कहानी शल्य चिकित्सा की- The Story of Surgery (From the Ancient Times to Today)

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Item Code: HBG051
Author: Yatish Agarwal
Publisher: National Council Of Educational Research And Training
Language: Hindi
Edition: 2023
ISBN: 9789352923212
Pages: 142 (Color and B/W Illustrations)
Cover: PAPERBACK
Other Details 8x6.5 inch
Weight 230 gm
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Book Description
लेखक परिचय
डॉ. यतीश अग्रवाल जन्म 20 जून 1959, बरेली (उ.प्र.) में। आरंभिक शिक्षा दिल्ली एवं लखनऊ में। आयुर्विज्ञान की उच्चतर शिक्षा यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली, बल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली, किंग्जवे कैंप टी.बी. अस्पताल, दिल्ली और सफदरजंग अस्पताल से। दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन। 1998 में फाउंडेशन फॉर डिटेक्शन ऑफ अर्ली गैस्ट्रिक कार्सिनोमा, जापान के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय फैलोशिप और नेशनल कैंसर सेंटर हॉस्पिटल, तोक्यो में उच्चतर प्रशिक्षण। विज्ञान परिषद, इलाहाबाद से 1999 में विज्ञान वाचस्पति (डॉक्टर आफ साइंस)। संप्रति दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में वरिष्ठ चिकित्सक।

डॉ. अग्रवाल देश में जनप्रिय आयुर्विज्ञान साहित्य के प्रमुख रचनाकारों में से हैं। सन् 1980 से उनके लेख-चिंतन और स्तंभ देश के प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी/अंग्रेजी दैनिकों और पत्र/ पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते आ रहे हैं। उन्होंने बच्चों, किशोरों और नवसाक्षरों के लिए भी प्रचुर रूप से लिखा है और रेडियो/टेलीविजन के लिए भी सीरियलों के अभिकल्प और लेखन कार्य किए हैं। उनके स्तंभ 'स्वास्थ्य सुलझन', 'यू आस्क वी आंसर', 'परामर्श', 'दस सवाल', 'स्वास्थ्य परिक्रमा', 'चेक आउट', 'क्रुसेड फॉर हेल्थ' अत्यंत लोकप्रिय रहे हैं और उनकी 23 प्रकाशित पुस्तकों में कुछ का अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ है।

डॉ. अग्रवाल को भारत सरकार के आत्माराम सम्मान (1999), राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (1999), मेघनाद साहा सम्मान (1991, '92, '93), स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय पुरस्कार (1994, 195, 014597), आई.ओ.सी. के हिंदी साहित्य सम्मान (1992) और राष्ट्रीय विशिष्टता पुरस्कार (1992-93) से अलंकृत किया जा चुका है।

आमुख
विद्यालय शिक्षा के सभी स्तरों के लिए अच्छे शिक्षाक्रम, पाठ्यक्रमों और पाठ्यपुस्तकों के निर्माण की दिशा में हमारी परिषद् पिछले पच्चीस वर्षों से कार्य कर रही है। हमारे कार्य का प्रभाव भारत के सभी राज्यों और संघशासित प्रदेशों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा है और इस पर परिषद् के कार्यकर्ता संतोष का अनुभव कर सकते हैं।

किंतु हमने देखा है कि अच्छे पाठ्यक्रम और अच्छी पाठ्यपुस्तकों के बावजूद हमारे विद्यार्थियों की रुचि स्वतः पढ़ने की ओर अधिक नहीं बढ़ती। इसका एक मुख्य कारण अवश्य ही हमारी दूषित परीक्षा-प्रणाली है जिसमें पाठ्यपुस्तकों में दिए गए ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है। इस कारण बहुत कम विद्यालय में कोर्स के बाहर की पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन अतिरिक्त पठन में बच्चों की रुचि न होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों के लिए कम मूल्य की अच्छी पुस्तकें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी नहीं हैं। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में इस कमी को पूरा करने के लिए कुछ काम प्रारंभ हुआ है पर वह बहुत ही नाकाफी है।

