प्रस्तावना (Vol-1)
वर्तमान यग में श्रीचैतन्यदेव के सुविमल कृष्ण प्रेम धर्म का जिन्होंने प्रचार एवं प्रसार किया है, उन महापुरुष के उपदेश ही उनके द्वारा कथित उपाख्यान के माध्यम से इस ग्रन्थ में प्रकाशित किये गये हैं । नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशत श्री श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद अपनी हरिकथा, प्रबन्ध एवं पत्रावली को जन समुदाय में सरल भाषा के द्वारा समझाने के लिए जिन उपारव्यानों से उपदेश देते थे अथवा भिन्न-भिन्न स्थानों पर जो शिक्षा वितरण करते थे उन्हीं प्रसंगों को इस ग्रन्थ में समाहित किया गया है।
इस ग्रन्थ में १२० उपाख्यान लिये गये हैं । इस ग्रन्थ के उपारव्यान समूह उपदेश के बर्हिआवरण मात्र है । यह ग्रन्थ केवल लौकिक कहानियों का आनन्द लेने के लिए नहीं है । यदि पाठकगण इन दृष्टान्तों को केवल लौकिक कहानियाँ समझकर अध्ययन करेंगे तो इस ग्रन्थ के प्रकाशन का उद्देश्य बिल्कुल निरर्थक होगा और पाठकगण इसकी मूल शिक्षा से वंचित रहेंगे । जिस प्रकार महाभारत में चूहे, बिल्ली आदि दृष्टान्तों के द्वारा नैतिक एवं परमार्थिक उपदेश दिये गये हैं, उसी प्रकार इन लौकिक उपाख्यानों के द्वारा केवल शुद्धभक्ति का उपदेश इस ग्रन्थ में दिया गया है । साधारण साहित्य में तो लौकिक ग्राम्यवार्ता के द्वारा नैतिक उपदेश दिये जाते हैं परन्तु इन लौकिक कथाओं में श्रीचैतन्यदेव की शिक्षा के अन्दर जो भक्ति नीति का सर्वोत्तम उपदेश दिया गया है, उसी का प्रभुपाद जी द्वारा जगत् में विस्तार किया गया है । जगत् के प्रति उनका यह अभूतपूर्व करुणादान है । श्रीचैतन्यदेव के अन्तरग निजजन श्रीरूप गोस्वामी पाद ने अपने भक्तिरसामृतनिधु ग्रन्थ में एक शास्त्र वाक्य द्वारा यह शिक्षा दी है कि - हे महामुने! मनुष्यगण जिन लौकिक एवं वैदिक कार्यों का अनुष्ठान करते हैं, भक्ति लाभ करने के इच्छुक उन्हीं कार्यों का व्यक्ति केवल हरिसेवा के अनुकूल होने पर ही पालन करेंगे ।
इसलिए इन लौकिक उपाख्यानों के अन्दर जो पारमार्थिक एवं आत्म - मंगलकारी उपदेश है । हम लोग उन्हीं का हृदय से अनुशीलनकरेंगे । यह मूल ग्रन्थ बंगला भाषा में है । इसके बहुत से संस्करण बंगला भाषा में प्रकाशित हुये हैं । परन्तु हिन्दी भाषी लोग इस ग्रन्थ के बंगला भाषा में होने के कारण प्रभुपादजी के द्वारा सरल भाषा में प्रदत्त उपदेशों एवं शिक्षाओं से वंचित ही रहे। इसी कारणवश इस ग्रन्थ को बंगला से हिन्दी में अनूवादित किया गया है । बंगला से हिन्दी-अनुवाद कर उसकी प्रतिलिपि प्रस्तुत करने में श्रीमती रीना दासी एवं आशा दासी तथा मुद्रण कार्य के लिए श्रीरामदास ब्रह्मचारी और प्रूफ संशोधन के लिए ओम प्रकाश ब्रजवासी एम. ए., एल. एल. बी; साहित्यरत्न, श्रीमाधव दास ब्रह्मचारी एवं ले - आऊट और कम्पोजिंग के लिए सुश्री नुपूरदासी की सेवा प्रचेष्टा अत्यन्त सराहनीय एवं विशेष उल्लेखनीय है। श्री श्रीगुरु - गौरांग गान्ध र्विका-गिरिधारी इन पर प्रचुर कृपाशीर्वाद वर्षण करें-उनके श्रीचरणों में यही प्रार्थना है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि भक्ति के साधकों में इस ग्रन्थ का समादर होगा । श्रद्धालुजन इस ग्रन्थ का पाठ कर श्रीचैतन्य महाप्रभु के प्रेमधर्म में प्रवेश करेंगे ।
