मुझे डॉ. एच. एम. मुन्जे की "वसुधैव कुटुम्बकम्" नामक पुस्तिका पढ़ने का और उस पर विचार करने का आल्हादजनक सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पुस्तिका में आपने बड़ी ही रोचक विधि से इस परम सत्य का प्रतिपादन किया है कि "समस्त विश्व केवल एक ही परिवार है।" धर्म-शास्त्र से भी यह पूर्णरूपेण अनुमोदित है। वस्तुतः पुस्तिका अतिशय रुचिकर, ज्ञानोत्पादक एवं प्रकाशदायक है। यह पुस्तिका अथर्ववेद, श्रीमद्भगवद्गीता, यजुर्वेद, ऋग्वेद, सामवेद इत्यादि तथा बहाई पवित्र शास्त्रों के उद्धरणों से भरपूर है और लेखक के अगाध एवं गहन धर्मज्ञान को प्रदर्शित करती है।
समस्त विश्व में आज एक भयानक अशान्ति एवं उथल-पुथल दृष्टिगोचर होती है। इसका मूल कारण समस्त मानव जाति के विचारों एवं व्यवहार में संघर्ष है। वर्तमान युग की मुख्य समस्या यह नहीं है कि किस प्रकार शमन-नीति का प्रयोग किया जाये, अपितु यह है कि स्थायी विश्वशान्ति की सुदृढ़ संस्थापना के हेतु अभेद्य एकीकरण को ही वास्तविकता से अपनाया जाये और इसी एकमात्र लक्ष्य के प्रति विविध राष्ट्रों के तेजस्वी नेताओं के प्रयत्न दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ रहे हैं। विश्वशान्ति-प्राप्ति के मार्ग में बाधाएं डालने वाली फूट को किस प्रकार जड़ से नष्ट किया जाये? धर्म-धुरन्धर एवं राज्य विधान-वेत्ता, राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ चाणक्य, समाज शास्त्री एवं शिक्षा शास्त्री, अर्थशास्त्री एवं मानव जाति के समस्त शुभेच्छुकगण विश्व के कोने-कोने में आज इसी एकमात्र विषय में अति उत्सुकतापूर्वक ध्यानस्थ हैं, कारण कि वे अपने प्रयत्नों द्वारा किसी-न-किसी प्रकार विश्व-एकता एवं विश्वशान्ति की संस्थापना के हेतु परम श्रेष्ठ महौषधि का आविष्कार कर सके, किन्तु वह महौषधि तो वास्तविक रूप में इसी एक सत्य में समाई हुई है कि समस्त मानव-जाति के विचारों में, शब्दों में एवं व्यवहार में अविभक्त एकता का प्रचार किया जाये और उसे स्थायी रूप से सुसंस्थापित कर दिया जाये।
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