इस किताब को ख़त्म करना बड़ा मुश्किल काम था। एक किस्से को लिखता, तब तक चार-पाँच और याद आ जाते। खैर, कहीं न कहीं तो रुकना ही था इसलिए मैंने क़िस्सों का अर्धशतक लगाकर नॉट आउट पविलियन लौटना ठीक समझा।
इस क़िस्सागोई के दौरान मैंने कुछ बातों का ध्यान रखा है, जैसे इस किताब को किसी भी किस्म के विवाद से दूर रखा जाए। किसी खिलाड़ी की कोई पोल खोल देने जैसा मकसद भी नहीं था। दरअसल, मेरे लिए क्रिकेट का मतलब सिर्फ़ विवाद कभी नहीं रहा। यही वजह है कि मैच फिक्सिंग, आईपीएल के तमाम विवाद और स्पॉट फिक्सिंग से जुड़े कई क़िस्से दिमाग़ में तो थे, लेकिन उन्हें नहीं लिखना ही ठीक समझा।
यह भी बड़ी दिलचस्प बात है कि करीब डेढ़ दशक तक खेल पत्रकारिता से जुड़े रहने के बाद भी क्रिकेट पर यह मेरी पहली किताब है। इससे पहले दो किताबें लिखीं। पहली पाकिस्तान के संस्मरणों पर थी और दूसरी टेलीविज़न चैनलों के न्यूज़रूम की दिलचस्प घटनाओं पर। इस किताब के लिए उकसाने का श्रेय दोस्त यासिर उस्मान को जाता है, जिन्होंने लगातार लिखने का दबाव बनाया। इसके बाद वो तमाम दोस्त जिन्होंने यह कह कर हौसला बनाए रखा कि ये कहानियाँ लोगों तक पहुँचनी चाहिए। खैर, अब किताब पूरी है और आपके हाथ में है।
आख़िर में पेंगुइन और मंजुल पब्लिशिंग की टीम का शुक्रिया, जिन्होंने किताब के प्रकाशन में बराबर की मेहनत की है। अपने-अपने समय के दिग्गज क्रिकेटर और दोस्ताना रिश्तों वाले करसन घावरी, अंशुमान गायकवाड़, मनिंदर सिंह, सबा करीम, मनोज प्रभाकर, चेतन शर्मा और कोच राजकुमार शर्मा का शुक्रिया जिन्होंने क़िस्सों को याद दिलाने में बहुत मदद की। अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहनों का शुक्रिया जो लगातार मेरी हौसलाअफजाई करते हैं। पत्नी पल्लवी का शुक्रिया क्योंकि वो लगातार याद दिलाती हैं कि बहुत दिन से कुछ लिखा नहीं। दोनों बेटियों शिवी और निष्ठा का शुक्रिया, क्योंकि किताब को पूरा करने में उनसे किए कुछ वादे अधूरे रह गए लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। और हाँ, क्रिकेट के खेल का शुक्रिया, जिसने मुझे क़िस्सागो बना दिया।
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