शीघ्रतावंश प्रकाशन हेतु इस ग्रन्थ में कुछ त्रुटियों का रह जाना स्वाभाविक है । श्रद्धालु पाठकगण कृपापूर्वक उन त्रुटियों का संशोधन कर यथार्थ मर्म को ग्रहण करेंगे और हमें सूचित करेंगे, जिससे कि अगले संस्करण में हम उन त्रुटियों का संशोधन कर सकें।
विषय- सूची
1
रेखा गणित की शिक्षा
10
2
कस्तवं - स्वत्त्व
11
3
यैस, नो, वैरी गुड
13
4
व्याकरण का पण्डित
15
5
मेंढक की अठन्नी
17
6
मेंढकी का फटना
18
7
मधु और मूर्ख मधुमक्खी
20
8
भक्ति में त्याग और भोग कहीं
21
9
कानों से साधु को देखो
23
रात में सूर्य देरवना
27
आम रवाने की नकल करना
29
12
दो नशेबाज
30
लकड़हारे की बुद्धि
31
14
मांझी का स्वप्न
34
लगर उठाना
35
16
गीता का ससार
36
देलाय दे राम
38
नंगा पैंचो
40
19
ट्रेन के यात्री
43
चलती ट्रेन के आरोही
44
यह चोर
46
22
चार आने का भाव
49
धान के पौधे एवं श्यामा घास
51
24
एक बेवकूफ की गुरुसेवा
52
25
धन्यवाद अच्छे चावल एवं शुद्ध घी को
55
26
वृद्ध वानर की कहानी
57
बुरा कर सकता हूँ, भला तो नहीं कर
सकता, अब क्या पुरस्कार देगा ।
59
28
शालिग्राम से बादाम तोड़ना
61
लाल और काल
62
नमक हराम और नमक हलाल
64
दूध और चूना का घोल
67
32
कौआ और कोयल
69
33
पूर्व दिशा सूर्य की जननी नहीं है
70
घुड़दौड़ का घुड़ सवार
72
जिस ओर हवा बहती है
73
खुली छत पर पतंग उड़ाना
75
37
मझे नहीं मार सकते हैं
76
डॉक्टर का चाकू
77
39
तम भी चुप हम भी चुप
78
दूध भी पीऊँगा, तम्बाकू भी खाऊँगा
80
41
कूँए के मेंढक के जैसे
82
42
कैमुतिक न्याय
83
गो दुग्ध एवं गोमय एक वस्तु नहीं है ।
84
बगुले को बाँधने के जैसा
85
45
कोहनी में गुड़ लगाने जैसा
86
आकाश में मुष्टाघात करना
87
47
बंदर एवं बिल्ली के जैसे
88
48
चावल के कीड़े के जैसे
89
अधकचड़ी भक्ति
90
50
संसार रूपी बन्धन
91
बगले की निराशा
92
अंधपरम्परा न्याय
93
53
भेड़चाल चलना
95
54
अन्धपरम्परा - इंसाफ
97
अन्धे का हाथी देखना
98
56
देहली दीप
99
पत्थर और मिट्टी का ढेला
58
एक अन्धा और गाय की पूँछ
101
सौ कमल पत्र को एक साथ बिंधने जैसा
102
60
शस्यञ्च गृहमागतम्
103
भते पश्यति बर्बरा:
104
कदापि कुप्यते माता, नोदरस्ता हरतकी
105
63
विष वृक्षोऽपि संवर्द्धय स्वयं छेत्तु मसाम्प्रतम्
पशुनां लगुड़ो यथा
106
65
एक मनु सन्धित् सतोऽपरं प्रव्यवते
108
66
तातस्य कूप
दादी सासू के द्वारा डलिया के नीचे छुपाकर रखना
111
68
आलस्य का परिणाम
112
गोपाल सिंह की कथा
114
नाटक के नारद
71
अनुकरण
116
कुत्ते की पूँछ
117
मन्दिर में कौन?
