किसी भी देश की प्रगति, शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान पर निर्भर करती है। जहां तक विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी अनुसंधान की बात है, तो इसकी जानकारी जनसामान्य को होना आवश्यक है। एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत के नागरिकों को संविधान प्रदत्त मौलिक कर्तव्य प्राप्त हैं कि उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अनुसंधान की ताजा स्थिति से परिचित कराते हुए उनमें वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास सुनिश्चित किया जाए।
दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में भारत उन प्रमुख देशों में से एक है जिसकी संसद में वैज्ञानिक नीति घोषणा (1958) पारित की गई थी। आजादी मिलने के बाद से भारत ने यह महसूस किया कि सदियों की गुलामी ने भारतीय जनमानस को तार्किक ज्ञान-विज्ञान से दूर कर दिया है इसलिए देश को पुनः प्रगतिशील बनाने के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी अहम भूमिका निमा सकते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान देश और समाज को तरक्की के पथ पर ले जाता है, देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है तो वहीं दूसरी तरफ विज्ञान की जानकारी आमजन तक संप्रेषित करने से एक तर्कसंगत समाज का निर्माण होता है। भारत इन दोनों आयामों के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ रहा है। प्रयोगशालाओं में अनुसंधान के समांतर वैज्ञानिक सूचना को सरल-सुबोध तरीके से समाज तक लेकर जाने के प्रयास विज्ञान के सामाजिक सरोकार को प्रकट करते हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित अनुसंधान की जानकारी समाज से साझा करने की भावना वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) के संस्थापकों के मन में मौजूद थी। इसलिए इस महत्वपूर्ण उद्देश्य को साधने हेतु 1951 में प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय (पीआईडी) का गठन किया गया। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि स्वतंत्र भारत में यह देश का पहला सरकारी संस्थान था जिसकी स्थापना विज्ञान संचार के उद्देश्य से की गई थी। सात दशकों के दौरान अनेक रूपांतरण और विलय की प्रक्रियाओं के फलस्वरूप जनवरी 2021 में सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-निस्पर) नामक एक नए संस्थान का गठन किया गया।
विज्ञान-प्रौद्योगिकी संबंधी नीति अध्ययन, राष्ट्रीय विज्ञान पुस्तकालय, लोकविज्ञान पुस्तकों, पत्रिकाओं, न्यूजलेटर और शोध जर्नलों के प्रकाशन, भारत के पारंपरिक ज्ञान पर केंद्रित स्वस्तिक कार्यक्रम, वर्तमान समय में सीएसआईआर-निस्पर के प्रमुख कार्य क्षेत्र हैं। हिंदी में विज्ञान प्रगति, अंग्रेजी में साइंस रिपोर्टर और उर्दू में साइंस की दुनिया निस्पर द्वारा प्रकाशित होने वाली तीन विज्ञान पत्रिकाएं हैं। ये पत्रिकाएं पूरे देश में पहुंचती हैं। इन्हें पाठकों का विशेष स्नेह प्राप्त है। खासतौर पर 'विज्ञान प्रगति' पत्रिका की 7 दशक लंबी एक समृद्ध विरासत है जिसने विज्ञान व प्रौद्योगिकी की खोजों और अनुसंधान की जानकारी सरल भाषा में जनसामान्य तक पहुंचाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। विज्ञान लेखकों की अनेक पीढ़ियों ने इस पत्रिका में लेखकीय योगदान दिया है।
विज्ञान का मूल तत्व जिज्ञासा है। यह जिज्ञासा भाव हर एक व्यक्ति के भीतर मौजूद रहता है। प्रकृति, आकाश और जीवन की कोई पटना हम सबके मन में कई प्रश्न उत्पन्न करती है। खासकर बच्चों के मन में बेहद अनोखे प्रश्न उपजते हैं, वे प्रश्न दरअसल हमारे खोजी मन-मि के परावर्तन होते हैं। वहीं दूसरी ओर, किसी भी वैज्ञानिक प्रयोग, खोज या आविष्कार का आरंभ किसी प्रश्न या जिज्ञासा से ही होता है। पे से सेब के गिरने पर आइजैक न्यूटन के मन में पहता प्रश्न आया कि लेब सीधा भूमि पर ही क्यों गिरा, ऊपर आकाश में क्यों नहीं। हम सचके मन में ऐसे अनेक प्रश्न हर रोज उभरते हैं। है ना। तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हर व्यक्ति में वैधानिक वृत्ति होती है ि मानिक दृष्टिकोण (Scientific temper) कहते हैं। इस प्रवृत्ति, दृष्टिकोण और नजरिये का हर व्यक्ति में विकास होना और उसे जीवन में अपनाना आवश्यक है ताकि एक तर्कसंगत समाज बने। ऐसा समाज और इसमें रहने वाले लोग तर्कहीन, असंगत