हिन्दी उपन्यास-साहित्य की लगभग 125 वर्ष पुरानी कहानी इस बात की साक्षी है कि यहाँ जीवन का लगभग प्रत्येक पक्ष चित्रित हुआ है और नित्यप्रति नवीन प्रयोगों से अनेकानेक क्षितिजों का उद्घाटन हो रहा है। स्वर्गीय अमृतलाल नागर उन समर्थ उपन्यासकारों में से है, जिन्होंने अपने उपन्यासों में नगरीय जीवन को अभिव्यक्ति दी है। यों तो नागर जी के उपन्यासों में अनेक नगरों का उल्लेख है लेकिन जिस नगर का सर्वाधिक चित्रण हुआ है वह है लखनऊ। लखनऊ में भी एक खास 'चौक को ही चुना गया है, जिसमें पूरे भारतवर्ष की नगरीय संस्कृति के दर्शन किये गये हैं।
ग्राम्य परिरवेश में पालन-पोषण होने के कारण मेरी मानसिकता और वैचारिकता की भाव-भूमियों ने नगरीय जीवन की अन्तःचेतना में झांकने एवं उसे जानने की जो रुचि किशोरावस्था से ही मुझमें पैदा कर दी थी, उसी से प्रेरित होकर मैं विभागीय गुरुवृन्दों की प्रेरणा तथा प्रोत्साहन से अमृतलाल नागर के उपन्यासों में नगरीय जीवन विषय पर शोध कार्य करने में प्रवृत्त हुआ।
प्रस्तुत शोध - प्रबन्ध सात अध्यायों में विभक्त किया गया था लेकिन पुस्तक का रूप देने के लिए मैंने एक अध्याय और जोड़ दिया जिससे आठ अध्याय हो गए। प्रथम अध्याय में अमृतलाल नागर के व्यक्तित्व और साहित्य साधना पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय में उपन्यास का अर्थ एवं स्वरूप, उपन्यास के तत्त्व, प्रकार, उद्भव एवं विकास और महाकाव्य, नाटक एवं कहानी से तुलना की गई है। तृतीय अध्याय में उपन्यास और नगरीय जीवन के सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए नगर का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र एवं स्वरूप, उद्भव और विकास दर्शाया गया है।
Hindu (हिंदू धर्म) (12711)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1906)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1097)
Ramayana (रामायण) (1382)
Gita Press (गीता प्रेस) (733)
Sahitya (साहित्य) (23190)
History (इतिहास) (8270)
Philosophy (दर्शन) (3393)
Santvani (सन्त वाणी) (2590)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist