-में ट्रोओलॉजी उपचारीय ज्योतिष, हिन्दू-दशा-पद्धति, यवन जातक तथा शास्त्रीय ज्योतिष के विशेषज्ञ के रूप में पाठकजी को मान्यता प्राप्त है ।
हम उनके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं ।
पुस्तक-परिचय
वर्तमान पुस्तक विंशोत्तरी दशा पर सर्वोत्कृष्ट रचना है। लेखक ने 'सत्य- जातकम्' 'वृहत्पराशर होराशास्त्रा', 'फलदीपिका' भावार्थरत्नाकर, तथा उत्तरकालामृत, में उपलब्ध एतत्सम्बन्धी, लाभदायक, सामग्रियों को एक नए कलेवर के रूप में प्रस्तुत किया है। ग्रहों के भावेश के रूप में विभिन्न भावों में क्या दशाफल होंगे, जन्म लग्न से तथा दशानाथ से विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के दशाफल कैसे होंगे, नक्षत्राधिपत्य तथा राश्याधिपत्य के अनुसार ग्रहों के दशाफल कैसे होंगे आदि का विचार व्यापक रूप में इस पुस्तक में किया गया है। वैदिक त्रिकोणों के आलोक में लेखक ने भावेशों के दशाफल का जो पुनर्मूल्यांकन किया है, पुन: लेखक ने बाधक सिद्धान्त की कतिपय त्रुटियों के सुधार का जो प्रस्ताव दिया है वह सभी साम्रगी पराशरी ज्योतिष में नये प्राण फूँकने का कार्य करेगी। प्रतिकूल फल देने वाली महादशाओं तथा अंतर्दशाओं की शान्ति हेतु प्रत्येक लग्न के लिए कौन-से देवताओं की उपासना की जाए। कौन से रत्न धारन किये जाएँ और कौन से रत्न धारण नहीं किये जाएँ, इसकी जितनी गहराई से इस पुस्तक में छान-बीन की गई है, वह अन्यथा किसी पुस्तक में आपको देखने को नहीं मिलेगी। ज्ञान तथा व्यावहारिक उपयोगिता की दृष्टि से विंशोत्तरी दशा फल तरंगिणी महादशा पर यह एक उत्कृष्ट ग्रन्थ है, जिस पाठकों के विशेष अनुरोध पर लेखक ने लिखा है। आशा है, जिज्ञासु पाठक इसे सह्दय अपनाएँगे।
प्राक्कथन
में री दो पुस्तकें 'हिन्दू-दशा-सिस्टम' दो खण्डों में अंग्रेजी में पहले ही 'निष्काम पीठ प्रकाशन' हौज खास, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित हो चुकी हें में री तीसरी अंग्रेजी पुस्तक इस विषय पर 'एडवान्स स्टडी ऑफ विंशोत्तरी दशा' सन् 2005 ई में 'अल्फा पब्लिकेशन' दिल्ली द्वारा प्रकाशित होने पर हिन्दी-जगत् के पाठको के द्वारा जब अमृतलाल जैन के माध्यम से पुरजोर माँग होने लगी कि मैं हिन्दी में उसी स्तर का कोई ग्रन्थ विंशोत्तरी दशा पर लिखूँ । पाठको के इस पुरजोर आग्रह पर तथा प्रकाशक अमृतलाल जैन जी की प्रेरणा पर मेंने तीन माह के अनवरत परिश्रम के बाद इस कार्य को आज पूरा कर लिया यह पुस्तक 'विंशोत्तरी दशा तरंगिणी' अब आपके सम्मुख प्रस्तुत है ।
इस पुस्तक में में री तीन अंग्रेजी पुस्तको के मुख्य अशों के अतिरिक्त मरे ना' अंनेका दशा सम्बन्धी शोध प्रथमत इसी ग्रन्थ में समिलित किए गरा हैं । प्रत्येक भाग्म की दशा के लिए विस्तार से ज्योतिषीय उपचार बताए गए हैं। प्रत्येक महादशा के लिए तथा प्रत्येक महादशा के अन्तर्गत आनेवाली अंतर्दशाओ के भी ज्योतिषीय उपचार बताए गए है । दवापासना दान-पुण्य तथा रत्नोपचार पर विस्तार से वताया गया द्रे । जन्म लग्न की दृष्टि से अनुकूल ग्रहों के रत्न धारण करने के सुझाव दिए गए हें । जन्मलग्न की दृष्टि से प्रतिकूल ग्रहों की दशा में उन ग्रहों के प्रतिरोधक रत्न धारण करने का सुझाव भी प्रस्तुत ग्रन्थ में विस्तार से दिया गया है जो पूर्व ग्रन्थों में शामिल नहीं हो सके थे ।
वर्तमान पुस्तक चौंतीस अध्यायों में है । प्रथम से लेकर त्रयोदश तक अर्थात तेरह अध्यायों में 'सत्यजातक' पर आधारित भावेशों के दशाफल बताए गए है । प्रथम अध्याय में सत्याचार्य द्वारा बताए गए दशाफल निर्धारण के आधारभूत नियमों पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय से लेकर त्रयोदश अध्याय तक प्रत्येक अध्याय में प्रत्येक भावेश के बारह भावो में होने के दशाफल अलग-अलग बताए गए हैं । प्रत्येक भावेश के दशाफल के सम्बन्ध में लेखक ने सत्याचार्य के मत के अलावा अपना भी अलग से विचार दिया हैं जो काफी महत्वपूर्ण है । प्रत्येक लग्न के लिए किस भावेश को ठीक करने हेतु कौन से रत्न धारण कराने होंगे तथा कौन-से देवी-देवता प्रसन्न करने होंगे, विस्तार से बताए गए हें । नवमें श, दशमें श तथा एकादशेश पर वैदिक त्रिकोण के आलोक में लेखक ने बहुत-से महत्वपूर्ण नए तथ्यों को उजागर किया हैं। । परम्परागत विचारो के अनुसार भाग्योदय हेतु लग्नेश के अतिरिक्त भाग्येश के रन्न धारण करने चाहिए । लेखक ने इस विचार से सहमत होते हुए इस सन्दर्भ में दो-अतिरिक्त सुझाव भी दिए हैं । प्रथम सुझाव यह कि भाग्येश जिस राशि में हो-और उसका स्वामी लग्नेश का मित्र हो तो उक्त भाग्यकर्ता ग्रह का रत्न भी नवमें श के रत्न अलावा धारण करना चाहिए किन्तु यदिभाग्यकर्ता लग्नेश का शत्रु हो तो उसकी शान्ति रामुचित देवोपासना द्वारा करनी चाहिए न कि उसके रत्न-धारण द्वारा लेखक ने प्रत्येक लग्न हेतु भाग्यकर्ता का जो पचार बताया, वह लेखक की एक नई खोज बाधक ग्रहों के शान्ति उपाय भी लेखक की नई खोज हैं।
चौदहवें अध्याय में लेखक न मत्रेश्वर की 'फलदीपिका' में वर्णित भावेशों के दशाफल पर प्रकाश डाला जबकि पन्द्रहवे अध्याय में लेखक ने 'बृहत्पराशर होराशास्त्र' में वर्णित भावों के दशाफल का वर्णन किया हैं।
सोलहवें अध्याय में 'फलदीपिका' पर आधारित दशाफल के पचास महत्तवपूर्ण सिद्धान्तो की व्याख्या की गई हैं सत्रहवें से पच्चीसवें अध्याय में 'बृहत्पराशरहोराशास्त्र' पर आधारित ना ग्रहों के महादशाफल तथा उनमें से प्रत्येक ग्रह की अन्तदशाओ के फल विस्तार से दिए गए हैं प्रत्येक महादशा में अथवा उनकी भिन्नभिन्न अन्तर्दशाओं में कठिनाइयों -को दूर करने के लिए जो ज्योतिषीय उपचार कारगर हो सकते हैं उन पर लेखक ने व्यापक शोध कर जो विस्तृत सुझाव दिए हैं वे काफी अमूल्य तथा लाभप्रद हैं। लेखक ने देवोपचार दान-पुण्यादि कर्म तथा रत्नोपचार के बीच पूर्ण सामजस्य स्थापित करने का प्रयास किया रत्नोपचार के क्षेत्र में प्रतिरोधक रत्नों को भी शामिल करके लेखक ने