देश का विकास होना अच्छी बात है, लेकिन सभ्यता के विकास के नाम पर संस्कृति को पतन की ओर धकेलना कितना घातक हो सकता है, यह इस उपन्यास में दर्शाया गया है। भारत के इतिहास के उस उथल-पुथल से भरे युग का यह जीता जागता चित्न है जब परिवर्तन और नवीनता के नाम पर अनैतिकता और अनाचार की शक्तियों ने लोगों के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को झकझोर डाला था।
कथानक की रोचकता और घटना-प्रवाह की दृष्टि से यह एक बेजोड़ उपन्यास है।
गुरुदत्त स्वतंलता सेनानी और समाजसेवी के साथ-साथ हिन्दी के महान उपन्यासकार थे। विज्ञान के विद्यार्थी और पेशे से वैद्य होने के बावजूद वे बीसवीं शती के एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे, जिन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित आदि का सृजन किया और 'भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में भी अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियाँ दीं। राष्ट्रसंघ के साहित्य-संस्कृति संगठन यूनेस्को के अनुसार गुरुदत्त 1960-1970 के दशकों में हिंदी साहित्य में सर्वाधिक पढ़े जानेवाले लेखक रहे हैं।
गुरुदत्त को क्रांतिकारियों का गुरु भी कहा जाता है। जब ये लाहौर के नेशनल कॉलेज में हेडमास्टर थे, तब सरदार भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु इनके सबसे प्रिय शिष्य थे।
Hindu (हिंदू धर्म) (12711)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas (वेद) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1906)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1097)
Ramayana (रामायण) (1382)
Gita Press (गीता प्रेस) (733)
Sahitya (साहित्य) (23190)
History (इतिहास) (8270)
Philosophy (दर्शन) (3393)
Santvani (सन्त वाणी) (2590)
Vedanta (वेदांत) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist