एक दिन सहसा मनु ने पूछा बृहस्पति के कितने चांद हैं? मैंने कहा सोलह। वह बोला गलत। मेरी किताब में लिखे हैं बारह। मैंने उसे समझाया कि बृहस्पति के सोलह चांदों का पता लग चुका है। लेकिन, इस प्रश्न से मैं सोच में डूब गया।
पिछले कुछ वर्षों में ही सौरमंडल के न जाने कितने नए रहस्यों का पता लग चुका है। अंतरिक्षयान निरंतर सूरज के आंगन को टटोल रहे हैं। कई अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद की धरती की छानबीन की है। अंतरिक्षयानों ने न केवल बृहस्पति बल्कि शनि, यूरेनस और नेप्च्यून के भी नए चांदों का पता लगाया है। आज हमें अपने नौ ग्रहों के कम से कम 63 चांदों का पता लग चुका है। इतना ही नहीं पृथ्वी के अलावा शुक्र ग्रह और बृहस्पति के 'आयो' पर ज्वालामुखियों और नेप्च्यून के चांद 'ट्राइटन' परत बर्फमुखियों' का भी पता चल चुका है। सौरमंडल की सनद देकर वायेजर यान उसकी सीमा के पार अनंत अंतरिक्ष में जा चुके हैं।
ग्रहों-उपग्रहों के आकार-प्रकार, घूमने की गति, उनके दिन-रात, वायुमंडल, तापमान, उसमें होने वाली हलचल और उन्हें बनाने वाले तत्वों के बारे में कितना कुछ मालूम हो चुका है। लेकिन, कितने बच्चों को मालूम है यह सब?
मैंने मनु को तो समझा दिया, लेकिन बाकी बच्चे? बाकी बच्चों को सौरमंडल की तमाम नई और रोचक बातें बताने कि लिए उन्हें सौरमंडल की सैर कराने का निश्चय किया लेकिन, उनसे दोस्ती करके, उनके मन को पढ़ते हुए, उनके सवालों को संजो कर, उनके ही सीधे-सरल अंदाज में उन्हें कौन देगा यह जानकारी?
तब मैंने बच्चों के दोस्त 'देवीदा' का केंद्रीय पात्र गढ़ा और उन्हें छोटे-बड़े कई प्यारे बच्चे सौंप दिए। मन के अंतरिक्ष यान पर सवार होकर देवीदा उन्हें ले गए-सूरज के आंगन में।
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