प्रस्तावना
इसमें सत्संगका निर्णय, सद्गुरुमहिमा, साधु असा- धुकी वाणी , साधुमहिमाका अंग वैराग्य उपजावन नामका अंग, लघुताई, प्रशंसा, प्रेम, अनपास्मरण, तिथि वार वर्णन इत्यादि अनेक शब्द रागरागनियों में सहजोबाई- कृत वर्णित हैं, जिसके पठन पाठनसे अज्ञानरूपी तिमिर नारा होकर ज्ञानका प्रकाश होता है।
दोहा
का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिये सांच ।
काम जु आवे कामरी, कालै करै किमांच ।।
जितनी प्रतिपुस्तक मिली,उतनी लिखी निहार ।
भूल चूक सब क्षमाकरि, लीजो सुजन सम्हार ।।
समर्पण
विदि हो कि, यह सहज प्रकाश नामक पुस्तक लिखी हुई पुरानी छिन्न भिन्न एक पुरुष के पास थी परंतु उसकों इसका आशय कुछ ज्ञात नहीं था कि, इसमें क्या गुण हैं? मैंने इसे गूदड़का लाल समझकर उससे प्रार्थना करके एक पक्षके लिये मांग लिया, अब उसको लोकोपकार्थ श्रीसेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजी को समर्पण कर और मुद्रित करानेकी प्रार्थना करता हूं आशा है कि, सर्व महाशय मेरी इस अल्पज्ञताकी धृष्ताके अपराधको क्षमाकर इस पुस्तकसे लाभ उठावेंगे, इस स्थानपर उन महाशयोंके नामभी लिखे देता हूं जिन्होंने इसके छपानेकी सम्मति दी। पं० मिश्रीलालजी सेंगई, श्रीगंधर्वासिंहजी नंबरदार इटौसे, लाला हरनारायण सेंगई, पं० प्यारेलालजी सेंगई, मु० सरदार सिंहजी-सेंगई, हरलाल जिमीदार जिज्ञासु।
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