परम सेवा: The Ultimate Service

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Item Code: GPA202
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Language: Hindi
Pages: 208
Cover: Paperback
Other Details 8 inch x 5.5 inch
Weight 170 gm
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Book Description

निवेदन

गीताप्रेसके संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका बचपनसे ही अध्यात्म-पथ पर चल रहे थे, भक्तिके प्रचारके निमित्त उन्होंने गीताप्रेसकी स्थापना की । वहाँ सस्ते मूल्यपर गीता, रामायण तथा अन्य पारमार्थिक साहित्य जनसाधारणको मिलनेकी व्यवस्था की । स्वर्गाश्रममें गंगाके किनारे वैराग्यमय वटवृक्षपर तीन-चार महीनेके लिये सत्संगका आयोजन करना प्रारम्भ किया । किसी प्रकार मनुष्य भगवान्की ओर अग्रसर हों इसके लिये अथक प्रयास किया । अन्य स्थानोंपर घूम-घूमकर भी भगवद्भावोंका प्रचार करते रहे ।

ऐसे जनहितकारी महापुरुषने एक अनोखी युक्ति सोची कि मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम, गीताजी आदि सुनाकर उनको मुक्त किया जाय । केवल मरणासन्न व्यक्ति ही नहीं, अपितु उसको भगवन्नाम, गीताजी सुनानेवाले भी मुक्त हो जायँ । एक प्रकारसे यह मुक्तिकी लूटका उपाय सोचा । इस हेतु उन्होंने गोविन्द भवन कोलकाता, गोरखपुर आदिमें परम सेवा समितिकी स्थापना की, वहाँ लोगोंको इस परम-सेवाके लिये उत्साहित किया और कितने ही लोगोंको इस प्रकार मुक्त किया ।

लोगोंको जन्म-मरणके चक्रसे छुड़ानेके लिये बहुतसे प्रयास उन्होंने जीवनकालमें किये और उनकी प्रेरणासे अभी भी ऐसे कार्य हो रहे हैं । उन्होंने विभिन्न अवसरोंपर भगवन्नामकी महिमा और परम सेवाकी महत्ता पर विशेष रूपसे प्रवचन दिये । मृत्युके समय रोगीके साथ कैसे उपचार किया जाय-इन बातोंपर प्रकाश डाला । उनके उपरोक्त विषयोंपर सम्बन्धित प्रवचनोंको संकलित करके प्रस्तुत पुस्तकमें सम्मिलित किया गया है । भोग और शरीरका आराम ही मनुष्यको भगवत्प्राप्तिसे विमुख करानेवाले हैं । भोग और शरीरकेआराम महान् दुःखदायी तथा भगवत्प्राप्तिमें महान् बाधक हैं । कलियुगमें नामजप ही सर्वश्रेष्ठ साधन है, इन विषयोंके प्रवचन भी इस पुस्तकमें दिये गये हैं ।

श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज श्रीगोयन्दकाजीके इस काममें पूरे सहयोगी रहे हैं । श्रद्धेय स्वामीजीके नाम-महिमा एवं परमसेवा पर कुछ प्रवचन इस पुस्तकमें सम्मिलित कर लिये गये हैं । इन संतोंके भाव पाठकोंको एक साथ प्राप्त हो जायँ-इस दृष्टिसे यह प्रयास किया गया है ।

पाठकगण इस पुस्तकको मन लगाकर पढ़ें एवं अपने प्रिय प्रेमी सज्जनों और बान्धवोंको इस पुस्तकको पढ़नेकी प्रेरणा करें । इस पुस्तकका पठन-पाठन हम सभीके जीवनको उन्नत बना देगा, ऐसी हमें आशा है ।

 

विषय-सूची

 

विषय

पृं.सं.

1

परम सेवा

7

2

यमराजके यहों चर्चा ही नहीं

12

3

सुननेवाले, सुनानेवाले दोनोंका कल्याण

14

4

दु:खका मूल है ममता

18

5

भगवान्के ध्यानरूपी रस्सेको न छोड़ें

26

6

भगवान्की इच्छामें अपनी इच्छा मिला दें

27

7

भगवान् और महापुरुषोंके प्रभावकी बातें

30

8

अपने साधनका निरीक्षण करें

31

9

जप करनेवालेके आनन्द और शान्ति स्वत: रहती है

34

10

सारे तीर्थोंकी यात्रासे बढ़कर एक भगवन्नाम

37

11

अगर काममें ले तो नयी है

39

12

समयकी अमोलकता

40

13

निष्काम भावसे भजन करें

50

14

सर्वदा भगवत्स्मरणका उपाय

51

15

भगवान्की गारन्टी

57

16

बहुत -से जन्म तो हमारे हो चुके

60

17

कब चेतोगे

67

18

भगवान्के चिन्तनका महत्त्व

70

19

संसारसे वैराग्य और भगवान्में प्रेम

85

20

एक बार भगवान्को प्रणाम करनेका महत्त्व

88

21

भगवान् स्वयं आकर ले जाते हैं

93

22

भगवान् भक्तकी इच्छा पूर्ण करते हैं

102

23

व्यवहारसे भजनमें बाधा न आवे

110

24

भगवान्की प्राप्ति २४ घण्टेमें हो सकती है

112

25

भगवान्के ध्यानके लिये प्रेरणा

115

26

ध्यानावस्थामें प्रभुसे वार्तालाप

117

27

अन्तकालके स्मरणका महत्त्व

124

28

भगवान्को छोड्कर भोगोंको चाहना मूर्खता

129

29

पद्यपुराणके अनुसार पुत्रका कर्तव्य

126

30

नामजपसे विधाताके लेखका मिटना और

 
 

भगवान् द्वारा रक्षा

139

31

भगवान् प्रसन्न हों वह काम करें

143

32

मरणासन्नको भगवन्नाम सुनाना अति महत्त्वपूर्ण

151

33

मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम सुनानेसे मुक्ति

154

34

भगवान्के ध्यानमें मृत्यु हो तो आनन्द- ही आनन्द है

156

35

सबका कल्याण हो यह भाव रखे

157

36

मृत्यु - समयके उपचार

159

37

सत्सङग्के अमृत - कण

162

38

भगवान्का भजन करो

164

39

भगवन्नाम सुनाना सर्व श्रेष्ठ कार्य

165

40

भगवन्नामकी तुलना ही नहीं

170

41

श्रीमद्भागवतमहापुराणमें भगवन्नाम - महिमा

184

 

 

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