पुस्तक के बारे में
प्रथम अध्याय मे, विषय-वस्तु का परिचय दिया गया है ।
द्वितीय अध्याय मे, वैदांगज्योतिष में तीस प्रकार के वैदिक मुहूर्तों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है ।
तृतीय अध्याय में, वैदिक कारणों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है ।
चतुर्थ अध्याय में, तिथियों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है ।
पंचम अध्याय में, नक्षत्रों और ताराओं की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है ।
नष्ट अध्याय में, योगों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है ।
सप्तम अध्याय में, मुहूर्त के सामान्य प्रचलित नियम बताये गये हैं ।
अष्टम अध्याय में, नारदीय ज्योतिष के अनुसार, मुहूर्तादि का विवेचन प्रस्तुत किया गया है ।
नवम अध्याय में, 44 प्रकार के विशिष्ट मुहूर्तो की चर्चा की गयी है, जिनमें प्रथम आठ कर्मकाण्ड के हैं और शेष जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यो से जुड़े हैं ।
दशम अध्याय में, वर-कन्या के विवाह के पूर्व प्रचलित मेलापक-विधि के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। एकादश अध्याय विविधावली है ।
लेखक का परिचय
इस पुस्तक के लेखक के.के.पाठक गत पैंतीस वर्षो से ज्योतिष-जगत में एकप्रतिष्ठित लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं। ऐस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन, टाइम्स ऑफ ऐस्ट्रोलॉजी, बाबाजी तथा एक्सप्रेस स्टार टेलर जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठकों को विद्वान् लेखक का परिचय देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इन पत्रिकाओं के लगभग चार सौ अंकों में कुल मिलाकर इनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं । निष्काम पीठ प्रकाशन, हौजखास नई दिल्ली द्वारा अभी तक इनकी एक दर्जन शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इनकी शेष पुस्तकों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व ''एल्फा पब्लिकेशन'' ने लिया है । ताकि पाठकों की सेवा हो सके । आदरणीय पाठक जी बिहार राज्य के सिवान जिले के हुसैनगंज प्रखण्ड के ग्राम पंचायत सहुली के प्रसादीपुर टोला के निवासी हैं । यह आर्यभट्ट तथा वाराहमिहिर की परम्परा के शाकद्विपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए। इनका गोत्र शांडिल्य तथा पुर गौरांग पठखौलियार है । पाठकजी बिहार प्रशासनिक सेवा में तैंतीस वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात सन् 1993 ई० में सरकार के विशेष-सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए ।
''इंडियन कौंसिल ऑफ ऐस्ट्रोलॉजिकल साईन्सेज'' द्वारा सन् 1998 में आदरणीय पाठकजी को ''ज्योतिष भानु'' की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । सन् 1999 ई० में पाठकजी को ''आर. संथानम अवार्ड'' भी प्रदान किया गया ।
ऐस्ट्रो-मेट्रीओलॉजी उपचारीय ज्योतिष, हिन्दू-दशा-पद्धति, यवन जातक तथा शास्त्रीय ज्योतिष के विशेषज्ञ के रूप में पाठकजी को मान्यता प्राप्त है ।
हम उनके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।
प्राक्कथन
वैदिककाल में ऋषियों की मान्यता थी कि यदि महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ करते समय ग्रह अनुकूल हों तो उक्त कार्य की सफलता की संभावना अधिक रहती है । इस वैदिक अवधारणा ने ही मुहूर्त ज्योतिष का को जन्म दिया । सच पूछें तो मुहूर्त-ज्योतिष, हिन्दू कर्मकाण्ड तथा मेलापक विधि ही वैदिक उपचारीय ज्योतिष है । वर्तमान पुस्तक का वैदिक उपचारीय ज्योतिषनाम इसी हेतु दिया गया है । इस पुस्तक में कुल ग्यारह अध्याय हैं ।
प्रथम अध्याय में, विषय-वस्तु का परिचय दिया गया है । द्वितीय अध्याय में, वेदांगज्योतिष में तीस प्रकार के वैदिक मुहूर्तों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है । तृतीय अध्याय में, वैदिक कारणों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है । चतुर्थ अध्याय में, तिथियों की उपयोगिता पर तथा पंचम अध्याय में, नक्षत्रों और ताराओं की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है । षष्ठ अध्याय में योगों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है ।
सप्तम अध्याय में, मुहूर्त के सामान्य प्रचलित नियम बताये गये हैं । अष्टम अध्याय में, नारदीय ज्योतिष के अनुसार, मुहूर्तादि का विवेचन प्रस्तुत किया गया है ।
नवम अध्याय में, 44 प्रकार के विशिष्ट मुहूर्तों की चर्चा की गयी है, जिनमें प्रथम आठ कर्मकाण्ड के हैं और शेष जीवन के अन्य महत्वपूर्ण कार्यों से जुड़े हैं ।
दशम अध्याय में, वर-कन्या के विवाह के पूर्व प्रचलित मेलापक-विधि के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। एकादश अध्याय विविधावली इस पुस्तक को सुन्दर ढंग से प्रकाशित करने हेतु अस्का पब्लिकेशन धन्यवाद के पात्र हैं । यह पुस्तक मेरे पुत्र उत्पल तथा पुत्रवधू विनीता को भेंट है ।
अनुक्रमणिका
(I)
1
वैदिक उपचारीय ज्योतिष
2
वेदांग ज्योतिष में मुहूर्त की उपयोगिता
6
3
वैदिक करण
11
4
तिथियों की उपयोगिता
14
5
नक्षत्रों की उपयोगिता
17
योगों की उपयोगिता
21
7
मुहूर्त के सामान्य प्रचलित नियम
23
8
नारदीय ज्योतिष में वर्णित सामान्य मार्गनिर्देश
32
9
विशिष्ट मुहूर्त चर्चा
43
10
मेलापक विधि
84
विविधावली
115
12
मंत्र-जप प्रयोग
118
परिशिष्ट-एक
149
वैवाहिक विलम्ब दूर करने हेतु व्रत विधान
परिशिष्ट-दो
158
वैवाहिक विलम्ब दूर करने में सोन्दर्य-लहरी, श्रीसूक्त, रामचरितमानस, दुर्गासप्तशती आदि की उपयोगिता पर प्रकाश
परिशिष्ट-तीन
173
वैवाहिक विलम्ब दूर करने हेतु पार्वती-मगंल स्त्रोत का विधान
परिशिष्ट-चार
207
क. हिन्दी भाषा सहित ऋग्वेदोक्त श्री सूक्तम्
ख. पुरुषसूक्त हिन्दी भाषा हित
ग. रुद्रयामलोक्त श्रीसूक्त व. पुराणोक्त श्रीसूक्त
ड. लक्ष्मी सूक्त
परिशिष्ट-पांच
227
क ऋणहर्ता गणेशस्तोत्र
ख. ऋणमुक्तिगणेशस्तोत्रम्
ग. धनदाकवचम्
घ. धनदालक्ष्मीस्तोत्रम्
ङ. धनदास्तोत्रम्
च. धनदादेवीस्तोत्रम्
छ. लक्ष्मीस्तोत्रमू
ज. महालक्ष्मीस्तोत्र प्रारम्भ:
परिशिष्ट-छ:
251
क प्रदोषस्तोत्रम्
ख. शिवस्तुति
ग. कत्किकृतं शिवस्तोत्रम्
घ. हिमालयकृत शिवस्तोत्रम्
च. विश्वमूर्त्यष्टकस्तोत्रम्
छ. महामृत्युब्जयध्यानम्
ज. महामृत्युञ्जयस्तोत्रम्
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