पुस्तक के विषय में
स्वर योग प्राचीन हिन्दू विज्ञानं एवं कला है जिसने इस शरीर में जीवन तत्व, प्राण तथा जीवन के कार्यो को पूर्णतः विश्लेषित किया है | यह विभिन्न नदियों के बारे में व्यवहत है जिनके साथ प्राण इस शरीर में स्पन्दित होता है इसे जीवन देता है तथा यह उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु को स्थिर करने हेतु प्राण के प्रवाह को नियमित करने के साधनो का भी निर्देश देता है | यह विज्ञानं अथवा स्वर योग प्राणायाम विज्ञानं से अधिक सूक्ष्म और भली प्रकार से समझा जा सकने योग्य है | यदि प्राणयाम से इसकी तुलना कि जाये तो स्वर योग के सक्षम प्राणायाम इसकी बाह्र रेखा के समान है | स्वर योग में हमें योग था मृत्यु को रोकने हेतु विभिन्न प्रभावशाली साधन प्राप्त होते है | स्वर योग कि साधना निपुण योगी के मार्ग दर्शन में जनि चाहिए |
बीसवी सदी के आधुनिक ऋषि और योगी स्वामी शिवानंद जी ने इस पुस्तक में इस अल्पज्ञात किन्तु महत्वपूर्ण और व्यवहारिक, वैज्ञानिक और योग कि शाखा (जिसका वर्णन प्राणायाम साधना, हठयोग, योगाभ्यास और कुण्डलिनी योग में सामान्य रूप से नहीं मिलता है) के बारे में लिखा है | अध्यानमिक साधको और पाठको हेतु इस पुस्तक के विषय पूर्ण व्यवहारिक लाभ के है और यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि प्रत्येक पाठक के लिए यह उपयोगी है |
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