डॉ. प्रेमलता तिवारी का जन्म महात्मा गांधी की पावन नगरी बिनोबा भावे की कर्मस्थली महाराष्ट्र की पुनीत नगरी वर्धा में 4 जून 1956 में हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर से • एम.ए. हिन्दी, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग से साहित्यरत्न, नागपूर विश्वविद्याल, नागपूर से सन 1982 में "कथाकार राजेन्द्र यादव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का अनुशीलन" विषय पर शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। एल.एल.बी. की डिग्री देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय, इन्दौर एवं आयुर्वेद रत्न इलाहाबाद युनिवर्सिटी, इलाहाबाद से प्राप्त की। देश के ख्यातिलब्ध जर्नल्स एवं पत्र-पत्रिकाओं में आपके अनेक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। लघु कथाओं एवं कविताओं पर भी आपके हस्ताक्षर हैं। विगत 25 वर्षों के अध्यापन कार्य के साथ आप अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हैं। 'ज्योतिर्मय' जो कि मानसिक विकलांग बच्चों को समाज में शिक्षण देने में अग्रणी शाला है उसकी आप संचालक हैं। जहां 50 से अधिक बच्चे विभिन्न गतिविधियों में संलग्न रह स्वयं को समाज की धारा में जुड़ने का प्रयास करते हैं। आधुनिक युग के लेखकों में राजेन्द्र यादव जी स्वयं एक हस्ताक्षर हैं जिन पर कार्य कर लेखिका स्वयं को गौरवान्वित समझती हैं क्योंकि उन पर बहुत कम शोध हुआ है। यह कृति सदैव अध्ययन, अध्यापन में रुचि का ही परिणाम हैं। जो सुधि पाठकों के हाथ में है। यह विद्यार्थियों और शोधार्थियों की सृजनात्मक प्रतिभा का विकास, मौलिक चिन्तन को प्रोत्साहन एवं भविष्य की समस्याओं को हल करने की क्षमता को परिपूर्ण करने के लिए मार्गदर्शक का दायित्व निभाएगी ऐसी अपेक्षा ही नहीं विश्वास भी है।
श्री राजेन्द्र यादव हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक हैं, उनकी रचनाओं पर निरंतर विचार होता रहता है. परन्तु सभी यत्र-तत्र बिखरा हुआ है, अनेक छोटी-मोटी आलोचनाएं या लेख उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को उजागर करते रहते हैं, परन्तु एक पूर्ण प्रयास इसके पूर्व अभी तक नहीं किया गया है, उनके कतिपय उपन्यास पढ़ने के पश्चात यह इच्छा जागृत हुई कि उनकी कृतियों पर कार्य किया जाय, उनकी साहित्यिक कला की रचना प्रक्रिया में, तटस्थ विश्लेषित प्रवृत्ति का प्रभाव हिन्दी साहित्य में यथावत बना हुआ है। इस अभाव को दृष्टि में रखते हुए मुझे यह कार्य करने की प्रेरणा मिली।
अपने अध्ययन काल में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि यादवजी हिन्दी साहित्य के सच्चे भक्त हैं, उनकी भिन्न-भिन्न कृतियों द्वारा यह निश्चित होता है कि हिन्दी साहित्य को अधिकाधिक समृद्ध बनाना उनका एकमात्र लक्ष्य है, शोधकार्य में इसी लक्ष्य को जानने का प्रयास किया गया है।
यादवजी की कला का विधिवत उद्घाटन मेरा तथ्य रहा है, यादवजी की कृतियों पर किया गया यह कार्य हर दृष्टिकोण से सर्वथा मौलिक है।
प्रस्तुत ग्रंथ में प्रथम अध्याय में यादवजी के जीवन परिचय को चित्रित किया गया है, श्री यादवजी के व्यक्तित्व पर अपनी कलम उनके साक्षात्कार के बाद की बतायी गयी है. उनका जन्म, माता-पिता, शिक्षा, पारिवारिक जीवन, व्यवसाय, लेखन कार्य जैसी अलग-अलग विधाओं पर कार्य करने के साथ-साथ वर्तमान प्रगति का भी इसमें उल्लेख किया गया है।
द्वितीय अध्याय में उनकी सभी कृतियों का विधाओं के अनुसार संक्षिप्त सार दिया गया है, उनके निबन्ध, उपन्यास, कहानी, कविता जैसी विभिन्न कृतियों पर सानान्य दृष्टि डाली गई है।
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