पुस्तक परिचय
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद के स्वप्न को साकार करने का सुकार्य करने वाले ओजस्वी संस्यासी थे स्वामी श्रध्दानन्द !
संस्यास से पूर्व इनका वास्तविक नाम था बृहस्पति, लेकिन इनके पिता लाल नानकचन्द इन्हें मुंशीराम के नाम से पुकारते थे ! अत; लोगों में हाई नाम प्रसिध्द हो गय१ एक वकील के रूप में इन्होनें अच्छी खासी ख्याति प्राप्त की ! लेकिन बरेली में स्वामी दयानंद जी के उद्बोधन ने इनकी जीवनधारा ही बदल दी! इंहोनीं वैदिक धरम की पुनस्थार्पणा और समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं धर्म के नाम पर होने वाले पाखंड को समाप्त करने के लिए पूर्ण रूप से स्वयं को समर्पित कर दिया!
स्वामी श्रद्धानन्द ने १९०२ में हरिद्वार के पास गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में अपूर्व कार्य किया! १९१६ में इन्होनें फरीदाबाद (हरियाणा ) के समीप गुरुकुल इंदरप्रस्थ की स्थापना!
इसी तरह स्वामी जी ने 'शुध्दि' आंदोलन द्वारा उन लोगों को हिन्दू समाज में स्वीकार करने की मुहीम चलाई, जिन्होंने किसी कारणवश अन्य धर्म को अपना लिया था! एक निडर संस्यासी को हिन्दुओं को संगठित करने हिंदी भाषा को प्रतिष्ठा दिलवाने, हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने और पाखण्ड को जड़ समेत उखाड़ने फेंकने के लिए क्या-क्या करने पड़ा, इसी का लेख-जोखा है इस पुस्तक में!
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