ज़ाकिर साहब की कहानी: The Story of Zakir Husain

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Item Code: NZD050
Publisher: National Book Trust, India
Author: सैयदा खुर्शीद आलम (Syeda Khurshid Alam)
Language: Hindi
Edition: 2000
ISBN: 8123733860
Pages: 88
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 130 gm
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Book Description

पुस्तक के विषय में

यह पुस्तक स्वर्गीय डा. ज़ाकिर हुसैन की मात्र दूसरों से सुनी हुई बातों पर आधारित जीवनी नहीं है, बल्कि इसमें पारिवारिक और निजी जीवन की अनेक घटनाएं दी गयी हैं, जिन्हें लेखिका ने देखा, और अनुभव किया है । इस पुस्तक के माध्यम से हम एक ऐसे इंसान की तस्वीर देखते हैं जिसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था और जो कर्मठ विद्वान थे ।

धन, पद और ख्याति वास्तव में ऐसी मूर्तियां है, जिनके आगे बडे से बड़े नतमस्तक हो जाते है। किंतु इस लोभ तथा आकांक्षा के संसार में ऐसे सत्य को पहचानने वाले व्यक्ति भी हुए हैं जो इन मूर्तियों को एक ही ठोकर में चूर-चूर कर देते है । इनमें एक नाम है डा. ज़ाकिर हुसैन । यह पुस्तक डा. ज़ाकिर हुसैन के उन पहलुओं पर भी प्रकाश डालती है, जिनमें वह एक सहानुभूति प्रवण मानव, जिम्मेदार और सफल अध्यापक, दार्शनिक, लेखक तथा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सामने आते है ।

पुस्तक की लेखिका सैयदा खुर्शीद आलम डा. ज़ाकिर हुसैन की सुपुत्री हैं और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ श्री खुर्शीद आलम खान की धर्मपत्नी हैं । निज़ामुद्दीन उर्दू से हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद करने वाले कुछ गिने-चुने व्यक्तियों में से एक हैं ।

प्रस्तावना

हमारी मित्र-मंडली बंगलौर नगर, बल्कि कर्नाटक राज्य में शैक्षिक संस्थाओं और विद्यालयों से जुड़ी हुई है । इलामीन एजुकेशनल सोसाइटी के अंतर्गत शैक्षिक गतिविधियों का एक जाल बिछा हुआ है । हम प्राय: डा. ज़ाकिर हुसैन साहब की चर्चा गोष्ठियों, सभाओं तथा भाषणों में करते रहते हैं क्योंकि उनके व्यक्तित्व मे हमें एक सहृदय शिक्षक, स्नेहिल अभिभावक और सच्चा देशभक्त नजर आता है । मेरे आदरणीय कृपालु एवं श्रद्धेय, कर्नाटक के राज्यपाल श्री खुर्शीद आलम खान साहब ने मेरे समक्ष यह इच्छा व्यक्त की कि मैं उनकी धर्मपत्नी, आदरणीया सैयदा खुर्शीद आलम द्वारा लिखित पुस्तक 'ज़ाकिर साहब की कहानी' जो कि नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया द्वारा दोबारा छापी जाने वाली है, पर प्रस्तावना के रूप में कुछ लिखूं । उनका आदेश सिर आखों पर । उसका पालन जिस रूप में बन पड़ा, वह सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है ।

डाक्टर ज़ाकिर हुसैन साहब की गिनती भारत के अपर्णा नेताओं में की जाती है । इस दौर की लगभग आधी शताब्दी तक एक शिक्षाविद तथा अध्यापक के रूप में वह छाये रहे । उनका पूरा जीवन दूसरों के लिए और विशेषकर नयी पीढ़ी के लिए एक उदाहरण और आदर्श है । डाक्टर साहब की भूमिका उस समय स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आयी जब उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ जामिआ मिल्लिया इस्लामिया की दिल्ली में नींव रखी । उस समय से लेकर बिहार के राज्यपाल का पद संभालने तक डाक्टर साहब जामिआ मिल्लिया को अपने जिगर के खून से सींचते रहे । एक सहृदय शिक्षक और एक कृपालु अभिभावक के रूप में नयी पीढ़ी की जिंदगियों को संवारना उनके जीवन का लक्ष्य बना रहा ।

