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श्रीमद्भगवद्- गीता की गाइड श्रील प्रभुपाद की भगवद्‌गीता यथारूप पर आधारित: Srimad Bhagavad Gita Guide Based on Srila Prabhupada's Bhagavad Gita As It Is

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Item Code: HBF512
Author: Kratu Dasa
Publisher: Kratudas Book Trust
Language: Sanskrit Text Word To Word & Hindi Translation
Edition: 2024
Pages: 600
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 662 gm
Book Description
भूमिका

हमारे परम आराध्य नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत श्री श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की असीम कृपा से 'गीता की गाइड' नामक इस पुस्तक को श्रद्धालु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मैं अपार प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ।

श्रील प्रभुपाद द्वारा टीकाकृत 'श्रीमद्भगवद्‌गीता यथारूप' होते हुए भी पृथक रूप से 'गीता की गाइड' लिखने की क्या आवश्यकता हुई?

वास्तव में यह पुस्तक गीता पर विभिन्न आचार्यों द्वारा की गई टीकाओं की तरह कोई अलग से पुस्तक नहीं है अपितु यह पुस्तक श्रील प्रभुपाद की भगवद्गीता यथारूप की टीकाओं का ही सरलीकरण है। अतः यह पुस्तक भगवद्‌गीता यथारूप की एक पूरक पुस्तक के रूप में पाठकों का मार्गदर्शन करती है।

भगवद्‌गीता को गीतोपनिषद भी कहा जाता है। यह समस्त वैदिक ज्ञान का सार है। कालांतर में अनेक विद्वानों ने इस पर टीकाएँ लिखीं परंतु अधिकांश टीकाएँ भगवान श्रीकृष्ण के मंतव्य को उजागर करने में असफल रहीं। भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी वाणी में कोई भेद नहीं है। श्रीकृष्ण की इस दिव्य वाणी गीता को समझने के लिए एक शुद्ध भक्त का मार्गदर्शन अति आवश्यक है। भगवान ने गीता में कहा है - भक् त्या मामाभिजानाति अर्थात् केवल भक्ति से ही मुझ भगवान को जाना जा सकता है। अतः गीता पर लिखी सैकड़ों टीकाओं में से अधिकांशतः जो अभक्तों द्वारा लिखी गई हैं वे सभी निरर्थक हो जाती हैं। श्रील प्रभुपाद भगवान श्रीकृष्ण के एक विशुद्ध भक्त हैं जिन्होंने जीवनपर्यंत समूचे विश्व में केवल श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार-प्रसार किया। और इसीलिए भगवद्‌गीता पर उनकी यथारूप टीका इतनी प्रभावशाली है कि उसे पढ़कर हजारों-हजारों निर्विशेषवादी, निराकारवादी, शून्यवादी, मायावादी एवं नास्तिक आदि श्रीकृष्ण की शुद्ध भक्ति में संलग्न हो सके। यह पुस्तक श्रील प्रभुपाद के इस क्रांतिकारी आंदोलन में सहयोग के आशय से किया गया एक प्रयास है।

वैदिक साहित्य में चार वेद, वेदान्त सूत्र, 108 उपनिषद, 18 पुराण, अनेकों संहिताएँ एवं उपवेद हैं। परंतु कलियुग के मनुष्य के लिए, जो अल्पायु एवं अल्पमति है, इतने विशाल वैदिक साहित्य का विशेष लाभ नहीं है। अतः श्रीमद्भगवद्गीता एकमात्र वह शास्त्र है जिससे मनुष्य अपने जीवन का सर्वांगीण कल्याण बड़ी सरलता से कर सकता है।

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