उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जब जातिवाद और धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर थी फारस के एक भद्रपुरुष बहाउल्लाह ने प्रेम और भाईचारे के दिव्य संदेश की उद्घोषणा की। उन्होंने विश्व के विभिन्न राष्ट्रों और धर्मों का आह्वान किया कि वे आपसी मतभेद भुलाकर, एक दूसरे को अपना बंधु-बांधव मानें और पूरी मानवजाति की एकता के लिए मिलकर काम करें।
बहाउल्लाह ने बहाई धर्म की आधारशिला रखी। उनके पावन जीवन और श्रेष्ठ विचारों ने विभिन्न वर्गों के निष्ठावान लोगों को अपनी ओर आकृष्ट किया किंतु ईरान का शक्तिशाली पुरोहितवर्ग उनके खिलाफ उठ खड़ा हुआ। उन्हें एक अंधेरी गंदी कालकोठरी में डाल दिया गया और बाद में उन्हें अपनी जन्मभूमि से निर्वासित कर दिया गया। उनके हजारों अनुयायियों को, जो बहाई कहे जाते थे, मौत के घाट उतार दिया गया और लोगों में उनकी शिक्षाओं का प्रसार रोकने के हर सम्भव प्रयत्न किये गये किंतु हजार विरोधों के बावजूद बहाई धर्म विकसित होता गया। आज लगभग डेढ़ शताब्दी के बाद दुनिया के विभिन्न राष्ट्र, नस्ल और धर्म के लोग बहाउल्लाह का धर्म अपना चुके हैं और विश्वभर में लाखों बहाई केंद्र स्थापित हो चुके हैं।
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