118
74
दसों के चक्कर में पड़कर
भगवान पण्डित' भी 'भूत' बन गये ।
119
मूड़ी और मिश्री का भाव एक नहीं हो सकता है ।
121
पेड़ पर नहीं चढ़कर ही फल की प्राप्ति
122
''कटहल है पेड़ पर और मूँछ में तेल लगाना''
123
समय से पहले पकना
124
79
कुकर्मी की फूटी कौड़ी
125
गिलहरियों का सेतुबन्धन
126
81
गुरु को छोड्कर, कृष्ण का भजन करना
127
मरु के ऊपर गुरुगिरी
128
नदी सूखने पर ही नदी के पार जाऊँगा
130
पानी में ऊतरे बिना ही तैराकी बनना
132
दो नाव में पैर रखना
133
लोहार को ठगने की कोशिश के जैसे
134
लोहार और कुम्हार
135
बेवकूफ माली और बेवकूफ पण्डित
136
हाथ में पतरा और कब मंगलवार? के जैसे
138
कृष्ण नाम से सारे पापों का नाश होता है
139
काजी से हिन्दुपर्व के सम्बन्ध में पूछना
141
चोर का मन हमेशा अंधेरा ढूढता है
142
हाथी चले बाजार, कुत्ता भौंके हज़ार
143
94
विपरीत दिशा में मछली तैर सकती है
144
गोला खा डाला
145
96
छोटे साँप तो पकड़ नहीं सकते, चले अजगर पकड़ने
146
रो कर मामला जीतना
147
रावण की सीढ़ी
148
पेड़ का फल भी खाऊँगा और नीचे पड़ा भी खाऊँगा
150
100
द्वार खोलो रोशनी मिलेगी
151
एक गंजे की कहानी
153
पैसा फेंको, तमाशा देखो
''पलंग के टूटने पर वैरागी बना''
154
मछली वृक्ष पर रहती है
155
मेरे हृदय कमल में रहो
158
गौरांग को छोड़ सकते हैं दाढ़ी को नहीं
159
107
अकर्मण्य व्यक्ति का काम
161
उड़ा खोई गोविन्दाय नमा:
162
109
गाय को मारकर जूता दान
163
110
ऊपर की ओर थूक फेंकना
अपनी नाक काटकर दूसरे की यात्रा भंग करना
164
दूसरे का सोना कान में मत पहनो
165
113
चाचा अपना प्राण बचा
166
पत्थर से बना सोने का कटोरा
167
115
नकर गलजार
168
शिक्षक को शिक्षा देना
170
Show bottle
171
सोना, चाँदी और लोहे की जंजीर
173
दरिद्र एवं सर्वज्ञ
175
120
तीन भाई
179
प्रस्तावना (Vol-2)
नित्यलीला प्रविष्ट गौरपार्षद ॐ विष्णुपाद अप्टोत्तरशत भी श्रीलि भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की १४१ वी आविर्भाव तिथि में परमाराध्य नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशत श्रमिद्भक्तिवैदान्त वामन गोस्वामी महाराज जी के कृपाशीर्वाद से 'उपाख्यान उपदेश' का द्वितीय खण्ड प्रकाशित करते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है । 'उपाख्यान उपदेश' के प्रथम खण्ड में लौकिक उपाख्यान और लौकिक न्याय को आश्रय कर श्री भील प्रभुपाद के उपदेशों को संकलन किया गया था और द्वितीय खण्ड में प्रकृत उपाख्यान अर्थात् ' श्रीउपनिषद्', 'श्रीमहाभारत', 'श्रीमद्भागवत', 'श्रीचैतन्य भागवत', 'श्रीनरोत्तम विलास 'आदि ग्रन्थों के उपाख्यान समूह, जिनका भील प्रभुपाद अनेकों बार कीर्त्तन (कथा) कर उपदेश दिया करते थे । उन्हीं प्रसंगों को इस ग्रन्थ में सम्मिलित किया गया है ।
केवल 'उपन्यास' की कल्पित या कृत्रिम घटनाओं को ही 'उपन्यास' नहीं कहा जाता, अपितु 'पुरावृत्त' (पुराणों में दी गयी घटनाएँ) को भी उपाख्यान कहा जाता है । भील जीव गोस्वामी प्रभु ने तत्त्व - सदर्भ में वायु पुराण से एक श्लोक उद्धृत किया है । उसमें से भी उपाख्यान के सम्बन्ध में तथ्य प्राप्त किया जाता है ।
आरव्यानैनधापुयपारव्यानैर्गाथाभिर्द्विज - सत्तमा ।
पराण - संहिताश्चक्रे पराणार्थ - विशारद: ।।
(तन्यसन्दर्भ 14वां अनुच्छेद)
हे द्विजश्रेष्ठ गण! पुराणार्थ विशारद श्रीवेदव्यास ने आख्यान, उपाख्यान एवं गाथा - इन्हीं के सन्निवेश से ही पुराण संहिता का प्रणयन किया है ।