इसका विस्तार किया अनुकूल ग्रहों के रत्न धारण करने से लाभ होता हे, यह सभी मानते हैं। अनुकूल ग्रहों के कमजोर पडने पर उनके रत्न धारण करके उन्हे सबल बनाया जाए यह भी सभी मानते हे किन्तु ग्रहों-के भावेशानुसार अशुभ होने पर भी उक्त ग्रहों की दशा में उन ग्रहों के रत्न जो कुछ अख्तनी बनाते हैं उसे हतोत्साहित करने हेतु उन अशुभ ग्रहों की दशा में उन ग्रहों के रत्न के स्थान पर उनके शत्रु ग्रहों तथा लग्नेश या लग्नेश के मित्र ग्रहों के रन्न धारण करने का सुझाव इस पुलक में दिया गया ।
छब्बीसवे अंध्याय में 'भावार्थ रत्नाकर' में वर्णित दशाफल सम्बन्धी तीस नियमों को उजागर किया गया हे सत्ताइसवें अध्याय में कालीदास के 'उतरकालामृत' में वर्णित दशाफल का निरूपण किया गया हे चौंतीसवें अध्याय में बीस-व्यक्तियो की जन्मकुण्डली में दशाफल की सत्यता तथा असत्यता को परखने का प्रयास किया गया ।
इस पुस्तक की रचना के लिए अमृतलाल जैन जी, उनके दो पुत्रो तथा अल्फा पब्लिकेशन के स्टॉफ ने मुझे जो बारबार प्रेरित किया, उसके लिए मैं उन सभी का आभार प्रकट करता हूँ ।
इस पुस्तक की रचना मैंने दिनाक 2 मई, 2010 ई. दिन रविवार को पूर्ण की जो में रे विवाह की स्वर्णिम जयन्ती आज से 56 वर्ष पूर्व 2 मई, दिन सोमवार को ही में रा शुभ विवाह हुआ था अत: विवाह की स्वर्णिम जयन्ती के उपलक्ष्य में मैं अपनी यह पुस्तक अपनी पत्नी चपला पाठक को अर्पित करता हूँ ।
विषय-सूची
1
सत्याचाय प्रणीत दशाफल निर्धारण के आधाभूत नियम
2
लग्नश दशाफल
6
3
द्वितीयेश का दशाफल
12
4
तृतीयेश का दशाफल
18
5
चतुर्थेश का दशाफल
24
पचमें श का दशाफल
32
7
षष्ठेश का दशाफल
41
8
सप्तमें श का दशाफल
50
9
अष्टमें श का दशाफल
57
10
नवमें श का दशाफल
66
11
दशमें श का दशाफल
82
एकादशेश का दशाक्ल
91
13
द्वादशेश का दशाफल
99
14
फलदीपिका के अनुसार भावेश का दशाफल
107
15
बृहत्पराशर होराशास्त्र में वर्णित भावेश दशाफल
112
16
दशाफल के महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धान्त
114
17
सूर्य महादशा (छ वर्षों की)
123
चन्द्र महादशा (दस वर्षों की)
131
19
मगल महादशा (सात वर्षों की)
139
20
राह महादशा (अठारह वर्षों की)
148
21
गुरु महादशा (सोलह वर्षों की)
157
22
शनि महादशा (उन्नीस वर्षों की)
167
23
बुध महादशा (सत्रह वर्षों की)
177
केतु महादशा (सात वर्षों की)
185
25
शुक्र महादशा (बीस वर्षों की)
194
26
भावार्थ रत्नाकर में वर्णित दशाफल
202
27
उत्तरकालामृत' में दशाफल का निरूपण
205
28
जातक चन्द्रिका' में वर्णित महादशा व अन्तर्दशा स्म का विचार
212
29
गोपाल रत्नाकर में वणित दशाफल-संकेत
215
30
'उत्तरकालामृत' में वर्णित दशाफल
218
31
'भावार्थ-रत्नाकर में वर्णित दशाफल
221
दशाफल-निधारणार्थ ज्योतिष के कुछ गुह्या-रहस्य पर प्रकाश
224
33
दशाफल सम्बन्धी 'होरा अनुभव दर्पण' के विचार
231
34
व्यावहारिक उदाहरण
237
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