पुस्तक के बारे में
वे किसी पर किसी चीज बिगड़ना और नाराज होना जानते ही नहीं थे, इसी कारण संभवत इतनी महत्त्वपूर्ण सन्धया वार्ताएँ और इतनी महत्त्वपूर्ण ओस डूबी चिटि्ठयों लिखी जा सकीं। वे बेहूदे सवाल करनेवालों ये भी कभी चिढ़ते न थे। यही नहीं, जहाँ कुछ बिगड़ने की जरुरत भी हो, या क्रोध का दिखावा मात्र करने से काम बनता हो, वहाँ भी वे विचित्र भद्रता से पेश आते थे। कलकत्ते में रहते वक्त रसोईये के व्यवहार से सरोजिनी इतनी तंग आ गई कि उसे अरविन्द से कहना पड़ा पर कोई असर नहीं। तब उसने नारी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया और जोर जोर से रोने लगी। अब तो अरविन्द को ध्यान देना ही था। रसोइया बुलाया गया। सभी लोग यह देखने के लिए आ जुटे कि रसोइये की कैसी दुर्गत होती है। रसोइया आकर सामने खड़ा हुआ था। श्री अरविन्द ने कहा, लगता है, तुम इधर अभद्र व्यवहार करने लगे हो। खैर जाओ, आगे ऐसा न करना।सब लोग बड़े निराश हुए। रसोईया हँसता हुआ चला गया। वे किसी से किसी भी प्रकार की सेवा नहीं लेते थे। पुराणी ने लिखा है कि एक बार श्री अरविन्द हाथ में तार कागज लिेये बाहर आए। बाहर सभी शिष्य उनकी प्रतीक्षा में थे। उन्होंने बिना किसी को देखे, कहा मुझे लगता है कि आज यह तार चला जाना चाहिए। यह था उनका तरीका!
लेखक परिचय
तुम युद्ध से कैसे बच पाओगे, यदि दूसरा व्यक्ति लडने पर ही आमादा हो? तुम इससे वच सकते हो यदि तुम उससे ज्यादा शक्तिशाली हो, या ऐसे लोगों से मिलकर जो उससे अधिक शक्तिवान् हों या फिर उस तरह जैसा गांधीजी कहते हैं यानी सत्याग्रह से उसका हृदय परिवर्तन करके । यहाँ भी गांधीजी को यह कहने के लिए विवश होना पड़ा है कि उनका कोई भी अनुयायी सत्याग्रह का सही तरीका नहीं जानता । वस्तुत सिर्फ उन्हें छोड्कर ऐसा कोई है ही नहीं, जो सत्याग्रह के बारे में पूर्ण ज्ञान रखता हो । यह सत्याग्रह के लिए कोई बहुत आशाजनक बात तो नहीं है, खास तौर से तब, जब सत्याग्रह को पूरी मानवजाति की समस्याओं का समाधान बनाने का इरादा हो ।
मुझे लगता है कि गांधी इस बात को नहीं जानते कि जब कोई आदमी अहिंसा और सत्याग्रह को स्वीकार करता है तब उसकी स्थिति क्या होती है । वे सोचते हैं कि आदमी इससे पवित्र होता है । लेकिन जब कोई आदमी इच्छापूर्वक दुख सहन करता है या दुख में अपने को डालता है तब उसका प्राणिक शरीर सशक्त होता है । ये चीजें केवल प्राणिक व्यक्तित्व को ही प्रभावित करती हैं, अन्तर की चीजों को नहीं । बाद में होता यह है कि जब तुम अत्याचार का विरोध नहीं कर पाते तब तुम दुख सहने का निश्चय करते हो । यह दुख सहन प्राणिक (Vital) है, अत इससे शक्ति मिलती है । ऐसे दुख से गुजरने वालों को जब सत्ता मिलती है तब वे बदतर अत्याचारी बन जाते हैं ।
अनुक्रम
1
उतर भागी
2
जन्म से प्रवासी
30
3
परिवेश की पहचान
49
4
भवानी मादर
98
5
स्वराज्य के बलिपथी
108
6
कालकोठरी मे रोशनी का वातायन
141
7
पाँचवी क्षितिज
160
8
मृत नगर मे दिव्य गायन का पीठ
180
9
नील ध्वजा ओर पद्मचक्र
203
10
समुद्री साँझे ओर ओस डूबी चिट्ठियाँ
233
11
मनुष्य प्रकृति की सर्वोच्च प्रयोगशाला
252
12
पृथ्वी यात्रा पर हैं
266
13
समूचा जीवन ही योग है
283
14
जिन्दगी का नमक
302
15
भविष्यत् कविता के मांत्रिक
319
16
भारत नयी मानवता का अतरिक्ष यान
338
17
मृत्यु साम्पराय वें लिए मृत्यु का वरण
356
18
मैने श्री अरविन्द को नकारने की कोशिश का किन्तु
372
19
अनुक्रमणिका
389
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