पुस्तक परिचय
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तब देवता :"
इस पवित्र शास्त्रोक्ति से हम सभी परिचित है फिर भी ज्योतिष में नारी यातिका से सम्बन्धित साहित्य बहुत कम है और जो है वह भी पर्याप्त सतुष्टि पूर्ण तथा व्यवस्थित नहीं है, अर्थात एक कमी आ हे । इस कमी को ध्यानमें रखते हुए प लेखराज द्विवेदी । इस पुस्तक मैं स्त्री सामुद्रिक, स्वभाव, विवाह राजायोगादि पर विस्तृत वर्णन किया है। इस पुस्तक की खास विशेषता यह है कि प्रत्येक राशि व लग्न के अंशो व नवांशेशों के आधार पर फलादेश किया गया है । सवा दो नक्षत्र से बनी राशि या लग्न में किसी अश तक किसका नवांश रहने से फलादेश के स्वभाव मे क्या अन्तर आएगा यह ध्यातव्य व दृष्टव्य है सामुद्रिक लक्षणों से स्त्री का वैशिष्ट कैसे जाना जाएगा व राशिया/लग्नगत क्या विशेषताए होगी । पुरूषस्त्री जातकों के एक भाव मे स्थित ग्रहों में अलगअलग वैशिष्टय से तुलनात्मक अध्ययन के साथ उनके राजयोगों से पुरूषों के भाग्य में परिवर्तन आदि का चित्रण कर विवाह व मांगलिक विषय का विशद् वर्णन तथा अरिष्ट निवारण के सुझाव प्रस्तुत कर पुस्तक को उपादेय बनाया गया है जो अन्यत्र अब तक छपे हुए किसी भी साहित्य में नहीं है। अत: आशा है कि यह पुस्तक पाठकों हेतु काफी ज्ञानवर्द्ध होगी ।
पंडित लेखराज द्विवेदी भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी, कर्मकाण्ड और सस्कृत के विद्वान सेवानिवृत्त व्याख्याता है। ये भारत के उन चंद विद्वानों में से है जिनकी ज्योतिष व कर्मकाण्ड दोनों पर अच्छी पकड़ है। पंडितजी ने सन् 193738 मे बंगाल सस्कृत ऐसोसियन की संस्कृत प्रथमा परीक्षा पेटलाद नारायण संस्कृत महाविद्यालय से प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्णकी। यज्ञोपवित कर्म 1938 मे हुआ। समापवर्तन सस्कार करने के पूर्व वेदाध्ययन हेतु सौराष्ट में जामनगर में श्रीजाम रणजी संस्कृत पाठशाला में ब्रह्मचर्य धर्म का पूर्ण पालन करते हुए गुरूकुल आश्रम जैसे वातावरण में त्रिकाल संध्या बलि वैश्वदेव द्विकाल हवन स्तुति पाठादि करते हुए किया । भीड भजन महादेव की आराधनापूर्वक स्व पं रतिभाई त्रिवेदी व बटु भाई त्रिवेदी से साम, यजु संहिता का अध्ययन किया आचार्य श्री त्रयम्बकरामजी शास्त्री के सान्निध्य में गुरूचरण सेवारत रहकर पुन 194041 में वाराणसी की संस्कृत प्रथमा भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की । सन् 1961 में प्रयाग विश्वविद्यालय की सर्वोच्च उपाधि "हिन्दी साहित्य रत्न'' प्रथम श्रेणी से उत्तीण की।1970 में साहित्य में वेद विषय लेकर राजस्थान विश्वविद्यालय, अजमेर से संस्कृत एम ए प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की । इन्होंने कई पुस्तके लिखी है, ज्योतिष के महान् आचार्य वाराहमिहिर के पुत्र पृत्युयशस् की षट् पंचाशिका पुस्तक पर हिन्दी टीका 1998 मे लिखी । इस तरह ज्योषि, कर्मकाण्ड व स्वाध्याय में जीवन सेवारत है।
अनुक्रमणिका
1
लेखक परिचय
4
2
खास वैशिष्टय और ग्रंथ का हेतु
5
3
प्राक्कथन
6
सौन्दर्य व शरीर सुख
9
स्त्रियों के जन्माक्षर
15
स्त्री सामुदिक
21
7
स्वभाव (लग्न/राशि अनुसार)
34
8
स्त्रीणां राजयोग
90
स्त्री व पुरूष का तुलनात्मक अध्ययन
101
10
त्रिशांश फल
112
11
विवाह
124
12
प्रेम विवाहअन्तर्जातीय विवाह
130
13
तलाक व पुनर्विवाह योग
135
14
मंगलीक दोष
139
मंगलीक दोष निवारण
148
16
संतान विचार
165
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12551)
Tantra ( तन्त्र ) (1004)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1902)
Chaukhamba | चौखंबा (3354)
Jyotish (ज्योतिष) (1455)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1390)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23143)
History (इतिहास) (8257)
Philosophy (दर्शन) (3393)
Santvani (सन्त वाणी) (2593)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist