पुस्तक के विषय में
कवि कालिदास की कालजयी रचना आपके हाथ में है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। उत्तर कालामृत निश्चयी ही काल मंथन कर अमृत की प्राप्ति का सफल प्रयास है। कदाचित् यह एकमात्र जातक ग्रन्थ है जिसमें मुहूर्त व कर्मकांड को भी सम्मिलित कर काल का समग्र, समन्वित व संतुलित चिंतन हुआ है।
इसमें1. जन्मकाल लक्षण, 2. ग्रह बल साधन, 3. आयुर्दाय, 4. ग्रहभाव फल के साथ 5. कारकत्व खंड में भाव व ग्रहों के कारकत्व पर विचार हुआ है । पाठकों की सुविधा के लिए इस टीका में राशि शील व कारकत्व भी जोड़ दिया गया है । आशा है सहृदय पाठक इस धृष्टता के लिए क्षमा करेंगे ।
अध्याय 6 दशाफल, 7 प्रश्न तथा 8 विविध फल सहित प्रथम कांड में कुल आठ खंड या अध्याय हैं ।
इसके बाद द्वितीय कांड अर्थात् कर्मकांड खंड में 105 श्लोकों में सुखी व समृद्ध जीवन के लिए विधि निषेधों पर विस्तार से चर्चा हुई है।
अनिष्ट ग्रह शान्ति में व्रत पूजन व श्राद्ध का विशेष महत्त्व है। कर्मकांड खंड में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि, एकादशी के व्रत तथा श्राद्ध और पिडंदान पर विशेष चर्चा हुई है। तीर्थयात्रा के नियम व गायत्री जप (श्लोक संख्या 73) का वर्णन हुआ है।
कवि कालिदास के उत्तर कालामृत पर आदरणीय वी.सुब्रह्मण्यम शास्त्री और श्री. पी.एस शास्त्री की टीकाएँ अंग्रेजी भाषा में तथा श्री जगन्नाथ भसीन की टीका हिन्दी भाषा में उपलब्ध है।
कदाचित् इस पर नई टीका की आवश्यकता नहीं थी किन्तु इस अचरपूर्ण ग्रन्थ को पढ़ने पर लगा कि शायद कहीं कुछ छूट गया है । उसे पूरा करने का यह छोटा सा प्रयास है । पाठकों की सुविधा के लिए तालिकाएँ व उदाहरण कुंडलियों जोड्ने से पुस्तक का आकार निश्चय ही थोड़ा बढ़ गया है किन्तु ज्योतिषप्रेमी इसे उपयोगी पाएँगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
मेरे मित्र श्री अमृत लाल जैन व उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन ने सदा की भांति पुस्तक की पांडुलिपि सज्जा में जो सहयोग दिया उसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। शब्द संयोजन, आलेख संशोधन व आवरण सज्जा सरीखे कठिन व श्रमसाध्य कार्य पूरे करने में कार्यदल के सदस्यों का योगदान श्लाघनीय है। अन्त में गुरु कृपा और भगवत् कृपा का आभार मानना होगा क्योंकि वही तो लेखनी की प्राणशक्ति हैं। ''गोपाल की करी सब होई, जो अपना पुरुषारथ मानत अति झूठी है सोई। ''सो मैं तो झूठा नहीं बनूँगा...।
आभार
मैं आभारी हूँ ज्योतिष प्रेमी जनता का जिसके कारण यह ऋषियों द्वारा दिया गया दैवीय विज्ञान आज नए शिखर छू रहा है। भारतीय संस्कृति की उत्कृष्ट धरोहर का दूसरा नाम ज्योतिष विज्ञान है।
इस दैवीय विज्ञान के प्रचार, प्रसार व संवर्धन में तन-मन- धन से जुड़े सभी आस्थावान व्यक्ति निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं। भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री एस. एन. कपूर ने तथ्यपरक शोध की गौरवशाली परंपरा आरंभ की है । आशा है निकट भविष्य में इसके सुखद परिणाम सभी को प्राप्त होंगे । ज्योतिष विज्ञान के शोध में संलग्न सभी छात्रों की निष्ठा व समर्पण भाव निश्चय ही प्रशंसनीय हैं । मेरे गुरुजन श्री ए.बी. शुक्ल, श्री जे.एन. शर्मा, श्री रोहित वेदी, श्री के. रंगाचारी, डॉ. निर्मल जिंदल, डॉ. श्रीकांत गौड़, श्री विनय आदित्य, श्री विजय राघव पंत ने मेरा उत्साह व मनोबल बढ़ाया, उनके मार्गदर्शन व स्नेहपूर्ण सहयोग के लिए मैं उनका आभारी हूँ । मेरे मित्र श्री हरीश आहूजा, डॉ. सुरेन्द्र शास्त्री जम्मू वाले, पंडित संजय शर्मा तथा श्री राजेश वढेरा इस साहित्य यात्रा में मेरे साथ रहे । मैं उनका धन्यवाद करता हूँ। आदरणीय श्री अमृतलाल जैन, उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन तथा उनके कार्यदल के सदस्यों ने निष्ठापूर्वक श्रम कर इस पुस्तक को सजाया संवारा । मैं मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा करता हूँ। उन सभी का धन्यवाद। मेरे छात्र, प्रशंसक और पाठक कदाचित् मेरी लेखनी की प्राण शक्ति हैं। उनके आग्रह व आत्मीयतापूर्ण अनुरोध से ही इस पुस्तक का जन्म हुआ । अन्यथा यह पुस्तक लिखी ही न जाती । अन्त में उस नटखट नन्द किशोर ने मन में घुसपैठ कर क्या शरारत की इसे तो बस वही जानता है । यह कृति उसकी है मेरी नहीं। वह आप पर कृपालु हो, सदा दयादृष्टि रखे, यही कामना है । उसे कोटिश : नमन...।
विषय-सूची
अध्याय-1
जन्मकाल लक्षण खंड
1
अध्याय-2
बल साधन खंड
21
अध्याय-3
आयुर्दाय खंड
51
अध्याय-4
ग्रहभाव खंड
78
अध्याय-5
कारकत्व खंड
166
का परिशिष्ट
अध्याय-6
दशाफल खंड
276
अध्याय-7
प्रश्न खंड
371
अध्याय-8
प्रकीर्ण खंड
397
अध्याय-9
कर्मकांड खंड (प्रथम भाग)
436
अध्याय-10
कर्मकांड खंड (द्वितीय भाग)
483
परिशिष्ट-1
513
परिशिष्ट-2
523
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