पैनी तराशी हुई गध शैली , विलक्षण विम्बसृष्टि और दो चरित्रों- ललना और भतीजा-के परस्पर टकराते स्मृति प्रवाह के सहारे उद्घाटित होते है तिरोहित के पात्र : उनकी मनोगत इच्छाएँ , वासनाएँ व जीवन से किये गए किन्तु रीते रह गए उनके दावे |
अंदर -बाहर की अदला-बदली को चरितार्थ करती यहाँ तिरती रहती है एक रहस्य्मयी छत | मुहल्ले के तमाम घरो को जोड़ती यह विशाल खुली सार्वजानिक जगह बार बार भर जाती है चच्चो और ललना के अंतर्मन के घेरो से | इसी से बनता है कथानक का रूप | जो हमें दिखाता है चच्चो /बहनजी और ललना की इच्छाओ और उनके यथार्थ और समाज द्वारा देखी गयी उनकी असलियत में |
निरंतर तिरोहित होती रहती है वे समाज के देखे जाने में |
किन्तु चच्चो /बहनजी और ललना अपने अन्तर्द्वन्दो और संघर्षो का सामना भी करती है | उस अपार सीधे -सच्चे साहस से जो सामान्य जिन्दगियों का स्वभाव बन जाता है |
गीतांजलि श्री ने इन स्त्रियों के घरेलू जीवन की अनुभूतियों -रोजमर्रा के स्वाद , स्पर्श , महक , दृश्य -को बड़ी बारीकी से उनकी पूरी सेन्सुअलिटी में उकेरा है |
मौत के तले चलते यादो के सिलसले में छाया रहता है निविड़ दुःख | अतीत चूँकि बीतता नहीं, यादो के सहारे अपने जीवन का अर्थ पाने वाले तिरोहित के चरित्र -ललना और भतीजा -अविभाज्य हो जाते है दिवंगत चच्चो से | और चच्चो स्वयं रूप लेती है इन्ही यादो में |
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