विश्व के एक आदित्य ब्रह्मलीन संत थे जिनके समक्ष देवी -देवता, हर धर्म के पैगम्बर व सिद्ध-संत नित्य ध्यान में तथा प्रत्यक्ष प्रकट होकर बातें करते तथा आध्यात्मिक पद लिखवाते थे | उन्होंने अपने गुरुदेव की अत्यंत कठिन सेवा की पांच आज्ञाओं (महावाक्यों) का आजीवन पालन किया : 'अयोध्या में रहना, चाहे तहा पर | कोई जमीन दे तो न लेना | मरे पर पास में कफ़न को पैसा न निकले | कोई मारे तो हाथ न चलाना | किसी से बैर न करना |'अनेक वर्षो से सोये नहीं, वे सदा अनहद नाद को सुनते रहते थे | अतः भक्तजन स्लेट अथवा कागज़ पर लिखकर प्रश्न पूछते | तत्पश्चात गुरुदेव अपने श्रीमुख से उनकी शंका समाधान करते व उपदेश देते |
वे करुणा के सागर थे तथा सदा नंगे पैर चलते थे की कही कोई जीव मर न जाए | उनका जीवन अत्यंत ही सरल व सादा था | सिर्फ एक अचला धोती पहने, बारहो मास एक सादी लकड़ी के तखत पर सुबह से रात तक बैठते तथा भक्तो को कल्याण मार्ग बताते |
श्री परमहंस राममंगल दास जी सभी धर्मो को मानते थे | उनके भक्त हर धर्म व जाति के थे | कोई भेद भाव नहीं था | हिन्दुओ को देवी -देवताओ के मंत्र , मुसलमानो को कलमा व नमाज पढ़ना, सिक्खो को उनकी गुरु परंपरा के अनुसार उपदेश व ईसाईओ को उनकी धर्म के अनुरूप मार्ग बताते थे | वे कहते थे की भगवान भाव व प्रेम के भूखे है, आडम्बर के नहीं |
उनका मुख्य उपदेश था : ' सादा भोजन , सादा कपड़ा, अपनी सच्ची कमाई का अन्न तथा अपने को सबसे नीचा मान लेना | कोई बेखता बेकसूर गाली दे , धक्का दे उसके हाथ जोड़ देना |' वे कहते थे 'मान अपमान फूंक दो तब भगवान की गोद में जाकर बैठ जाओगे | जो भगवान को सब कुछ सौप देता है, भगवान उससे बड़े खुश रहते है |जिसको भगवान का सच्चा भरोसा है उसे तकलीफ कैसे हो सकती है |'
'सेवा धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है | बिना बुलाये जाकर सेवा कर आओ, जितनी शक्ति हो, बस भजन हो गया | बुलाकर जाने से सब कट जाता है |'
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