गौड़ीय - वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभु ने उक्त श्लोक की टीका में लिखा है - ''आख्यानै: - पञ्चललक्षणै: पुराणानि; उपाखानै-पुरावृते: गाथाभि - छन्दोविशेषैश्च । '' इससे जाना जाता है - 'आख्यान' का अर्थ है 'पंचलक्षणयुक्त पराण', 'पाख्यान' का अर्थ 'पुरावृत' और पितृ आदि के गीत को 'गाथा' कहा जाता है । वस्तुत: स्वयं दृष्ट विषयों का वर्णन, - 'आख्यान', और तद्विषय का वर्णन - 'उपाख्यान' है ।
इस ग्रन्थ में ३४ शास्त्रीय 'उपाख्यान' और उनसे मिली शिक्षा एवं उपदेश संग्रहीत हुए हैं । इसमें शुद्धभक्तिमय जीवन के अनुसरणीय अनवदय आदर्श, लोकोत्तर आचार्यो के अतिमर्त्य चरित्र, उपदेश और शुद्धभक्तिसिद्धान्त आदि मिलेंगे । पराणादि शास्त्रों के 'उपाख्यान' लोक समाज में प्रचलित होने पर भी इस ग्रन्थ में लोक समाज में प्रचलित वही गतानुगतिक (घिसे-पिटे) लौकिक विचार और मनोधर्म के सिद्धान्त का अनुकरण इसमें नहीं है । ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशत भी श्रीमद्भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद आदि श्रीरूपानुगवर गौरजनों ने जिन मौलिक और श्रौत सिद्धान्तों का कीर्त्तन किया है, वही शुकमुख विगलित निगमकल्पतरु के गलित (पका हुआ) फल की तरह अधिकतर शक्तिसज्वारकारी, अनर्थविनाशकारी भक्तिसिद्धान्तोपदेशामृत के रूप में इस ग्रन्थ में संरक्षित हुए हैं। वास्तविक आत्ममंगलकामी साधक इन श्रौत वाक्यों में इन शुद्धभक्तिमय जीवन - गठन के अनेकों उपादान प्राप्त कर पायेंगे । वर्तमान यग के जनसाधारण गल्पप्रिय हैं, तत्त्वसिद्धान्त श्रवण में बहुत कम लोगों का आग्रह देखा जाता है। परदुःखे दुःखी और परोपकार व्रतधारी श्रील भक्तिसिद्धान्त प्रभुपाद ने कहानी के माध्यम से वेद, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत और पुराणों की शिक्षाओं और सिद्धान्तों को सरल रूप में अवगत कराने की चेष्टा की है ।
यह मूल ग्रन्थ बंगला भाषा में है। इसके बहुत से संस्करण बंगला भाषा में प्रकाशित हुए हैं । परन्तु हिन्दी भाषा - भाषी लोग इस ग्रन्थ के बंगला भाषा में होने के कारण प्रभुपाद के उपदेशों से वंचित रहे हैं। इसी कारण इस ग्रन्थ को बंगला से हिन्दी में अनुवाद किया गया है । बंगला से हिन्दी में अनुवाद कर उसकी प्रतिलिपि प्रस्तुत करने में श्रीमती रीना दासी, मुद्रण कार्य के लिए श्रीरामदास ब्रह्मचारी और प्रूफ संशोधन एव ले - आउट तथा कम्पोजिंग के लिए सभी नूपुर दासी की सेवा प्रचेष्टा अत्यन्त सराहनीय है । भी श्रीराधागोविन्द गिरिधारीजी के श्रीचरण कमलों में प्रार्थना करता हूँ कि वे इन पर अपनी असीम कृपावृष्टि करें । सहृदय पाठकवृन्द! केवल गल्प की ओर ध्यान न देकर कथा में जो शिक्षा दी गयी हैं उन्हीं शिक्षाओं का अनुसरण करेंगे तभी हमारा उद्देश्य सफल होगा । यदि इस सस्करण में कुछ मुद्रा-कर प्रमाद आदि में किसीप्रकार की त्रुटि देखें तो वे स्वयं कृपा पूर्वक संशोधन कर हमें कृतार्थ करें ।
विषय-सूची
बड़ा मैं और अच्छा मैं
ब्रह्मा, इन्द्र एवं विरोचन
नचिकेता
जानश्रुति और रैक्क
सत्यकाम जाबाल
उपमन्य
अर्जुन और एकलव्य
दुर्योधन का विवर्त
धृतराष्ट्र का लौह भीम भंजन
शूकर रूपी इन्द्र और ब्रह्मा
रावण का छाया-सीता-हरण
परीक्षित और कलि
सती और दक्ष
ध्रुव
आदर्श सम्राट पृथु
राजा प्राचनिबर्हि
दस भाई प्रचेता
भरत एवं रन्तिदेव
अजामिल
चित्रकेतु
राजा सुयज्ञ
प्रहलाद महाराज
महाराज बलि
महाराज अम्बरीष
सौभरि ऋषि
राजर्षि रवदवांग
137
भृगु
अवधूत और चौबीस गुरु
अवन्ती नगरी के त्रिदण्डि-भिक्षु
156
भक्त व्याध
160
दुर्नीति, सुनीति और भक्ति नीति
ढोंगी विप्र
169
भक्ति विद्वेष का फल
दम्भ दैत्य और दीनता - देवी
180
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