भारत सरकार के संस्कृति मन्त्रालय के अधीन संचालित रामपुर रज़ा लाइब्रेरी देश के उन ग्रन्थागारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है जिनमें पाण्डुलिपियों के संग्रह भारी संख्या में उपलब्ध ही नहीं, संरक्षित भी हैं और जो देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित करते हैं।
लाइब्रेरी के भारी भरकम संग्रह में रामकथा सम्बन्धी संस्कृत और हिन्दी की अनेक पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं और फारसी में लिखित सुमेरचन्द की रामायण की सचित्र पाण्डुलिपि ऐसी पाण्डुलिपि है जो लाइब्रेरी के संग्रह का गौरव ग्रन्थ कही जा सकती है। गौरतलब है कि इस रामायण को तीन खण्डों में सचित्र प्रकाशित करके लाइब्रेरी ने विद्वानों को इसके अध्ययन की सुविधा सहज ही प्रदान कर दी है। इसके अतिरिक्त लाइब्रेरी में गोस्वामी तुलसीदास के ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ तथा मुद्रित पुस्तकें भी उपलब्ध हैं, जिनकी प्रदर्शनी विगत 5 अक्टूबर से 14 अक्टूबर 2017 तक वाल्मीकि जयन्ती के शुभ अवसर पर दरबार हाल में आयोजित की गई थी।
प्रस्तुत पुस्तक सुप्रसिद्ध पाण्डुलिपि विशेषज्ञ उदयशंकर दुबे जी द्वारा गोस्वामी तुलसीदास के जीवन के सम्बन्ध में पाण्डुलिपियों के आधार पर लिखे गए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह है, जो गोस्वामी जी का प्रामाणिक जीवन-चरित लिखे जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के प्रकाशन से जहाँ एक ओर लाइब्रेरी के गौरवग्रन्थों की संख्या में अभिवृद्धि होगी, वहीं लाइब्रेरी के संग्रह में उपलब्ध गोस्वामी जी के ग्रन्थों की उन पाण्डुलिपियों की ओर भी विद्वानों तथा शोधकर्ताओं की दृष्टि जायगी जिनका उपयोग सम्प्रति विद्वानों द्वारा नहीं किया गया है।
पुस्तक के सम्पादन हेतु डा. प्रदीप जैन के प्रति आभार व्यक्त करना मेरा परम कर्त्तव्य है, जिन्होंने पुस्तक को मनोयोग के साथ इस रूप में प्रस्तुत किया है।
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम सत्य सनातन भारतीय संस्कृति के प्राण-तत्त्व हैं जो समूचे भारतीय समाज के लिये अजस्र प्रेरणा स्रोत हैं। प्राचेतस महर्षि वाल्मीकि द्वारा देववाणी संस्कृत में निबन्धित रामायण सहस्राब्दियों से मात्र संस्कृत से सुपरिचित विद्वत्समाज के लिये उपयोगी बनी आती है, जबकि संस्कृत से नितान्त अनभिज्ञ बहुसंख्यक जनता उससे लाभान्वित न हो सकी। इसी असंगति को लक्ष्य करके गोस्वामी तुलसीदास ने रामकथा को जनसामान्य की भाषा में निबन्धित करने का शिव-संकल्प लिया और लगभग 450 वर्ष पूर्व संवत् 1631 वि० तदनुसार सन् 1574 ई० में रामचरितमानस की रचना का श्रीगणेश कर दिया-
संवत सोरह सै इकतीसा। करौं कथा हरिपद धरि सीसा ॥
यद्यपि गोस्वामी जी ने रामचरितमानस के पूर्णता को प्राप्त होने के काल का कहीं कोई निर्देश नहीं किया तथापि विद्वानों के अनुसार संवत् 1635 वि० में यह महाग्रन्थ पूर्णता को प्राप्त हो पाया था।
गोस्वामी जी द्वारा प्रणीत रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में अनेकानेक स्थलों पर कथा-प्रसंगों में अनेक भिन्नताएँ विद्यमान हैं जिसका प्रमुख कारण यही प्रतीत होता है कि क्योंकि गोस्वामी जी की रचना का उद्देश्य जनसामान्य का हितसाधन था अतः उन्होंने कथा में वैचित्र्य को स्थान देकर कथा की रोचकता में श्रीवृद्धि कर दी। इस सम्बन्ध में गोस्वामी जी स्वयं स्पष्ट शब्दों में उद्घोषणा करते हैं-
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध विचित्र बनाई ॥
भाषाबद्ध करब मैं सोई। मोरे मन प्रबोध जेहि होई ॥
जिस रामकथा को गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी अन्तःप्रेरणा से, अपने अन्तःकरण के सुख के लिये (स्वान्तः सुखाय) और अपनी बुद्धि निर्मल करने के लिये (मतिमञ्जुल मातनोति) जनसामान्य के लिये सुगम एवं सुबोध लोकभाषा में निबन्धित (भाषानिबन्ध) करते हुए रामचरितमानस की रचना की, वही रामचरितमानस जनसामान्य का ही कण्ठहार नहीं बना, वरन् साहित्य-संसार का भी कण्ठहार बना, जो इस तथ्य से भली प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर जितने शोध-प्रबन्ध एवं पुस्तकें लिखी गईं, उतने अन्य किसी भी रचनाकार पर नहीं लिखे जा सके।
यही नहीं, रामचरितमानस के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास ने राम को मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में स्थापित किया जो उनकी सामाजिक दृष्टि की व्यापकता का दिग्दर्शन कराता है। गोस्वामीजी की दृष्टि भारतीय समाज को एक आदर्श समाज में रूपान्तरित करने की दिशा में सक्रिय थी और यही कारण है कि उन्होंने भारतीय समाज को सामाजिक मर्यादाओं का सम्यक् निर्वहन करने हेतु प्रेरित करने के लिये उसके समक्ष राम के मर्यादापुरुषोत्तम रूप का आदर्श प्रस्तुत किया। ध्यातव्य है कि किसी भी समाज की व्यवस्थाओं के निर्बाध परिचालन के लिये समाज में मर्यादाओं का सम्यक् पालन अत्यावश्यक होता है और समूचे विश्व में जो विभिन्न धर्म, मत, सम्प्रदाय हैं उनके मूल में भी मर्यादित समाज की अवधारणा पाई जाती है, जो समस्त धर्मों, मतों तथा सम्प्रदायों के मूलभूत साम्य को रेखांकित करता है।
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