इस दृष्टि से परिषद् ने बच्चों की पुस्तकों के लेखन की दिशा में एक महत्त्वाकांक्षी योजना प्रारंभ की है। इसके अतंर्गत 'पढ़ें और सीखें' शीर्षक से एक पुस्तकमाला तैयार करने का विचार है जिसमें विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों के लिए सरल भाषा और रोचक शैली में अनेक विषयों पर बड़ी संख्या में पुस्तकें तैयार की जाएँगी।

प्राक्कथन
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (रा.शै.अ.प्र.प.) की "पढ़ें और सीखें" योजना के अंतर्गत यह एक छोटा सा प्रयास है। जब परिषद् के प्रगतिशील निदेशक डा. पी.एल. मल्होत्रा ने मुझे इस दिशा में विज्ञान के विषयों का कार्यभार संभालने के लिए आमंत्रित किया तो अपने वैज्ञानिक मित्रों की अतिव्यस्तता के कारण यह उत्तरदायित्व स्वीकार करने में मुझे संकोच था।

इस दिशा में मेरा प्रयास रहा है कि विज्ञान के विभिन्न विषयों के जाने-माने विद्वानों को इस सराहनीय कार्य के लिए आकर्षित कर सकूँ क्योंकि खोज और अनुसंधान की आनंदपूर्ण अनुभूतियों वाले वैज्ञानिक ही अपने "आनंद" की एक झलक बच्चों तक पहुँचा सकते हैं। मैं उनका हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने अंकुरित होने वाली पीढ़ी के लिए अपने बहुमूल्य समय में से कुछ क्षण निकालने का प्रयास किया। कहते तो हम सब हैं कि 'बच्चे' राष्ट्र की सब से बहुमूल्य और महत्वपूर्ण निधि हैं परंतु मेरे लिए यह किंचित आश्चर्य और अधिक संतोष का अनुभव रहा है कि हमारे इतने लब्धप्रतिष्ठ और अत्यंत व्यस्त वैज्ञानिक "बच्चों" के लिए ऐसा परिश्रम करने के लिए सहर्ष मान गए हैं। मैं सभी वैज्ञानिक मित्रों के प्रति हृदय से आभारी हूँ।

इन पुस्तकों की तैयारी में हमारा मुख्य ध्येय रहा है कि विषय ऐसी शैली में प्रस्तुत किया जाए कि बच्चे स्वयं इसकी ओर आकर्षित हों, साथ ही भाषा इतनी सरल हो कि बच्चों का इनके अध्ययन द्वारा विज्ञान के गूढ़तम रहस्यों को समझने में कोई कठिनाई न हो। इन पुस्तकों को पढ़ने में उनकी रुचि पैदा हो, उनके नैसर्गिक कौतूहल में वृद्धि हो जिससे ऐसे कौतूहल और उसके समाधान के लिए स्वप्रयत्न उनके जीवन का एक अंग बन जाए।

दो शब्द
शल्यचिकित्सा का इतिहास बहुत समृद्ध और रोमांचक रहा है। इसकी कहानी शायद उतनी ही पुरानी है जितना पुराना मनुष्य है। गुफाओं में रहता आदमी भी अपनी सोच-समझ के अनुसार अपने रोगों के इलाज की कोशिश करता था। लेकिन जैसे-जैसे उसने विकास किया, उसके अनुभवों की संपदा बढ़ती रही, वह उनसे सीखता गया। इसका असर उसके जीवन के हर पहलू पर पड़ा। चिकित्सा विज्ञान भी उससे अछूता न रहा। गंगा, नील और याङत्सी नदियों के किनारे विकसित हुई महान भारतीय, मिस्री और चीनी सभ्यताओं की गोद में विज्ञान और दर्शन के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान और शल्यचिकित्सा भी पले और बढ़े। फिर यह ज्ञान यूनान पहुँचा और वहाँ से पूरे यूरोप में फैलता चला गया। उस दौर में कुछ असाधारण शल्यचिकित्सक हुए, जिन्होंने नई सोच और नई जानकारी से शल्यचिकित्सा के नए आयाम खोजे।

मध्य युग में शल्यचिकित्सा को दुर्दिन भी देखने पड़े और स्थिति यह हो गई कि उसे हज्जामों की शरण में आना पड़ा।

आभार
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् निम्नलिखित महानुभावों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती है।

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