मशीनीकरण और व्यवसायीकरण के पथ पर अग्रसर मानव सभ्यता जय बर्वादरी के उस बिंदु पर हो, जहाँ से मानवीय मूल्य और नैतिक चेतना आदि सब कुछ ध्वस्त हो रही हो, तब मुकि के लिए वनराज जैसा क्रान्तिकारी और करिश्माई व्यक्तित्व की आवश्यकता होती। है। वनराज उपन्यास ही नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन की इति-आदि वृत्ति भी है। इसकी परिषि में इतिहास, भूगोल, वर्तमान, अतीत, भविष्य सब कुछ समाहित है। यह अतीत के खंडहरों को झकझोर कर वर्तमान के लिए जीवन तत्वों की तलाश करता है। यह ज्ञान-विज्ञान और आध्यात्म के तथ्यों को मवकर पतनोन्मुखी संसार के लिए मौलिकता की संजीवनी का संग्रह करता। है। सम्मोहन की शक्ति, अघोर सायना, धारणा की अवस्था, अवचेतन मन की शक्ति जैसी तुप्तप्राय दुर्लभ विया का प्राकटप भी है।
वनराज का करिश्माई व्यक्तित्व उपन्यास का मुख्य आकर्षण है। वनराज का चरित्र और व्यक्तित्व बौद्धिकता या तार्किकता के र स्तर से परे की चीज है। । वनराज पशुओं से सीया संवाद कायम करने में सक्षम है। वनराज का भूख-प्यास, निद्रा, वासना पर पूर्ण पराक्रम, साहस का स्वामी है। वनराज पानी पर चल सकता के किसी भी हिस्से में द्रुत गति से पूर्ण नियंत्रण है। वह अपार बल, शौर्य, ता है, पार्थिव देह से से मुक्त हो कर ब्रह्मांड आवागमन कर सकता है। वनराज का चरित्र ऊर्जा के तत्वों से पूर है जहां कल्पतरू-सा मनवांछित आलय है।
उपन्यास में एक तरफ विघटनकारी ताकतों के विरूद्ध क्रांति का उद्घोष हुआ है तो दूसरी तरफ लुप्तप्राय भीतरी अस्तित्व को सहेज कर संवर्धन करने का आग्रह है। धर्म, जाति, ईर्ष्या, द्वेष से व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व त्रस्त है। वनराज इनसे मुक्ति का ठोस उपाय है। वह प्रकृतिवादी कोमल चित्त संपन्न शक्ति है, जो मानव-समाज द्वारा निर्मित धर्म, समाज, संस्कार और बौद्धिक आकृति से मुक्त है तथा मौलिकता से भरपूर है। वह समाज के उन तथाकथित मूल्यों में विश्वास नहीं करता है जो के स्वतंत्र-चिंतन के मार्ग मानव में बाधक है। । वह चोपी हुई बीजिक-पोथी के भार से मुक्त है। उसके व्यक्तित्व में मानवता के वे सभी आवश्यक तत्व हैं, जो उसे प्रकृति के सभी प्राणियों में सर्वमान्य बनाते हैं। वनराज के व्यक्तित्व का सकारात्मक प्रभाव समाज को बाह्य और अंतस से कुंदन की तरह कीमती और ठोस बनाता है।
महान उपन्यासकार रामानुज अनुज और वनराज का चरित्र परस्पर संपूरक है। यह मात्र उपन्यास नहीं, यह युग की दहलीज पर परिवर्तन का शंखनाद है। स्वर्णिम युग की अंगड़ाई है। उपन्यास का कथानक मानव मन, मानव जीवन, मानव समाज के सभी आयामों को स्पर्श करता हुआ विकृत समाज का मंथन करता है। है। सत्यम, शिवम, सुंदरम के अमृत तत्त्वों के शोधन का संकल्प घरा संदेश है, वनराज।
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