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उद्धव संदेश : Uddhava Sandesh

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Item Code: GPA083
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Author: डा. महानामव्रत ब्रह्मचारी (Dr. Mahanamvrat Brahmchari)
Language: Hindi
Edition: 2011
ISBN: 9788129305640
Pages: 203
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch x 5.5 inch
Weight 170 gm
Fully insured
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Book Description

सम्पादकीय निवेदन

 

श्रीमहानामव्रतजी ब्रह्मचारी बंगाल प्रान्त में एक उच्चकोटि के साधक रहे हैं । इनके द्वारा श्रीमद्भागवत एवं श्रीमद्भगवद्रीता-जैसे आर्ष ग्रंथो की सुमधुर एवं प्रभावोत्पादक व्याख्या बँगला भाषा में प्रस्तुत हुई है।

पिछले दो-तीन वर्षोंमें 'कल्याण 'के मासिक अङ्कों में धारावाहिक रूप से 'उद्धव-संदेश' का प्रकाशन होता रहा है, जिसको पाठकों ने विशेष चावसे पढ़ा । श्रीमद्भागवत में भगवान् श्रीकृष्ण का उद्धव के द्वारा ब्रजवासियों तथा व्रजाक्नाओं को संदेश भेजने का प्रसंग अत्यन्त मार्मिक है । इसके सम्पूर्ण भावों की अभिव्यक्ति शब्दों में होनी साधारण बात नही है, परंतु ब्रह्मचारीजीने बँगला भाषामें इस प्रसंगकी अत्यन्त मधुर एवं चित्ताकर्षक प्रस्तुति की है, जिसका हिन्दी अनुवाद सुललित भाषामें श्रीचतुर्भुजजी तोषणीवालके द्वारा सम्पन्न हुआ । 'कल्याणके प्रेमी पाठकों एवं साधकोंके द्वारा यह आग्रह होता रहा कि इसे पुस्तकरूपमें प्रकाशित किया जाय । भगवत्कृपासे अब यह सुयोग प्राप्त हुआ है और यह पुस्तक-रूपमें प्रस्तुत है ।

आशा है पाठकवृन्द इस संकलनको पढ़कर लीलापुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण और उनके अत्यन्त आत्मीय व्रजवासीजनोंके दिव्य भावोंसे किंचित् अनुप्राणित अवश्य होंगे ।

 

विषय-सूची

1

श्रीभगवान् की भक्त-दु:खकातरता

1

2

व्रजगमनकी असमर्थता

5

3

दूत-प्रेषणकी सार्थकता

11

4

प्रस्तुतिका आन्तरिक हेतु

15

5

व्रजकी शुभ यात्रा

22

6

व्रज-प्रवेशका अनधिकार

28

7

नन्दराजके संग निरानन्द वार्तालाप

34

8

अप्रत्याशित व्यर्थताका अनुभव

41

9

सांत्वना -योग्य भाषाका दारिद्र्य

45

10

नन्दराजका दीनभाव

48

11

श्रीकृष्णकी भगवत्ता

52

12

माधुर्यावगाहनकी अक्षमता

58

13

व्रंजवधुओंकी निकटवर्तिता

63

14

यदुपतिकी मित्रता

70

15

 आगमनका प्रयोजन

76

16

गोपियोंकी मर्मव्यथा

80

17

श्रीराधाविरह -वेदनाका प्राकटय

87

18

चित्रजल्पकी मूल कथा

91

19

प्रजल्प -परिजल्प

98

20

विजल्प -उज्जल्प'

104

21

संजल्प - अवजल्प

113

22

अभिजल्प, आजल्प, प्रतिजल्प, सुजल्प

124

23

उद्धवकी व्याकुलता

137

24

प्रेमकी सर्वात्मकता

144

25

प्रेम-विवर्धन-परायणता

151

26

कृष्ण-प्रीतिकी सुगभीरता

157

27

नन्दनन्दनकी नवरूपता

164

28

विरह-व्यथाका उपशमन

172

29

उद्धवकी परमप्रियता

175

30

उद्धवद्वारा लतागुल्म होनेकी कामना

181

31

पदरजकी प्रार्थनाकी चमत्कारिता

190

32

वेदनापूर्ण व्रजवार्ता

198

 

**Sample Pages**













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