प्राचीन काल में भारत की संस्कृति और समृद्धि संसार भर में प्रसिद्ध थी। विदेशी भारत को सोने की चिड़िया मानते थे। यहाँ के इत्रों, कलाकृतियों, आभूषणों, कपड़ों और मसालों की यूरोप के बड़े घरानों में बहुत माँग और खपत थी। उस समय यूरोप के देश पिछड़ी अवस्था में थे।
किंतु हमने देखा है कि अच्छे पाठ्यक्रम और अच्छी पाठ्यपुस्तकों के बावजूद हमारे विद्यार्थियों की रुचि स्वतः पढ़ने की ओर अधिक नहीं बढ़ती । इसका एक मुख्य कारण अवश्य ही हमारी दूषित परीक्षा प्रणाली है जिसमें पाठ्यपुस्तकों में दिए गए ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है। इस कारण बहुत ही कम विद्यालयों में कोर्स के बाहर की पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन अतिरिक्त-पठन में बच्चों की रुचि न होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों के लिए कम मूल्य की अच्छी पुस्तकें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी नहीं हैं। यद्यपि पिछले वर्षों में इस कमी को पूरा करने के लिए कुछ काम प्रारंभ हुआ है पर यह बहुत ही नाकाफी है।
इस दृष्टि से परिषद् ने बच्चों की पुस्तकों के रूप में लेखन की दिशा में एक महत्वाकांक्षी योजना प्रारंभ की है।
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