Born in Mianwali (now in Pakistan) on 5th September 1939.
Early education at village Achariki in Punjab.
Graduation from Punjab University.
Honours in Hindi.
M.A. English and Hindi from Delhi University.
Well-versed in Sanskrit, Urdu, Panjabi and French languages.
Retired from the Post-Graduate Department of English, Dyal Singh College,
Karnal (Haryana) in the year 1999
Prof. Bharti was honored by Hon'ble Governor of Haryana, Sh. Dhanik Lat Mandal, in the year 1995 in recognition of his work and his services rendered for the welfare of the Disabled, especially the blind. Well travelled in India as well as abroad.
एक धार्मिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने सामूहिक रूप से सृष्टि का निर्माण किया। ब्रह्मा विधाता हैं, विष्णु संचालक हैं, और महेश संहारक हैं।
वास्तविकता क्या है? क्या सच में सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा किया गया है?
तथ्य यह है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीन प्राकृतिक गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं जोकि प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान हैं।
यह सारा संसार पांच तत्वों से बना हुआ है और इन पांच तत्वों के तीन गुण हैं - सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण।
हमारा शरीर पांच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और इन पांच तत्वों के तीन गुण हैं सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण।
वेदों, शास्त्रों एवं पुराणों में कहा गया है कि सत्य के समान अन्य कोई धर्म नहीं है। सत्य की सदा विजय होती है। सत्य बोलने वाले व्यक्ति को कभी सत्य को साबित करने की आवश्यकता नहीं होती जबकि एक झूठ को साबित करने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि सत्य को स्मरण रखने की आवश्यकता नहीं होती जबकि झूठ कभी भी पूरी तरह से स्मरण नहीं रहता।
स्वामी सत्यनारायण की कथा को आरंभ करने से पूर्व आओ हम विचार करें कि स्वामी सत्यनारायण की कथा का तात्पर्य क्या है और स्वामी सत्यनारायण की पूजा क्या है? इसका महत्व क्या है? सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। भगवान विष्णु का दूसरा नाम सत्यनारायण है। अतः यदि हम विधिवत सत्यनारायण की पूजा करते हैं तो यह वास्तव में भगवान विष्णु की पूजा है। व्रत कथा की छोटी-छोटी कथाओं के माध्यम से बताया गया है कि हमें सदा सत्यधर्म का पालन करना चाहिए अन्यथा जीवन में अनेक समस्याएं आती हैं जिससे जीवन दूभर हो जाता है। अतः हमें जीवन में सदा सत्यव्रत का पालन करना चाहिए। ऐसा न करने पर ईश्वर हमसे केवल नाराज़ ही नहीं होते अपितु हमें हमारी संपत्ति और बंधु-बांधवों के सुख से भी वंचित कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा-संग्रह सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य साहित्य है। ईश्वर दया के सागर हैं। जब हमें अपनी गलतियों का एहसास होता है और उन पर पश्चाताप करते हैं तो ईश्वर हम पर कृपा करके हमें धन-धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं और साथ ही हमारी गलतियों को भी माफ़ कर देते हैं।
इस व्रत कथा का प्रायः परिवार में वाचन एवं पूजा-अर्चना पूर्णिमा के दिन किया जाता है परंतु अन्य पर्वों एवं दिनों में भी इस कथा का विधि-विधान से वाचन और स्वामी सत्यनारायण जी की पूजा का दिशा निर्देश भी दिया गया है।
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