आदरणीया सैयदा आलम साहिबा की पुस्तक 'ज़ाकिर साहब की कहानी' वास्तव में पिता की कहानी पुत्री की जुबानी है । सैयदा साहिबा के मामले में गालिब का यह मिसरा ''जिक्र उस परीवंश का और फिर बया अपना'' चरितार्थ होता है । उनकी लेखनी ने इस कहानी में कुछ ऐसी जान डाल दी है कि डाक्टर साहब के जीवन का एक चलता-फिरता चित्र आखों के सामने आ जाता है । पुस्तक की भाषा बहुत ही चित्ताकर्षक, सरल एवं रोचक है । राजनीतिक घटनाएं और पारिवारिक परिस्थितियां, मानवीय भावनाओं की कोमलता तथा उष्णता, वार्तालाप की कटुता एवं मिठास, ये सब ऐसी बातें है जिन्हें उपयुक्त शब्दों में व्यक्त करना बहुत कठिन होता है । किंतु सैयद! साहिबा की लेखनी का प्रवाह कुछ ऐसा है कि वर्णन में कहीं कोई उलझाव पैदा नहीं हुआ। भाषा तथा वर्णन की यह विशेषता उन्हें विरासत में मिली है । डाक्टर साहब की गोद में वह पली और बड़ी हैं । मानो, उर्दू की गोद में परवान चढ़ी हैं । राष्ट्रीय नेताओं के जीवन के दो पहलू होते हैं । एक सामाजिक और दूसरा घरेलू । या यह कहिये कि दो चेहरे होते हैं - एक घर के बाहर का और एक घर के अंदर का । दोनों में बड़ा अंतर होता है । उनके घर के बाहर का जीवन पूर्णत: व्यस्त होता है और उनके सार्वजनिक मेलजोल तथा व्यवस्था संबंधी गतिविधियों का परिचायक होता है । घर के अंदर का जीवन हलका और मृदुल होता है ।' व्यक्ति की वास्तविक पहचान उसके घरेलू जीवन से होती है । घर में वह अनौपचारिक होता है। इसलिए उससे उसका चरित्र और भूमिका पूरी तरह से प्रकट हो जाती है । अपनी मां-बहनों का लिहाज तथा उनके प्रति शिष्टता, पली तथा बच्चों से प्रेम तथा स्नेह और प्रियजनों के प्रति कृपाभाव तथा उदारता - इन सब बातों का पता घरेलू जीवन से चल पाता है । इस पुस्तक में इन सब बातों का वर्णन मौजूद है ।

डाक्टर साहब के जन्म से लेकर राष्ट्रपति भवन में भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में अपने जीवन के अंतिम क्षण गुजारने तक की घटनाओं पर एक हलका फुलका किंतु सुंदर जायजा इस पुस्तक में मौजूद है । कुछ घटनाएं और ज़ाकिर साहब के कुछ वक्तव्य इस अंदाज में वर्णित किये गये हैं कि पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । बच्चों से प्यार एवं दुलार, छात्रों के प्रति सम्मान और उनकी शिक्षा-दीक्षा तथा उन्नति के लिए दिल में बेहद तड़प, देश के पदप्रदर्शकों जैसे महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, रवींद्रनाथ टैगोर, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना महमूद हसन और हकीम अजमल खान आदि के प्रति गहरी श्रद्धा एवं प्रेम, दूसरों के लिए अपने हित के त्याग की भावना, निष्कपटता, असीम सहनशीलता, परिजनों से सहानुभूति और प्यार और सारे भारत को अपना परिवार समझना, ये सब ऐसे गुण हैं जिन्होंने डाक्टर साहब के व्यक्तित्व को चमका कर सारे देश के लिए अनुकरणीय बना दिया

हर प्रकार से पुस्तक इस योग्य है कि इसे लड़के, लड़कियां, बच्चे, बूढ़े सब पढ़ें । एक तरफ तो भाषा का आनंद उठाते रहें और दूसरी तरफ इस बात पर गर्व करें कि भारत का यह सपूत जिसने जीवन का आरंभ छात्रों की शिक्षा-दीक्षा से किया, वह अंतत: पूरे भारत का अध्यापक और पथप्रदर्शक बन कर इस संसार से विदा हो गया ।

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