तथा अवैज्ञानिक बातों में नहीं पड़ते। यह समाज अंधविश्वास से मुक्त होता है। यह वैज्ञानिक मनोवृत्ति ही विज्ञान संचार और विज्ञान लोकप्रियकरण की आवश्यकता का औचित्य है। हमारा जीवन विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) केंद्रित हो गया है। ये तीनों अवयव नागरिक, समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए अपरिहार्य हैं। इसलिए एसटीआई की जानकारी जनसामान्य को होना आवश्यक है। बच्चों और युवाओं को विज्ञान-प्रणिक के अध्ययन अनुसंधान की ओर प्रेरित करना तथा उन्हें तकनीकी कौशल से परिचित कराना आज अत्यंत आवश्यक है। कोविड महामारी के समय विज्ञान लोकप्रियकरण का महत्व हमें कहीं ज्यादा समझ में आया। हालांकि उसी दौर में भ्रांतियां (misinformation) भी सोशल मीडिया पर खूब फैल रही थीं। लेकिन उन घातियों का दमन और समाधान विज्ञान संचार द्वारा ही संभव हुआ।
एसटीआई, देश की अर्थव्यवस्था और समावेशी विकास का आधार होते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी उन्नति उसी समाज में संभव होगी जहां के नागरिक विज्ञान व तकनीक के ज्ञान से परिचित होंगे। ऐसा विज्ञान संचार के द्वारा ही संभव हो सकता है। वैज्ञानिक व तकनीकी सूचना का संप्रेषण, बच्चों-युवाओं में वैज्ञानिक तकनीकी कौशलों के विकास की प्रेरणा जमाना, अंधविश्वास निर्मूलन, वैज्ञानिक और आमजन के बीच संवाद तथा वंचित समुदाय के लोगों में भी वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करना ये कुछ मुख्य लक्ष्य होते हैं विज्ञान संचार के। वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ विज्ञान संचार के प्रयास दुनिया के सभी देशों में होते रहे हैं। भारत उनमें अनोखा है क्योंकि हमारे संविधान
ने विज्ञान संचार को देश के प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A (h) बनाया है। देश की आजादी के बाद जब राष्ट्रीय विकास के लिए विज्ञान संबंधी अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के विकास के महत्व को समझा गया, उसी समय भारत के आरंभिक नीति-निर्माताओं ने विज्ञान लोकप्रियकरण की अहमियत को भी समझा। 1958 में विज्ञान नीति घोषणा (Scientific Policy Resolution) इस दिशा में एक महत्वपूर्ण आरंभिक पड़ाव था जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधान सहित विज्ञान संबंधी जागरूकता की बात भी की गई। उसके बाद भारतीय संसद द्वारा कई विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीतियां लाई गई तथा सभी में विज्ञान संचार को सशक्त करने की अनुशंसा की गई।
आजादी के बाद विज्ञान संचार की प्रारंभिक इकाई 'प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय (पीआईडी)' की स्थापना 1951 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) के अंतर्गत की गई। विज्ञान संचार को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार के अंतर्गत यह संभवतः पहली संस्था बनाई गई। विज्ञान जानने वाले और नहीं जानने वाले लोगों के बीच की खाई को भरने की दिशा में सरकार की यह एक महत्वपूर्ण पहल थी। पीआईडी का उद्देश्य जनसाधारण को विज्ञान की जानकारी साझा करने के अलावा वैज्ञानिक समुदाय को वैज्ञानिक सूचना का संप्रेषण करना भी या ताकि नई खोजों के मार्ग खुल सकें।
सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-निस्पर) उसी पीआईडी का वर्तमान परिवर्धित रूप है। इस सरकारी संस्थान ने अपनी स्थापना के सात दशक की यात्रा पूरी की है। सीएसआईआर-निस्पर के बाद विज्ञान संचार के आंदोलन के रूप में राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् (एनसीएसएम) की स्थापना 2 मई, 1959 को की गई। विज्ञान प्रदर्शनी, लोकप्रिय व्याख्यान, साइंस फिल्म शो, इन्नोवेशन हब, कौशल विकास जैसी गतिविधियों के जरिये एनसीएसएम पूरे देश में मौजूद अपने 25 विज्ञान संग्रहालयों/विज्ञान नगरी के द्वारा बच्चों और युवाओं में विज्ञान के प्रति रुचि जगा रहा है। एनसीएसएम की स्थापना के करीब दो वर्ष बाद एक मुख्यम विज्ञान लोकप्रियकरण एजेंसी के रूप में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना। अक्टूबर 1961 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत की गई। इस आयोग द्वारा विभिन्न वैज्ञानिक शाखाओं में करीव ४ लाख तकनीकी शब्दों की शब्दावली का मानकीक किया गया है।
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