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बाबा की छत्रछाया में: Under the Shadow of Baba (The Reminiscences of the Granddaughter of Rajendra Prasad)

$29
Specifications
NZA981
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan
Author: तारा सिन्हा (Tara Sinha)
Language: Hindi
Edition: 2012
ISBN: 9788173094231
Pages: 251
Cover: Paperback
8.5 inch X 5.5 inch
290 gm
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Book Description

पुस्तक के विषय में

आधुनिक भारत के निर्माण में देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भूमिका अविस्मरणीय है। वे उन लोगों में से थे जिनकी कथनी और करनी में कोई फाँक नहीं थी। जिन्होंने अपने सादा जीवन और उद्भट प्रतिभा से भारतीय लोकतंत्र की पक्की नींव खड़ी की। भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने न सिर्फ हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूती प्रदान की बल्कि अपने आवास वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) को भी सादगी का प्रतीक बना दिया।

उनकी पौत्री श्रीमती तारा सिन्हा, जो लगभग बारह वर्षों तक राष्ट्रपति भवन में उनके साथ रहीं,के द्वारा लिखी गई यह पुस्तक एक पूरे युग की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की झाँकी प्रस्तुत करती है। राजेन्द्र बाबू का चुंबकीय व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि उनके समकालीन राजनीतिज्ञ, साहित्यकार, समाजसेवी और पत्रकार उन पर लिखने से खुद को रोक न सके। इन संस्मरणों में देश के मुखिया के साथ-साथ परिवारके मुखिया के रूप में राजेन्द्र बाबू की भूमिका से भी हम परिचित होते है।

लेखिका के विषय में

देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र श्री मृत्युंजय प्रसाद की चतुर्थ पुत्री। जन्म पटना में लेकिन पालन-पोषण एवं शिक्षा-दीक्षा पूज्य पितामह की छत्रछाया में दिल्ली में। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.. आनर्स तथा पटना विश्वविद्यालय से एम.. एवं पी-एच.डी।

सन् 1968 से सन् 2000 तक पटना विश्वविद्यालय के अंगीभूत महाविद्यालय मगध महिला कॉलेज में प्राध्यापन। भाषा एवं साहित्य विषयों पर शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं प्रकाशन।

संस्मरण लेखन में विशेष रुचि। चार पुस्तकें तथा अनेक रचनाएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित । दो खंडों में प्रकाशित पत्रों के संकलन 'राजेंद्र बाबू पत्रों के आईने में' का संपादन।

सन् 1998 में 'राजेंद्र साहित्य परिषद', पटना द्वारा महाकवि रुद्र स्मृति पुरस्कार से सम्मानित।

प्रकाशकीय

प्रस्तुत पुस्तक भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद की पौत्री (स्व० मृत्युंजय प्रसाद जी की पुत्री) डॉ० तारा सिन्हा की लिखी हुई है। इसमें उन्होंने राष्ट्रपति भवन की विभिन्न गतिविधियाँ और सरस संस्मरण दिए हैं। इन संस्मरणों का पटल विशाल है। राजेंद्र बाबू का जीवन यद्यपि सरल और सादा था, तथापि उनकी रुचियाँ बहुत ही व्यापक थीं। धर्म, संस्कृति, दर्शन, शिक्षा, राजनीति, साहित्य आदि सब में वह गहरी दिलचस्पी रखते थे। राष्ट्रपति भवन आए दिन इन प्रवृत्तियों से मुखरित होता रहता था।

लेखिका उन प्रवृत्तियों से अधिकांशत : संबद्ध रहीं। यात्राओं में भी प्राय : अपने बाबा के साथ गईं । यही कारण है कि उनके विवरण बड़े ही सजीव और रोचक हैं। उन्हें पढ़ते-पढ़ते अत्यंत मधुर तथा बोधप्रद चित्र सामने आ जाते हैं। इन चित्रों स्पे राजेंद्र बाबू के महान व्यक्तित्व और कृतित्व पर भी, प्रकाश पड़ता है।

लेखिका की भाषा और लेखन शैली बडी सरस तथा प्रवाहपूर्ण है। उसमें शब्दों का आडंबर नहीं है। उन्हें जो कहना है, वह सीधे-सादे किंतु प्रांजल भाषा में कह दिया है। इसी से पुस्तक पढ़ते समय निराला आनंद आता है।

यह पुस्तक लेखिका के मात्र संस्मरणों का संग्रह नहीं है, इसमें राष्ट्रपति भवन का इतिहास भी है-वह इतिहास जो अन्य पुस्तकों में नहीं मिलेगा।

राष्ट्रपति भवन से राजेंद्र बाबू की विदाई के समय पं० जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि राजेंद्र बाबू का राष्ट्रपतित्व-काल 'राजेंद्र बाबू युग' के नाम से जाना जाएगा । इससे स्पष्ट है कि वह काल हमारे इतिहास का बड़ा गौरवशाली काल था।

उस युग के ये संस्मरण चाव से पड़े जाएँगे और पाठकों के लिए शिक्षाप्रद सिद्ध होंगे, ऐसा हमारा विश्वास है।

 

अनुक्रम

 

1

निवेदन

11

2

आभार

13

3

भूमिका

15

4

पटना से दिल्ली

19

5

राष्ट्रपति भवन में

33

6

अभिनव संस्कार

47

7

राष्ट्रीय पर्व और स्वागत-समारोह

59

8

सांस्कृतिक परिवेश

75

9

शिक्षा-दीक्षा

91

10

यात्राएँ

121

11

स्सिग्ध अभिभावकत्व

153

12

विवाह-यज्ञ

173

13

विदा दिल्ली : अलविदा राष्ट्रपति भवन

195

14

उपसंहार

211

15

परिशिष्ट

221

Sample Page


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