"उत्तराखण्डसुषमा' नामक इस आधुनिक संस्कृतकाव्य में दो शतक हैं। उत्तराखण्डशतक देवभूमि उत्तराखण्ड की मुख्य विशेषताओं को बताता है और दर्शनीय स्थलों का परिचय कराता है। इस काव्य में उत्तराखण्ड के वर्तमान तेरह जिलों को वहां की विशेष पहचान के साथ वर्णित किया है। पहाड़ों का स्वच्छ वातावरण, ग्रामीण जनजीवन, लोकसंस्कृति, देवमन्दिर, तीर्थस्थान आदि सभी का वर्णन इसमें आंशिक रूप से किया है।
"नारीशतक", भारतीय संस्कृति में सर्वदा सम्पूजित व विविध रूपों में विद्यमान नारी के साहस, धैर्य, परिश्रम, वात्सल्य, विनम्रता, सहनशक्ति, दयालुता, त्याग, तपस्या आदि गुणों को यथार्थरूप में प्रस्तुत करता है। सहृदय लोग निश्चित ही इस काव्य के माध्यम से उत्तराखण्ड की सर्वविध सम्पदा से संक्षिप्त रूप में परिचित हो सकेंगे, और नारी के वास्तविक स्वरूप तथा परिवर्तित रूप को काव्य के माध्यम से देख सकेंगे। एक छोटे से काव्य में उत्तराखण्ड वैभव को प्रदर्षित करना, नारीमहिमावर्णन करना असम्भव है, किन्तु स्वान्तः सुख व सहृदयों के रसानुभूति के लिए यह प्रयास किया है। आशा करता हूं काव्य का उद्देश्य पूरा होगा।
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