'वसन्त की प्रतीक्षा में' के बाद उपन्यासों की श्रृंखला में 'टेढ़ा चाँद' मेरो ग्यारहवीं औपन्यासिक कृति है। हर उपन्यास अपना फलक लिये हुए पाठकों के समक्ष जीवन की विवेचना, समालोचना और विश्लेषण करने की कोशिश करता है। उपन्यास का कथानक महत्वपूर्ण होता है। हर उपन्यास के पीछे लेखक का दृष्टिकोण हुआ करता है 'टेढ़ा चाँद' जैसा शीर्षक से ही सुस्पष्ट है जीवन के उस पक्ष की ओर इंगित कर रहा है जो खूबसूरत तो है लेकिन किन्हीं कारणों से आपना सौन्दर्य खो चुका है। यह नजरिये का प्रश्न हो सकता है। पूर्णमासी का भरा-पूरा चाँद और हँसिये की तरह टेढ़े चाँद के सौन्दर्य में अन्तर होता है। चूँकि साहित्य रूपकों का इस्तेमाल करता है, लेखक विम्बों के माध्यम से अपनी बात पाठकों के समक्ष रखने की पहल करता है।
इस उपन्यास में जीवन की विवेचना करते हुए मैंने उस तथ्य की ओर रोशनी फेंकने की कोशिश की है जिसने हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन को बुरी तरह ग्रसित कर रखा है। हम सहमत हों या नहीं, हमें उस कुंठित और कट्टर सोच का शिकार होना ही होता है जिसने वर्तमान में हमारी सभ्यता को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। अरुणेश और चाँदनी की अकस्मात मुलाकात और रश्मि की दुर्घटना में मौत स्वयं में उतनी महत्वपूर्ण नही है जितनी इन तीनों किरदारों के जीवन को जख्मी और पंगु बनाने वाली शक्तियाँ जो पर्दे के पीछे से अपनी सक्रिय उपस्थिति के फलस्वरूप उनकी खुशियों को निगलने की भरपूर कोशिश करती हैं।
कहने को तो व्यक्ति का धर्म उसका निजी मसला है। व्यक्ति किस धर्म या पंथ या मजहब का अनुयायी है यह उसका व्यक्तिगत मुआमला है। यह उसकी आस्था और मान्यता से सम्बन्धित प्रश्न है कि वह अपने आप को किस धर्म या विश्वास से जोड़कर जीवन जीना चाहता है।
यद्यपि अरुणेश और चाँदनी का कोई पूर्व परिचय नहीं है लेकिन उनका आकस्मिक मिलन नियति द्वारा पूर्व निर्धारित योजना का अभिन्न अंग प्रतीत होता है। रश्मि की प्रतीक्षा करते हुए अरुणेश अब निराश हो जाता है, तभी चाँदनी उसे अपने पास बैठी हुई प्रतीत होती है। संक्षिप्त बातचीत के उपरान्त दोनों एक-दूसरे के अत्यन्त नजदीक आ जाते हैं। उनमें एक मानवीय रिश्ता कायम हो जाता है जो दो मनुष्यों में सहज ही उत्पन्न हो जाता है अगर उनकी सोच एक जैसी हो। लेकिन रश्मि की दुर्घटना में मृत्यु इन दोनों को नहीं चाहते हुए उन समाजविरोधी तत्वों की नजरों में ला खड़ी करती है जिनका एकमात्र मकसद धार्मिक उन्माद के जरिये समाज में नफरत की चिन्गारी से शोले पैदा करना हुआ करता है। जितनी ऊँची लपटें, उतनी ही अधिक उनकी कामयाबी। अरुणेश और चाँदनी अलग-अलग धर्म के होते हुए भी एक-दूसरे को दिल से चाहते हैं। पहले तो उन दोनों पर इसलिए हमला किया जाता है कि वे रश्मि की हत्या के चमदीद गवाह हैं लेकिन बाद में चाँदनी के साथ कोरियर लेकर आने के बहाने घर में घुसे युवक द्वारा बलात्कार और वह भी उस हालत में जब कोरोना संक्रमण के दौरान उसका शरीर बुखार से तप रहा था स्त्रियों के साथ किये जाने वाले अपराध की ओर हमारा ध्यान बरबस ही खींचते हैं। इस घटना के बाद चाँदनी और अरुणेश एक दूसरे के और भी करीब आ जाते हैं। चाँदनी द्वारा इस घटना की पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखवाना और इसके बाद उसके बलात्कारी की भी सड़क दुर्घटना में मौत एक तरफ यह तथ्य स्पष्ट करता है कि अभी भी लोग संसार की न्यायिक व्यवस्था से अधिक ईश्वरीय विधि व्यवस्था में विश्वास करते हैं।
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