"यावत्स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले। तावऋग्वेदमहिमा लोकेषु प्रचरिष्यति।।"
अर्थात् जब तक पृथ्वी पर पर्वत स्थिर रहेंगे और नदियां बहती रहेंगी, तब तक ऋग्वेद की महिमा संसार में फैली रहेगी।
वेदों में विभिन्न कथाओं के माध्यम से ब्रह्मांड की उत्पति, ब्रह्म, ईश्वर, प्रकृति, पशु-पक्षी, मनुष्य की उत्पत्ति, प्रलय, समाज, काल, संस्कृति, ग्रह, नक्षत्र, राजा, प्रजा, स्वर्ग, नरक, यम, पाप, पुण्य, जीवन, मृत्यु आदि का विहंगम वर्णन किया गया है। वेद 'गागर में सागर' की भांति हैं। कुछ अक्षरों से मिलकर बने छोटे से मंत्र में ब्रह्मांड जैसी व्यापकता के दर्शन होते हैं। दिव्य ज्ञान के इसी भंडार में से कुछ कथाओं को पिरोकर यह पुस्तक तैयार की गई है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों तक गहन चिंतन-मनन कर इस ब्रह्मांड में उपस्थित कण-कण के गूढ़ रहस्य का सत्यज्ञान वेदों में संगृहीत किया। उन्होंने अपना समस्त जीवन इन गूढ़ रहस्यों को खोजने में लगाकर भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की नींव सुदृढ़ की। इन गूढ़ रहस्यों का विश्व के अनेक देशों के विद्वानों ने अध्ययन कर अपने-अपने देशों का विकास किया। चाहे वह चिकित्सा, औषधि शास्त्र का क्षेत्र हो या खगोल शास्त्र का, ज्योतिष शास्त्र का हो अथवा साहित्य का। उन्होंने भारतीय ऋषियों की कठिन तपस्या का भरपूर लाभ उठाया और उसे अपनाया भी। बहुत से देशों के विद्वान आज भी इनका अध्ययन कर रहे हैं और उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं।
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