लेखकों के बारे में
प्रोफेसर राज किशोर विश्वकर्मा, एम.ए.; एम.फिल; पी.एच.डी, ज्योतिष कोविद; ज्योतिष वाचस्पति; ज्योतिष प्राचार्य भारतीय आर्थिक सेवा से स्वेच्छा निवृत्त एवं भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली से अवकाश प्राप्त प्रोफेसर का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद रायबरेली में सन् 1937 में हुआ। ज्योतिष में इनकी अभिरूचि जैसा कि गांव में आने वाले भड्डरियों ने की थी, ज्येष्ठ पुत्री पूर्णिमा के जन्मोपरान्त सन् 1962 से शुरू हुई। सन् 1963 में एक महिला के बारे में इनकी सहजबुद्धि द्वारा दी गई भविष्यवाणी चमत्कारी सिद्ध हुई और ज्योतिष के प्रति इनकी विशेष रूचि एवं जिज्ञासा बढ़ी। यह ईश्वर की इच्छा ही थी कि सन् 1987 में भारतीय विद्या भवन में भारतीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद् की दिल्ली शाखा-1 के तत्वावधान में एवं श्री के.एन.राव के मार्गदर्शन में ज्योतिष शास्त्र का विधिवत् पठन्-पाठन आरम्भ हुआ और प्रोफेसर विश्वकर्मा को अवैतनिक संकाय सदस्य के रूप में ज्योतिष पढ़ाने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
ज्योतिष में आस्था और अगाढ़ विश्वास के फलस्वरूप उन्होंने 1997 तक अवैतनिक शिक्षक एवं पाठ्यक्रम निदेशक के रूप में भारतीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद दिल्ली शाखा की सेवा की। ज्योतिष में अटूट विश्वास के कारण प्रोफेसर विश्वकर्मा ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रवर्तकों के प्रति बड़े ही निष्ठावान हैं और इसी कारण इन्होंने सन् 1998 में डॉ. बी.वी. रमन एवं श्रीमती राजेश्वरी रमन के सम्मान में अपनी ज्योतिष की पहली पुस्तक Tajikashastra-AGuide to Annual Horoscope or Varshaphala (संयुक्त लेखक के. रंगाचारी) की रचना की जिसका हिन्दी रूपान्तर इस समय आपके हाथों में हैं। और दूसरी पुस्तक की रचना सन् 1999 में श्री के. एन. राव के सम्मान में Empirical Insight in Vedic Astrology की ।
आचार्य कृष्णमाचारी रंगाचारी, बी.ए., बी.जी.एल, एसी.आई बी.; सीएआईआईबी, एफसी.आई.बी, राष्ट्र भाषा प्रवीण, ज्योतिष विशारद; ज्योतिष कोविद ज्योतिष वाचस्पति; ज्योतिष प्राचार्य का जन्म तमिलनाडु राज्य के तन्जावुर जनपद में सर 1943 में हुआ। बचपन में ही इनके मातामह ने इनके मन में ज्योतिष के प्रति जो बीज बोया था वह कालान्तर में अंकुरित होकर निरंतर बढ़ता गया। प्रेरणास्वरूप सन् 1990 में भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष का गहन अध्ययन आरम्भ किया और फल के रूप में भारताय ज्योतिर्विज्ञान परिषद दिल्ली शाखा-1 के तत्वावधान में ज्योतिष विशारद की उपाधि प्राप्त की। ज्योतिष के मेधावी छात्र और ज्योतिष गुरुओं के प्रति निष्ठावान आचार्य के. रंगाचारी को भारतीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद में अवैतनिक संकाय सदस्य होने का सुअवसर प्राप्त हुआ जहां उन्होंने जैमिनी एस्ट्रालॉजी और ताजिक शास्त्र जैसे गूढ़ विषयों में महारथ हांसिल की। संकाय सदस्य होने के साथ-साथ भारतीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद के वह परीक्षा कुल सचिव भी रह चुके हैं।
प्रस्तावना
