पुस्तक परिचय
सूर्य नमस्कार एक महत्त्वपूर्ण योगाभ्यास है जिसका प्रारम्भ प्राचीन वैदिक काल से माना जाता है जब आध्यात्मिक चेतना के एक परम शक्तिशाली प्रतीक के रूप में सूर्योपासना की जाती थी । अपने रहस्यमय उद्गम काल से क्रमश विकसित होकर सूर्य नमस्कार बारह आसनों के समवाय के रूप में निखर कर सामने आया है जिसके नियमित अभ्यास से प्राणोत्पादक शक्ति का सृजन होता है । इसका लक्ष्य है योगाभ्यासी को शुद्धिकरण एवं पुनर्यौवन प्रदान करना । इस पुस्तक में सूर्य एवं बीज मंत्रों के साथ सूर्य नमस्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया का सविस्तार वर्णन किया गया है । साथ ही योग प्रशिक्षक एवं योगाभ्यासी के सहायतार्थ एकाग्रता के बिन्दुओं सहित अन्य विषयों पर विस्तृत मार्ग दर्शन प्रदान किया गया है । शरीर विज्ञान की दृष्टि से सूर्य नमस्कार के गहरे अनुशीलन से एक शक्तिशाली उपचार विधि के रूप में इसकी उपादेयता प्रमाणित होगी जो आज की आवश्यकताओं के अनुरूप है ।
लेखक परिचय
स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा ग्राम में 1923 में हुआ । 1943 में उन्हें ऋषिकेश में अपने गुरु स्वामी शिवानन्द के दर्शन हुए । 1947 में गुरु ने उन्हें परमहंस संन्याय में दीक्षित किया । 1956 में उन्होंने परिव्राजक संन्यासी के रूप में भ्रमण करने के लिए शिवानन्द आश्रम छोड़ दिया । तत्पश्चात् 1956 में ही उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय योग मित्र मण्डल एवं 1963 मे बिहार योग विद्यालय की स्थापना की । अगले 20 वर्षों तक वे योग के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में विश्व भ्रमण करते रहे । अस्सी से अधिक ग्रन्यों के प्रणेता स्वामीजी ने ग्राम्यविकास की भावना से 1984 में दातव्य संस्था शिवानन्द मठ की एवं योग पर वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से योग शोध संस्थान की स्थापना की । 1988 में अपने मिशन से अवकाश ले, क्षेत्र संन्यास अपनाकर सार्वभौम दृष्टि से परमहंस संन्यासी का जीवन अपना लिया है ।
प्रस्तावना
योग के क्षेत्र में सूर्य नमस्कार एक जीवन शक्ति प्रदायक अभ्यास के रूप में विख्यात है । इसके अभ्यास के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य, शक्ति तथा क्रियाशीलता में वृद्धि होती है । साथ ही साथ आध्यात्मिक प्रगति भी होती है । इसका मिला जुला परिणाम चेतना के विकास के रूप में परिलक्षित होता है ।
अब लोग मात्र कर्मकाण्डों तक ही सीमित नहीं हैं । वे अपने आंतरिक व्यक्तित्व की गहराइयों में झांकने के लिए भी योग को अपना रहे हैं । यद्यपि शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास के महत्व को समझा जाते लगा है परन्तु अत्यधिक व्यस्तता के कारण लोगों के लिए नियमित रूप से योगाभ्यास कर पाना सम्भव नहीं हो पाता, परन्तु बिना अभ्यास के तो लाभ संभव नहीं है । इन्हीं बातो को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक की रचना की गई है जो व्यस्त लोगों के लिए एक संक्षिप्त परन्तु पूर्ण अभ्यास सूर्य नमस्कार के विषय में पूर्ण जानकारी देती है । सूर्य नमस्कार अपने आप में एक पूर्ण साधना हैं विसमें आसन, प्राणायाम तथा ध्यान की क्रियायें सम्मिलित हैं ।
