लेखिका के विषय में
'स्वामी' सुप्रसिद्ध कथाकार मन् भंडारी का भावप्रवण विचारोत्तेजक उपन्यास है। आत्मीय रिश्तों के बीच जिस सघन अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण करने के लिए मन् भंडारी सुपरिचित हैं, उसका उत्कृष्ट रूप 'स्वामी' में देखा जा सकता है।
सौदामिनी, नरेन्द्र और घनश्याम के त्रिकोण में उपन्यास की कथा विकसित हुई है। सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियाँ तो हैं ही। कथारस के साथ उपन्यास में स्थान-स्थान पर ऐसे प्रश्न उठाए गए हैं जिनकी वर्तमान में प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। जैसे, 'जिसे आत्मा कहते हैं वह क्या औरतों की देह में नहीं है? उनकी क्या स्वतंत्र सत्ता नहीं है? वे क्या सिर्फ आई थीं मर्दोंकी सेवा करनेवाली नौकरानी बनने के लिए?
सौदामिनी के जीवन में अथवा इस वृत्तान्त में 'स्वामी' शब्द की सार्थकता क्या है, इसे लेखिका ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है- 'घनश्याम के प्रति उनका पहला भाव प्रतिरोध और विद्रोह का है जो क्रमश: विरक्ति और उदासीनता से होता हुआ सहानुभूति समझ स्नेह सम्मान की सीढियों को लाँघता हुआ श्रद्धा और आस्था तक पहुँचता है. और यहीं 'स्वामी ' शीर्षक पति के लिए पारस्परिक सम्बोधन मात्र न रहकर उच्चतर मुष्यता का विशेषण बन जाता है ऐसी मनुष्यता जो ईश्वरीय है? 'एक पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास।
स्वामी
मन्नू भंडारी
जन्म : 3 अप्रैल, 1931, भानपुरा (मध्य प्रदेश)।
शिक्षा : एम .ए.।
लेखन-संस्कार: पिता श्री सुखसम्पतराय भंडारी से पैतृक दाय में मिला। वर्षों दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हिन्दी प्राध्यापिका के रूप में कार्य किया। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचन्द सृजनपीठ की अध्यक्ष रहीं।
प्रकाशित कृतियों :
उपन्यास : महाभोज आपका वटी स्वामी एक इचं मुस्कान (श्री राजेन्द्र यादव के साथ) सम्पूर्ण उपन्यास।
कहानी : एक प्लेट सैलाब मैं हार गई तीन निगाहों की एक तस्वीर यही सच है? त्रिशकुं सम्पूर्ण कहानियों
आत्मकथा : एक कहानी यह भी।
नाटक-एकाकी : महाभोज बिना दीवारों के घर
बाल पुस्तकें : आसमाता (उपन्यास); आँखों देखा झूठ कलवा (कहानी)।
आवरण : सोरित
इलाहाबाद में जन्म और शिक्षा । जनसत्ता (कलकत्ता) से पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट की शुरुआत । दिल्ली में आब्जर्वर, पायोनियर, सहारा टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया में कार्टूनिस्ट, इलस्ट्रेटर के रूप में कार्य किया । वर्तमान में आउटलुक में बतौर इलस्ट्रेटर । प्रकाशित कृतियों : 'द गेम' (ग्राफिक्स नॉवेल), महाश्वेता देवी के 19वीं धारा का अपराधी ' (उपन्यास) का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद । राजकमल प्रकाशन से बाल पुस्तकें प्रकाशित ।
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