वैदिक ज्योतिष शास्त्र की तीन पद्धतियों-पाराशरी, जैमिनी और ताजिक में से ज्योतिष शास्त्र के होरा-स्कंध में ताजिक ज्योतिष का समावेश होता है। जातक की पूर्ण आयु में प्रत्येक वर्ष के वर्ष प्रवेश समय को जानकर वर्ष कुण्डली द्वारा वर्ष पर्यन्त जातक के प्रत्येक मास, दिन व दिनार्ध से भी सूक्ष्म समय का शुभाशुभ फलों का ज्ञान कराना फलित ज्योतिष-ताजिक शास्त्र का काम है। इसीलिए वर्ष कुण्डली का जन्म कुण्डली से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस संदर्भ में हिन्दू मनीषियों और ज्योतिर्विदों द्वारा की गई रचनाएं मुख्यता ताजिक नीलकण्ठी, हायन् रत्न और केशव द्वारा रचित ताजिक शास्त्र आदि अत्यन्त अनूठे ग्रंथ हैं। आचार्य नीलकण्ठ सोलहवीं शताब्दी में ताजिक नीलकण्ठी की रचना तीन तन्त्रों-संज्ञातन्त्र, वर्षतन्त्र, प्रश्नतन्त्र में की थी। संज्ञातन्त्र अन्य दोनों तन्त्रों का आधार है। इस तन्त्र द्वारा वर्ष प्रवेश का जान, गणित-गणना, वलाबल दृष्टि विचार, सहम, मुंथा और 16 योगों का विचार किया जाता है।
छात्र और शिक्षक के बीच जो सम्बन्ध है वह एक दूसरे के पूर्वक है। इस सम्बन्ध को भलीभांति जानते हुए और एक आचार्य शिक्षक की हैसियत से ज्योतिष प्रेमियों और विद्यार्थियों के लिए Tajikashastra: A Guide to Annual Horoscope or Varshphala की रचना अंग्रेजी भाषा में सन् 1998 में की थी जिसकी लोकप्रियता और मांग इतनी बढ़ गई है कि आज उसका हिन्दी संस्करण ''ताजिक शास्त्र : वर्षफल की एकमात्र संदर्शिका'' निकालना पड़ा ताकि हिन्दी भाषी ताजिक की कड़ियों को भलीभांति समझ सके और इस अनूठे विज्ञान से वंचित न रह सकें। यह ग्रंथ न केवल शिक्षकों के लिए (Trainers Manual) हैं बल्कि इच्छुक ज्योतिष प्रेमियों के लिए एक सरल संदर्शिका भी है । आशा करते है कि यह पुस्तिका विद्यार्थियों एवं ज्योतिर्विदों की आशा के अनुरूप लाभप्रद होगी।
यह ग्रंथ ज्योतिष के कर्णधार और ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक मानसिक गुरु स्व. डा. बी.वी रमन और मानसिक माता श्रीमती राजेश्वरी रमन, जिनके सततप्रयत्नों एवं प्रयासों से भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद, चेन्नई और उसकी अन्य राजकीय शाखाओं का जन्म हुआ और ज्योतिष विज्ञान का पाठ्यक्रमों द्वारा प्रसार हुआ, को सादर समर्पित है ।
हम श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) के वरिष्ठ प्रोफेसर शुकदेव चतुर्वेदी, एम.ए., पीएचडी, ज्योतिषाचार्य, अध्यक्ष वेदवेदाग्ङ संकाय एवं ज्योतिष परिषद् के बहुत अनुग्रहित एवं कृतार्थ हें, जिन्होंने पुरोवाक् लिखकर अपने विचार प्रकट किये और इस पुस्तक की महत्ता बढ़ाई । हम उनका हार्दिक धन्यवाद करते हैं ।
Tajikashastra: A Guide to Annual Horoscope or Varshaphala मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखी थी जिसका हिन्दी अनुवाद श्री शिव शंकर रूस्तगी ज्योतिष विशारद, ज्योतिष कोविद् एवं संकाय सदस्य और कोषाध्यक्ष, भारतीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद, दिल्ली शाखा-1 ने किया । जिनके अथक परिश्रम से यह संदर्शिका हिन्दी पाठकों को उपलब्ध हो सकी । हम उनके आभारी हैं ।
श्री अमृत लाल जेन, प्रकाशक एका पब्लिकेशन 2640, रोशनपुरा, नई सड़क, दिल्ली ने इस संस्करण को इतने कम समय में प्रकाशित कर धन्यवाद के पात्र हैं ।
विषय-सूची
पुरोवाक्
i-ii
iii-iv
1
भूमिका
2
वर्ष कुण्डली बनाने की विधि
6
3
मुंथा और उसका महत्व
34
4
दशा पद्धति और फल
41
5
ग्रहबल
56
वर्षश्वर का निर्धारण
82
7
त्रिपताकी चक्र
89
8
ताजिक योग
94
9
सहम और विशिष्ट घटनाएं
116
10
भागवत ग्रहों और वर्ष कुण्डली के बारह लग्नों के फल
125
11
भाव निर्णय
145
12
वर्ष कुण्डली निर्णय के महत्वपूर्ण सूत्र
154
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