वर्तमान युग में जबकि नास्तिकता और भौतिकवाद का चारों ओर तेजी से प्रसार हो रहा है, इस बात की अत्यन्त आवश्यकता है कि ऐसे साहित्य का सूजन हो जिससे लोगों का मन ईश्वर-भक्ति की ओर प्रवृत्त हो और वे जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचान कर उसकी प्राप्ति के लिए क्रियाशील बनें। इस दिशा में हमने कुछ प्रयास किया है।
प्रस्तुत पुस्तक ' वैचारिक क्रान्ति' में जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, यह बताया गया है कि मानव-मन में ही एक ऐसी क्रान्ति की आवश्यकता है जो मानव को बाह्य आडम्बरों से हटाकर अन्तर्मुखी करे।
महाराष्ट्र के प्रमुख पर्व' गोपाल काला' के अवसर पर भागवत् सप्ताह के समापन पर विनांक १ अप्रैल, १९८१ को जिसी, जिला चन्द्रपुर में श्री सतपाल जी महाराज द्वारा दिया गया प्रवचन इस पुस्तक में लिपिबद्ध है। इसकी भाषा एवं शैली प्रवचन की है न कि पुस्तक लेखन की। प्रवचन-शैली की सरलता, सुबोधता एवं स्पष्टता द्वारा यह पुस्तक सहृदय पाठकों का मार्गदर्शक बनेगी और पुस्तकालयों की श्री-वृद्धि करेगी, ऐसी आशा है।
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