आधुनिक उलझनपूर्ण जीवन पद्धति में मानसिक तनाव, चिन्तायें अनेक समस्यायें व्यक्तिगत संबंध, आर्थिक विषमता तथा युद्ध बौर विनाश के भय के कारण नित्य उत्पन्न होती रहती हैं । साथ ही स्वचालित यंत्रों के उपयोग तथा औद्योगिक विकास के कारण शारीरिक श्रम से भी क्रमश दूर हो गया है । शारीरिक तथा मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने बालों की संख्या बढ़ रही है । बिना किसी प्रभावी कदम के इस पर नियंत्रण पाना सम्भव नहीं है ।
योगाभ्यास तनावों को दूर करने तथा शारीरिक व मानसिक रोगों के उपचार के लिए एक प्रभावी पद्धति है । योगमय जीवन प्रारम्भ करने के उद्देश्य से सूर्य नमस्कार एक सम्पूर्ण अभ्यास है और इस्के लिए मात्र ५ से १५ मिनट तक का नियमित समय देकर इससे प्रान होने वाले आश्चर्यजनक लाभों का अनुभव किया जा सकता है । इसलिए अत्यंत व्यस्त व्यक्तियों, यथा व्यवसायिओं, गृहणियों, परीक्षा में व्यस्त विद्यार्थियों अथवा प्रयोगशाला में व्यस्त रहने वाले वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक आदर्श एवं उपयुक्त अभ्यास है ।
यह पुस्तक उन सभी जिज्ञासुओं के लिए है जिनकी रुचि आत्म विकास में है । परन्तु पुस्तक मात्र निर्देशन ही करती है । इसका मूल उद्देश्य है सूर्य नमस्कार से होने वाले लाभों को लोग अनुभव कर सके । सम्भवतया आप पहले से ही जानते हों कि सूर्य नमस्कार से शरीर तथा मन सशक्त होता है तथा रोगों से मुक्ति मिलती है । परन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है । इस सत्यता को परखने के लिए आप स्वयं इसका अभ्यास कीजिये ।
अनेक आसनों, प्राणायामों, चक्र जागरण तथा मंत्रोच्चारण से युक्त इस अभ्यास में इतनी पूर्णता है कि शायद ही अन्य कोई अभ्यास इसके समकक्ष रखे जा सकें ।
सूर्य नमस्कार मात्र शारीरिक व्यायाम ही नहीं हे । निसंदेह इसमें शरीर के बारी बारी से आगे तथा पीछे की ओर मुड़ने के कारण समस्त अंगों, अत्यावश्यक अवयवों तथा मांसपेशियों पर तनाव मालिश तथा उद्दीपन जैसे प्रभाव डालते हैं । आध्यात्मिक साधना के रूप में यह एक महत्वपूर्ण अभ्यास है ।
सूर्य नमस्कार वैदिक काल के मनीषियों की देन है । सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ है सूर्य को नमस्कार । प्राचीन काल में दैनिक कर्मकाण्ड के रूप में सूर्य की नित्य आराधना की जाती थी क्योंकि यह आध्यात्मिक चेतना का एक शक्तिशाली प्रतीक है । बाह्य तथा आंतरिक सूर्य उपासना सामाजिक धार्मिक कर्मकाण्ड के रूप में की जाती थी ताकि प्रकृति की उन शक्तियों को अनुकूल बनाया जा सके जो मनुष्य के नियंत्रण की सीमा से बाहर हैं । यह पद्धति उन आत्मज्ञानियों द्वारा विकसित की गयी है जिन्हें यह पता था कि इसके अभ्यास से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा सामाजिक रचनात्मकता और उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं ।
सूर्य नमस्कार तीन तत्वों से सयुक्त है रूप, ऊर्जा तथा लयबद्धता । १२ शारीरिक स्थितियों के भौतिक सांचे में ढली हुई पद्धति से प्राणों (सूक्ष्म ऊर्जा जो सूक्ष्म शरीर को क्रियाशील बनाती है) की उत्पत्ति होती है । इन स्थितियों का अभ्यास लयबद्ध ढंग से करने पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आवर्तन प्रभावित होते हैं, यथा दिवस के चौबीस घण्टे, वर्ष के बारह राशि चक्र तथा मानव शरीर के जैव आवर्तन (Biorhythms) हमारे शरीर तथा मन पड़ने वाले इन स्थितियों और सूक्ष्म ऊर्जा के प्रभाव के फलस्वरूप जीवन की क्रिया शीलता में वृद्धि होती है तथा चारों ओर की दुनिया के प्रति हमारी प्रतिक्रिया सकारात्मक बनती है । इसे स्वयं अनुभव करके देखिये ।
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