इस पुस्तक के विषय में
जीवन का उद्देश अपने वास्तविक स्वरूप अथवा आत्मा को जान लेना है जिसके जान लेने पर कुछ भी जानना शेष नहीं रहता | प्रत्येक व्यक्ति को जानना चाहिए कि भगवान उसके अन्तर में है, वह भगवान में है और भगवान उसमें है | भगवत्प्राप्ति जीवन का परम लक्ष्य है | इस लक्ष्य से रहित मानव जीवन व्यर्थ है, सार रहित है |
इस अध्यात्म -पथ पर उन्नति करने वालों को आध्यात्मिक जीवन कि मूलभूत तत्त्वों को जानना चाहिए | इस दिशा में प्रस्तुत ग्रन्थ 'ज्योतिषपथ की ओर' कुछ व्यावहारिक ओर उपादेय सूचनाऍ प्रस्तुत करने का उद्देश पूरा होता है | इसमें आध्यात्मिक जीवन कि मूलभूत तत्त्व निहित हैं | यह ग्रन्थ परम सत्य कि सच्चे जिज्ञासुओं के सेवार्थ तथा मानव मात्र के लिए लाभप्रद अध्यात्म -ज्ञान के प्रसार हेतु सद्प्रयास हैं | इस प्रकार के ग्रथ प्राय: एक ही विषय - वस्तु पर आधारित होते हैं , परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ 'जोतिषपथ की ओर' में अध्यात्म - पथ के साधको के लिए व्यवहारार्थ अनेक उपयोगी संकेत दिए गये हैं जो श्री स्वामी चिदानन्द जी महाराज की सन 1969-70 की विदेश - यात्रा के दौरान विविध स्थानों पर दिये हुए भाषणों से संकलित किये गये हैं |
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