लेखक के बारे में
स्वामी आत्मानन्द
जन्म: 06.10.1929
निर्वाण: 27.8.1989
प्रस्तुत पुस्तक के रचयिता स्वामी आत्मानन्द रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम, रायपुर तथा रामकृष्ण मिशन आश्रम, नारायणपुर (छत्तीसगढ़) के संस्थापक थे। उनका विद्यार्थी-जीवन बड़ा मेधावी था। उन्होंने सन् 1951 में नागपुर विश्वविद्यालय से प्योर मैथिमेटिक्स (शुद्ध गणितशास्त्र) में एम.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की तथा सर्वाधिक गुणांक पाने के कारण स्वर्ण- पदक के अधिकारी हुए। इसके तुरन्त बाद ही उन्होने सुविख्यात रामकृष्ण मठ- मिशन में प्रवेश ले लिया और तब से लेकर अन्त तक उनका जीवन श्रीरामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द के चरणों में समर्पण और सेवा का रहा।
स्वामीजी अत्यन्त प्रतिभाशाली वक्ता और लेखक थे। वे वाणी के साथ ही कलम के भी धनी थे तथा अध्यात्म एवं अन्य सम्बन्धित विषयों पर अपने सारगर्भित एवं प्रभावी व्याख्यानों, प्रवचनों और लेखों के लिए देश भर में विख्यात थे। श्रीमद्भगवद्गीता पर हुए कुल 213 प्रवचनों में से प्रथम 78 प्रवचनों का संग्रह ''गीतातत्त्व-चिन्तन'' के नाम से दो खण्डों में प्रकाशित हुआ है जो उनके गहन आध्यात्मिक पैठ तथा प्रकाण्ड ज्ञान को प्रदर्शित करता है। इसके अतिरिक्त विविध शास्त्र- ग्रन्थों पर दिये गये उनके हजारों प्रवचनों का विपुल अप्रकाशित साहित्य है जो अभी कैसेट्स के रूप में उपलब्ध है तथा जिसके प्रकाशन से धर्म और दर्शन के क्षेत्र में पाठकों को अभिनव वैज्ञानिक दृष्टि उपलब्ध होगी।
स्वामीजी का संगठन-कौशल अपूर्व था। उनके कुशल निर्देशन और संरक्षण में प्रारम्भ हुए मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में रामकृष्ण-विवेकानन्द के नाम पर लगभग बीस आश्रम परिचालित हो रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक उनके विचारोत्तेजक वार्ताओं का संकलन है जिन्हें आकाशवाणी से प्रसारित किया गया था।
हमें विश्वास है कि उच्च मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने वाली ये वार्ताएँ आज के दिग्भ्रान्त तथा समस्याग्रस्त मानव को जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण, नया उत्साह और नयी प्रेरणा प्रदान कर उसे आत्मोन्नति की दिशा में अग्रसर कराने में समर्थ होंगी।
अनुक्रमणिका
प्रस्तावना
3
1
मानव जीवन का लक्ष्य
जीवन का प्रयोजन
11
2
जीवन-संग्राम
13
मोक्ष क्या है?
15
4
मृत्यु क्या है?
17
5
दुःख की समस्या
19
6
पाप और पुण्य
21
7
मनुष्यों की तीन श्रेणियाँ
23
आत्मोन्नति में सहायक तत्त्व
अनुशासन
27
स्वच्छता
29
समय की पाबन्दी
31
स्वाध्याय
33
अपरिग्रह
35
अभ्यास
37
ईमानदारी
39
8
परोपकार
41
9
दया
43
10
दान
45
निर्भयता
47
12
चारित्र
49
मैत्री भाव
59
14
मौन की महत्ता
53
आत्मविश्वास
55
16
सेवा
57
आत्मोन्नति में बाधक तत्त्व
क्रोध
61
ईर्ष्या
63
उत्तेजना
65
चापूलसही
67
चिन्ता
69
चुगली
71
छुआछूत
73
दोष-दर्शन
75
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
77
भय
79
वहम
81
जीने की कला
जीवन-कला
85
उदार चरित
87
सौजन्य
89
नि:स्वर्थता
91
नेतृत्व
93
सांसारिक जीवन व्यतीत करते हुए भाग्यवत्प्राप्ति
95
विकास
97
जीवन का समुचित उपयोग
99
जीवन को सार्थक कैसे करें?
101
चरित्र-निर्माण
103
गहरे पानी पैठ
105
ट्रस्टीशिप
107
दु:ख और उसका निवारण
109
विद्या विनयेन शोभते
111
मनुष्य स्वयं अपना भाग्य-निर्माता
113
जीवन का मूल्य-बोध
सुख-विवेचन
117
वसुधैव कुटुम्बकम्
119
विज्ञान बनाम ईश्वर
121
मनुष्य का ईश्वरत्व
123
पुरुषार्थ और प्रारब्ध
125
निष्काम कर्म की महत्ता
127
देशभक्ति
129
राष्ट्रोन्नति के सोपान
131
दिव्यता का मार्ग
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति
135
नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय
137
गीता का सन्देश
140
कर्मण्येवाधिकारस्ते
142
स्थितप्रज्ञ का स्वरूप
145
मृत्यु-भय को जीतने का मंत्र
147
दुःख-नाश कैसे हो?
149
मन की शक्ति
151
सच्ची भक्ति क्या है?
153
सबसे बड़ा भक्त कौन?
155
योग: कर्मसु कौशलम्
157
आचरण की शुद्धता से आत्मा की पुष्टि
159
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