एक कथा है। धरती बन जाने के बाद इस पर सब से पहले तीन जीव आए-आदमी, गधा और उल्लू। तीनों अपनी-अपनी आयु ले कर आए। आदमी की आयु थी बीस वर्ष, गधे की साठ और उल्लू की अस्सी वर्ष। यहां रहते हुए तीनो को अपने-अपने जीवन के जो अनुभव हुए, उसको देखते हुए उनको लगा कि आयु देने में भगवान ने उन लोगों के साथ न्याय नहीं किया है। आदमी को लगा कि यहां तो मौज ही मौज है लेकिन, यह मौज सिर्फ बीस वर्षों के लिए है। गधे पर रोज लदनी लद जाए। उसने सोचा-साठ वर्षों तक उसका यों ही बोझ लाद कर रहना होगा। उल्लू को दिन में दीखता नहीं था। वह पेड़ की डाल पर चुपचाप बैठा रहता। न भोजन की टोह में निकल सकता था-और न पक्षियों के चोंच मारने पर भाग सकता था। सब सहना था और वह भी वर्ष-दो वर्ष नहीं, अस्सी वर्षों तक !
तीनों मिले और उन तीनों ने भगवान के इस अन्याय की चर्चा ही नहीं की, भगवान के पास डेलीगेशन ले जाने का निर्णय भी किया। तीनों गए और भगवान का ध्यान उनके उस अन्याय की ओर अपने-अपने ढंग से आकृष्ट किया। आदंमी ने आयु बढ़ाने की याचना की और गधे तथा उल्लू ने आयु घटाने की।
भगवान ने शान्त चित्त से उन तीनों को सुना। गलती हो गई थी, यह भी उन्होंने महसूस किया लेकिन, मज़बूर थे। ब्रह्मा की लकीर में रद्दो बदल नहीं कर सकते थे। यह बेबसी उन्होंने जाहिर की।
ये तीनों बहुत गिड़गिड़ाए। आखिर वे पत्थर का दिल ले कर तो नहीं बैठे थे। निकलने का एक रास्ता उनको दीख गया। वे बोले, ब्रह्मा की लकीर में तो वे कुछ नहीं कर सकते थे लेकिन आप तीनों आपस में आयु का ऐडजेस्टमेंट अगर कर लें तो उनको उसमें में कोई आपत्ति नहीं होगी।
तीनों खुश हो गए। गधे ने कहा- "मैं अपनी आधी ज़िन्दगी आदमी को देता हूं।
आदमी ने सोचा, चलो, बीस से पचास वर्ष तो मौज-मस्ती के हुए। गधे ने अपना वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि उल्लू ने कहा- "मैं भी अपनी आधी ज़िन्दगी आदमी को देता हूं।"
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